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- Category: दिसंबर 2016
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
देश से काला धन भ्रष्टाचार, नकली करेंसी, आतंकवाद और आपराधिक धंधों को जड़-मूल से समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने विमुद्रीकरण का युगांतकारी निर्णय लिया। प्रधानमंत्री का यह फैसला साहसिक भी है और जोखिम भरा भी। मोदी देश के दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने देश के बड़े नोटों के विमुद्रीकरण का फैसला किया है।
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बैंक
तानाशाही-तुगलकी फरमान, या भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध निर्णायक युद्ध? देश में 8 नवंबर 2016 से बस यही बहस चल रही है। पक्ष-विपक्ष के नेताओं से लेकर अर्थशास्त्री, उद्योगपति और आम जनता तक सब लोग दो पालों में बँट गये हैं। कुछ कह रहे हैं कि विमुद्रीकरण या नोटबंदी के इस फैसले से केवल जनता को असुविधा हो रही है, इससे काला धन खत्म नहीं होगा। कुछ लोगों की राय में यह फैसला सही है, मगर इस पर अमल ठीक से नहीं होने के चलते जनता परेशान है। अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों को चिंता हो गयी है कि इस कदम से विकास दर को कहीं भारी झटका न लग जाये। इनमें से कुछ तो मंदी की आहट महसूस करने लगे हैं। क्या वाकई नोटबंदी ला सकती है अर्थव्यवस्था में मंदी? विस्तार से समीक्षा कर रहे हैं राजीव रंजन झा।
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सरकार ने यह बात जरूर कही है कि लोग 2.50 लाख रुपये तक की नकदी अपने बैंक खातों में बिना किसी डर के जमा करा सकते हैं, पर बिना डर वाली बात उन्हीं पर लागू होती है जो अपने पैसों का स्रोत बता सकते हैं।
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राजेश रपरिया :
मोदी सरकार का कहना है कि काले धन की पारबंदी से अर्थव्यवस्था में काला धन समाप्त हो जायेगा। इससे सरकार के राजस्व और आय करदाताओं की संख्या में औचक भारी वृद्धि होगी। जाहिर है कि अब सारा भार आय कर विभाग के कंधों पर आ गया है। पर क्या यह विभाग बैंकों की तरह अपने दायित्व को निभा पायेगा? नोटबंदी अभियान में हेराफेरी के चलते बैंकों ने अपने 23 वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। क्या आय कर विभाग भी अपने भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई करने का साहस दिखा पायेगा? कर चोरों को पकडऩे के लिए आय कर विभाग को बैंक खातों में आयी बड़ी नकदी की व्यापक छानबीन करनी पड़ेगी। फिर उनके दाखिल आय कर रिटर्न से उनका मिलान कर विसंगतियों को पकडऩा होगा, फिर उचित कार्रवाई करनी होगी। पर यह कार्य कितना दुर्लघ्य है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
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कितनी बड़ी है काली अर्थव्यवस्था और उसमें काली नकदी कितनी है? विमुद्रीकरण से काले धन की समस्या पर किस सीमा तक अंकुश लग सकेगा? सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो राजीव कुमार का कहना है कि करीब 5-6 लाख करोड़ रुपये की काली नकदी है, जिसमें से आधी बैंकिंग प्रणाली में वापस नहीं लौटेगी। यानी 2-2.5 लाख करोड़ रुपये का काला धन खुद खत्म हो जायेगा।
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काले धन पर विशद अध्ययन रखने वाले प्रो. अरुण कुमार का मानना है कि सरकार का यह फैसला अगर सफल रहा, और तीन-चार लाख करोड़ रुपये निकलवा लिये, तो भी इससे केवल 1% काली संपदा ही जायेगी। पर हर साल 93 लाख करोड़ रुपये की काली संपदा बन रही है। इससे काला धन रुकेगा नहीं, उल्टे अर्थव्यवस्था खराब होगी और हालात बिगड़ेंगे। प्रो. कुमार का कहना है कि सरकार को ऐसा कुछ करना चाहिए कि काला धन बनाने वालों पर असर पड़े, न कि पूरी अर्थव्यवस्था पर। हम मंदी की तरफ जा रहे हैं।
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नोटबंदी का फैसला आने के बाद विभिन्न कर प्रावधानों को लेकर लोगों के मन में काफी सवाल रहे हैं। जो लोग किसी जुगाड़ से काला धन सफेद करने में लगे हैं, क्या वे आसानी से निकल जायेंगे?
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भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये नोटों को अवैध घोषित कर दिया। ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल की राय में उच्च मूल्य के इन नोटों का हिस्सा देश की कुल करेंसी में 86% होने के कारण यह ऐतिहासिक निर्णय अपने दायरे और परिमाण के आधार पर अभूतपूर्व है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दीर्घकालिक असर सकारात्मक होने के बावजूद विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों और संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर इसका काफी असर पड़ेगा। ब्रोकिंग फर्म के शोध दल ने इस कदम के शुरुआती असर के आकलन के लिए पिछले कुछ दिनों में विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों (बीएफएसआई, ऑटो, उपभोक्ता वस्तु, खुदरा, वस्त्र, दूरसंचार, सीमेंट) का परीक्षण किया और विभिन्न कंपनियों/विक्रय श्रृंखला साझेदारों से मुलाकात की। इस विश्लेषण में ब्रोकिंग फर्म ने इस परीक्षण के निष्कर्षों का सार पेश किया है।
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संदीप त्रिपाठी :
‘आज रात 12 बजे के बाद 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।’ मंगलवार, 8 नवंबर, 2016 की शाम सवा आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम प्रसारण में यह बात कही तो मानो पूरे भारत में भूचाल आ गया। आम जनता जहाँ एटीएम पर लाइन लगा कर 400 रुपये निकालने के लिए अकुलाई दिखी, वहीं एक वर्ग ऐसा भी था जो अलग ही तरह के खेल में लिप्त हो गया। यह खेल था काले धन को बचाने का खेल।
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प्रणव :
सवा अरब की आबादी वाले देश की वित्तीय प्रणाली में 86 फीसदी नकदी के रूप में मौजूद 500 और 1,000 रुपये के नोट को बदलना बैंकिंग प्रणाली के लिए यकीनन दुरूह चुनौती थी। प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद लोगों में खलबली मचना स्वाभाविक था। ऐसे में आठ नवंबर को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद जब 10 नवंबर को बैंक खुले तो एकाएक यही लगा कि पूरा देश बैंकों के सामने कतार में खड़ा हो गया है।
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संदीप त्रिपाठी :
संकट का समय रिश्तों की पहचान कराता है। नोटबंदी ने एक बार फिर साबित किया कि हिंदुस्तान में इंसानियत और सहयोग की भावना शेष है, रिश्ते हैं, भावनाएँ हैं, भाईचारा है। नोटबंदी ने अचानक उस आदमी को भी कंगाल बना दिया जिसकी जेब में 500-500 रुपये के नोटों की शक्ल में 10-20 हजार रुपये भी पड़े हुए थे। रुपये हैं लेकिन चलेंगे नहीं, खायेंगे क्या, पीयेंगे क्या? बैंक बंद, एटीएम बंद, दो दिन बाद खुलेंगे तो नोट बदले जायेंगे, पैसे निकल पायेंगे। लेकिन पैसे तो सबको चाहिए, भीड़ जबरदस्त होगी, किसके निकल पायेंगे, किसके नहीं निकल पायेंगे, कब तक नहीं निकल पायेंगे, कोई नहीं जानता था।
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नोटबंदी लागू होने के बाद एक सेठ जी ने क्या-क्या जतन नहीं किये, पर लक्ष्मी जी तो उनसे रूठ ही गयीं। लक्ष्मी जी ने अंत में क्या बताया उनको रूठने का कारण?
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