विजय एल भंबवानी, सीईओ, बीएसपीएल इंडिया :
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के बीच जब भी सोने की बात चलती है तो वे पहले भारत की बात करते हैं, बाद में चीन और जापान की।जापानी लोग सोने के गहनों के बड़े कुशल खरीदार हैं और दुनिया में सोने के गहनों की कुल बिक्री उनका प्रतिशत योगदान काफी रहता है। लेकिन सोने की माँग और आपूर्ति दोनों लिहाज से महाशक्ति के रूप में उभर रहा है चीन। जरा इन बातों पर गौर करें :
कुछ साल पहले तक चीन के एक नागरिक को निवेश श्रेणी का सोना (पट्टी या बार और सिक्के) रखने की अनुमति नहीं थी। वे सोने के केवल गहने ही खरीद सकते थे। चीन सरकार ने अब यह नियंत्रण हटा लिया है। चीन के नागरिकों की आय बढऩे और बचत की ऊँची दर के कारण वहाँ सोने की माँग काफी तेजी से बढ़ सकती है।
- चीन 2007 में ही दक्षिण अफ्रीका को पीछे छोड़ कर सोने का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था। साल 2011 की पहली तिमाही में चीन में सोने का उत्पादन 4.6% बढ़त के साथ 73.41 टन का रहा। अब चीन सालाना 400 टन सोना उत्पादन के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।
- चीन का कुल स्वर्ण भंडार 6328 टन आँका गया है। दक्षिण अफ्रीका और रूस के बाद चीन के पास सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार है।
- साल 2010 में शंघाई गोल्ड एक्सचेंज (एसजीई) में 6046 टन सोने का नकद कारोबार हुआ, जिसकी कुल कीमत 248.45 अरब डॉलर थी। वजन के लिहाज से सोने के लेन-देन का यह सबसे बड़ा एक्सचेंज बन गया है। यह एक्सचेंज 2002 में ही शुरू हुआ है और यह सबसे तेजी से बढ़ता सर्राफा एक्सचेंज बन गया है।
- एसजीई का लक्ष्य अब टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज को पीछे छोडऩे का है। इसके साथ ही यह लंदन बुलियन मार्केट के आधिपत्य को चुनौती देने लगेगा, जो अभी विश्व के सर्राफा कारोबार में 43% का योगदान करता है।
- चीन ने साल 2010 में 340.876 टन सोने का उत्पादन किया, जो विश्व में सबसे ज्यादा है। इसने 571.51 टन सोने की खपत की। यह केवल भारत से पीछे रहा, जो 783.4 टन सोने की खपत के साथ अव्वल था। अब चीन दुनिया में सोने की कुल खपत में 20% का योगदान करता है। एसजीई का अनुमान है कि अगले कुछ सालों में चीन में सोने की मांग भारत में सोने की खपत को भी पीछे छोड़ देगी। इस तरह चीन सोने के विश्व बाजार में सबसे असरदार देश बन जायेगा।
- एसजीई का ध्यान अब वायदा और विलंबित डिलीवरी कारोबार पर भी है। इससे इस एक्सचेंज का कारोबार कई गुना हो सकता है।
- एसजीई ने खुदरा निवेशकों के लिएगोल्ड ईटीएफ शुरू कर दिया है, जिससे उन्हें महँगाई की काट खोजने और संपदा बनाने का मौका मिलेगा।
- चीन ने एसजीई की पहुँच बढ़ाने के लिए अन्य प्रमुख एक्सचेंजों से तालमेल शुरू कर दिया है।हांग कांग गोल्ड एंड सिल्वर एक्सचेंज सोसाइटी के साथ इसका तालमेल हो चुका है, जहाँ सोने की खरीद-बिक्री युआन में हो सकेगी।इस समझौते से न केवल चीन के सराफा कारोबार की मात्रा बढ़ जायेगी, बल्कि इससे किसी वैश्विक उथलपुथल में उसकी अपनी मुद्रा (करंसी) को सुरक्षा भी मिलेगी।
- पश्चिमी विश्लेषक सोने की मांग को खुदरा निवेश और गहनों की माँग जैसी श्रेणियों में बाँटते हैं। लेकिन भारत और चीन में होने वाली खरीदारी दरअसल बचत के लिहाज से की जाने वाली खरीदारी होती है। भारत और चीन के खरीदार शायद ही कभी शुद्ध रूप से सोने के बिकवाल बनते हैं। अगर कभी वे वित्तीय मजबूरी में या कीमत काफी ऊँची हो जाने की धारणा के कारण बेचते भी हैं तो वे नीचे के भावों पर फिर से खरीदने के लिए आ जाते हैं। ये एक तरह से खुदरा निवेशकों के बिकवाली सौदे (शॉर्ट सेल) हैं, इन्हें निवेश से बाहर निकलने के लिए की जाने वाली बिकवाली नहीं माना जा सकता। चीन और भारत का एक औसत खरीदार स्थायी निवेशक ही रहता है।
अगर हम इन बातों को समझें और देखें कि कैसे चीन सरकार ने धीरे-धीरे अपने सर्राफा भंडार को बढ़ाते जाने की नीति चुनी है, तो साफ हो जाता है कि आने वाले दशकों में इस क्षेत्र में चीन की ताकत काफी बढऩे वाली है। इस समय भारत सोने के सबसे बड़े खरीदार की हैसियत में है, लेकिन उसकी यह प्रभुता निकट भविष्य में खतरे में पड़ सकती है।
अगर चीन में सोने की भौतिक माँग इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो यह संभावना भी बनती है कि समय के साथ दुनिया के बाजार में बिकवालों को मजबूरी में बिकवाली सौदे काटने के लिए खरीदारी करनी पड़े, क्योंकि ईटीएफ में संपत्तिके भौतिक हस्तांतरण (फिजिकल डिलीवरी) की भी व्यवस्था रहती है। लिहाजा कभी वैश्विक बाजार में हेज फंडों के ध्वस्त होने या बड़े पैमाने पर उधारी से बाहर निकलने की प्रक्रिया के चलते सोने में बिकवाली उभरने की हालत में भी चीन में हो रही खरीदारी से सोने की कीमत को सहारा मिलेगा।चीन विश्व के सर्राफा मंच पर अपनी जगह बना चुका है और वह भी अपने ही खास अंदाज में।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)