भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये नोटों को अवैध घोषित कर दिया। ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल की राय में उच्च मूल्य के इन नोटों का हिस्सा देश की कुल करेंसी में 86% होने के कारण यह ऐतिहासिक निर्णय अपने दायरे और परिमाण के आधार पर अभूतपूर्व है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दीर्घकालिक असर सकारात्मक होने के बावजूद विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों और संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर इसका काफी असर पड़ेगा। ब्रोकिंग फर्म के शोध दल ने इस कदम के शुरुआती असर के आकलन के लिए पिछले कुछ दिनों में विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों (बीएफएसआई, ऑटो, उपभोक्ता वस्तु, खुदरा, वस्त्र, दूरसंचार, सीमेंट) का परीक्षण किया और विभिन्न कंपनियों/विक्रय श्रृंखला साझेदारों से मुलाकात की। इस विश्लेषण में ब्रोकिंग फर्म ने इस परीक्षण के निष्कर्षों का सार पेश किया है।
उपभोग पर असर
सभी व्यावसायिक क्षेत्रों में उपभोग में काफी नरमी आना आम है। विभिन्न उद्यम श्रृंखला साझीदारों से बातचीत से पता चलता है कि विमुद्रीकरण के लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह अत्यंत धीमा हो गया है। नतीजतन, सभी व्यावसायिक क्षेत्रों के व्यवसाय में पहले पाँच दिनों में 30-80% के दायरे में गिरावट आयी है। उपभोक्ताओं की प्राथमिकता बैंक/एटीएम से नकदी निकालना/जमा करना हो जाने के कारण स्टोर, माल, रेस्टोरेंट और शोरूमों में ग्राहकों की आमद बहुत घटी है।
महँगे विवेकाधीन उपभोग पर ज्यादा असर, धीमे-धीमे सामान्य स्थिति लौटने की उम्मीद
ऑटो, आभूषण, आवास ऋण और उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र के लोगों से बातचीत से संकेत मिला कि विवेकाधीन उपभोग पर बेतरतीब ढंग से असर पड़ा है। यह आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि उपभोक्ता विवेकाधीन/विलासिता वस्तुओं के मुकाबले आवश्यकताओं पर खर्च करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। चार पहिया वाहनों के लिए पूछताछ में 40-60% तक की गिरावट आयी है। नकदी प्रवाह और तरलता स्थिति के ठीक होने तक नरमी बनी रहने की संभावना है। रियल एस्टेट में आवास खरीद सौदों में गिरावट आयी है। बिल्डर कार्यशील पूँजी के संकट में फँसे हैं, जबकि खरीदार कीमतों में गिरावट की उम्मीद में प्रतीक्षा करो और देखो की नीति अपना रहे हैं। वित्तीय क्षेत्र में बैंकों के मुख्य लाभान्वित होने की संभावना है क्योंकि विमुद्रीकरण होने के बाद से उन्हें जम कर नकदी जमा प्राप्त हुई है।
चुनिंदा सतर्क कदम उठा रही कंपनियाँ
विमुद्रीकरण के कदम की अभूतपूर्व प्रकृति और व्यापार पर इसके अल्पकालिक असर के मद्देनजर कंपनियों ने अपनी व्यापार श्रृंखला के साझेदारों पर कार्यशील पूँजी का दबाव घटाने के लिए चुनिंदा कदम उठाये हैं। कुछ कंपनियों ने वितरकों के लिए क्रेडिट समय-सीमा बढ़ायी है जबकि कुछ ऐसा करने पर विचार कर रही हैं। कुछ मामलों में वितरकों ने खुदरा विक्रेताओं को क्रेडिट अवधि बढ़ायी है। कॉरपोरेट को भी कुछ स्पष्टता आने से पहले कुछ हफ्तों तक इस स्थिति के बने रहने की उम्मीद है।
सकारात्मक दीर्घकालिक असर, असंगठित से संगठित क्षेत्र की ओर जाने में तेजी
अल्पकालिक असर के आगे देखने पर कॉरपोरेट आम तौर पर ब्रोकिंग फर्म की इस राय से सहमत हैं कि विमुद्रीकरण और जीएसटी का मिश्रण विभिन्न उपभोक्ता उन्मुख श्रेणियों में असंगठित से संगठित क्षेत्र की बदलाव तेज होगा। चूँकि असंगठित क्षेत्र को भी नियमों का पालन करना पड़ेगा, इससे संगठित व्यवसाय के मुकाबले असंगठित क्षेत्र को मिलने वाला कीमत लाभ अब क्षीण पड़ जायेगा। ब्रोकिंग फर्म की राय में संगठित ब्रांडेड क्षेत्र के लिए बाजार हिस्सेदारी में बदलाव मध्यम से दीर्घ अवधि में अवश्यंभावी है।
वित्त वर्ष 2016-17 के आय अनुमान जोखिम में
मौजूदा परिदृश्य में ब्रोकिंग फर्म को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही की आय सर्वाधिक प्रभावित होगी, इससे वित्तवर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही में आय का अनुमान अभी संकटग्रस्त है। वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी छमाही के लिए अपनी पूर्वावलोकन रणनीतिक टिप्पणी में ब्रोकिंग फर्म ने अ) डब्लूपीआई एवं सीपीआई में अंतर में कमी, ब) ब्याज दरों में नरमी और स) चक्रीय लाभों के लिए अनुकूल आधार प्रभाव के आधार पर पीछे बैठी कंपनियों की वापसी के सिद्धांत को दर्शाया था। विमुद्रीकरण के बाद ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषण दायरे में आने वाली कंपनियों और साथ ही साथ संवेदी सूचकांक के लिए वित्तवर्ष 2016-17 के अपने आय अनुमानों में निस्संदेह गिरावट का खतरा देखती है। हालाँकि तरलता के पुन: ठीक होने की अवधि के दौरान अनिश्चितता को देखते हुए इस चरण में आय पर असर की गणना करना मुश्किल है। ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि ऑटो, एफएमसीजी, खुदरा, कंज्यूमर ड्यूरेबल, मिडकैप, सीमेंट, दूरसंचार और एनबीएफसी क्षेत्र में वित्त वर्ष 2016-17 में आय में गिरावट देखी जा सकती है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)