राजेश रपरिया :
मोदी सरकार का दावा है कि विमुद्रीकरण के क्रांतिकारी फैसले से विकास दर में इजाफा होगा। ब्याज दरों के गिरने से माँग में वृद्धि होगी, जिससे पूँजी निवेश को जोरदार प्रोत्साहन मिलेगा। निस्संदेह तुरंत ऐसा लगा भी। देश के सबसे बड़े व्यावसायिक बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सावधि जमाओं पर ब्याज दरें घटा दी। कुछेक अन्य बैंकों ने भी ऐसा किया। तब लगा कि कर्जों की ब्याज दरें भी नीचे आयेंगी और ब्याज दरें कम होने से कर्ज वृद्धि दर में उछाल आयेगी। बैंकों के साथ ही अर्थव्यवस्था की गाड़ी सरपट दौडऩे लगेगी।
जल्दी ही इस धारणा में कई छेद सामने आ गये हैं। एसबीआई चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य ने बहुत दबे स्वर में वक्तव्य दिया कि माँग कमजोर हुई है इसलिए कर्ज की ब्याज दरें नीचे आने में समय लगेगा। पर विमुद्रीकरण के शोर में ये बोल दब कर रह गये।
नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) पर 26 नवंबर को रिजर्व बैंक के नये आदेश से बैंकों के मुँह से हसरत का निवाला भी छिन गया है। इस आदेश का असर बैंकों के शेयरों पर पड़ा है, जो उसके बाद निरंतर लुढ़कते नजर आये। अब तो यह आशंका बन रही है कि कर्ज पर ब्याज दरें घटने की बजाय बढ़ भी सकती है।
पिछले दो सालों से बैंकों की कर्ज वृद्धि दर में गिरावट आ रही है। जुलाई 2014 से यह वृद्धि दर ईकाई अंक में रह गयी है, जो 2011 तक दो अंकों में थी। पर अगस्त में पिछले 10 वर्षों में पहली बार औद्योगिक कर्ज वृद्धि दर नकारात्मक हो गयी। अक्टूबर महीने में रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति वक्तव्य में औद्योगिक कर्जों को लेकर चिंता व्यक्त की गयी। बैंक औद्योगिक, सेवा, निजी, कृषि एवं संबंधित कार्यों आदि के लिए कर्ज देते हैं। इनमें औद्योगिक कर्ज को छोड़ कर सभी श्रेणियों में कर्ज वृद्धि दर दो अंकों में रही है।
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. पंत कहते हैं कि कुछ सालों से उत्पादन क्षमताओं का उपयोग 75% रह गया है। ऐसी स्थिति में कोई भी निवेशक निवेश नहीं करेगा। लिहाजा, पंत यह नहीं मानते कि ब्याज दरों में कटौती से निवेश बढ़ जायेगा। माँग में कमी और बैंकों के बही-खाते में बढ़ते एनपीए से मध्यम, लघु और सूक्ष्म कारोबार के कर्ज संवितरण में कमी आयी है। जून 2015 से मध्यम कारोबारों को कर्ज संवितरण में गिरावट है, जबकि लघु और सूक्ष्म कारोबारों में यह गिरावट मार्च 2016 से है।
औद्योगिक कर्ज वितरण में रफ्तार सुस्त थी, लेकिन अगस्त 2016 में यह नकारात्मक हो गयी। बैंकों से वितरित हुए कर्जों में औद्योगिक कर्ज की हिस्सेदारी तकरीबन 40% है। पहले उम्मीद थी कि अच्छे मॉनसून के कारण ग्रामीण माँग में वृद्धि होगी। लेकिन नोटबंदी से हुई भारी किल्लत से खेती को मानसून से मिला लाभ चौपट हो गया है। किसानों को पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। नोटों की किल्लत से सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से पैदा होने वाली भारी माँग की आस भी हाथ से फिसल गयी है।
वित्तीय रिसर्च कंपनी जेफरीज ने विमुद्रीकरण के परिणामों के मद्देनजर कर्ज वृद्धि दर के अनुमान को 12% से घटा कर 6% कर दिया है। अघोषित आय की धरपकड़ से मुद्रा का संवेग भी धीमा हुआ है। इसके समायोजन में 2-6 तिमाहियों का समय लग सकता है। निजी निवेश कमजोर है। ऐसी स्थितियों में उसमें सुधार की गुंजाइश कम है।
पर सरकार को उम्मीद है कि दिसंबर तक मुद्रा आपूर्ति सामान्य हो जायेगी। चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2017 में आर्थिक गतिविधियाँ अपने पुराने स्तर पर लौट आयेंगी। पर सरकार की इस दलील से प्रमुख रेटिंग एजेंसियों और निवेशकों की गहरी असहमति सामने आ चुकी है।
अमेरिका की प्रमुख रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने न केवल नोटबंदी से जुड़े दावों को नकार दिया है, बल्कि सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर के अनुमान को 7.4% घटा कर 6.9% कर दिया है। सरकार को छोड़ कर सभी वित्तीय संस्थानों ने विकास दर में गिरावट की आशंका प्रकट की है, किसी ने ज्यादा तो किसी ने कम। बैंकों की स्थिति ऐसी हो गयी है कि गये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास।
फिच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि मार्च 2019 तक भारतीय बैंकों को छह लाख करोड़ रुपये से अधिक की नयी पूँजी की आवश्यकता होगी। केंद्र सरकार ने इंद्रधनुष योजना के तहत चार सालों में मार्च 2019 तक 70,000 करोड़ रुपये की पूँजी मुहैया कराने की घोषणा की है। बैंकों के सामने पूँजी बाजार से पूँजी उगाहने के अनेक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन केवल घरेलू बाजार से, क्योंकि विदेशी बाजारों से उनको कोई खास समर्थन नहीं मिल पायेगा।
मौजूदा एनपीए घटाने के लिए कोई खास उपाय नजर नहीं आते हैं। बड़े कर्जदाताओं पर एनपीए का 86% हिस्सा फँसा हुआ है। यह उन क्षेत्रों में फँसा है, जिनमें लेवरेज यानी इक्विटी की तुलना में कर्ज ज्यादा है। माँग कमजोर है और संरचनात्मक सुधार की चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कमजोर पूँजीकरण और कर्ज वसूली पर अधिक ध्यान देने से मौजूदा वित्त वर्ष में कर्ज की वृद्धि दर 10% रहने की उम्मीद इस रेटिंग एजेंसी ने जतायी है।
विमुद्रीकरण से मार्फत रिजर्व बैंक केंद्र सरकार को 3-4 लाख करोड़ रुपये के राजस्व की उम्मीद है। लेकिन क्या इस राशि का उपयोग बैंकों के पूँजीकरण में किया जायेगा, इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री जेटली ने अब तक एक शब्द नहीं बोला है। बैंकिंग प्रणाली में आयी भारी नकदी बैंकों के लिए वरदान बनेगी या बोझ, यह सरकारी नीतियों और विकास दर की चाल पर ही निर्भर करेगा।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)