नोटबंदी का फैसला आने के बाद विभिन्न कर प्रावधानों को लेकर लोगों के मन में काफी सवाल रहे हैं। जो लोग किसी जुगाड़ से काला धन सफेद करने में लगे हैं, क्या वे आसानी से निकल जायेंगे?
डी एच कंसल्टेंट्स के ग्रुप चेयरमैन शैलेष हरिभक्ति का मानना है कि जुगाड़ों का फायदा नहीं, सब पकड़े जायेंगे। नोटबंदी से जुड़े तमाम प्रश्नों पर निवेश मंथन से उनकी एक खास बातचीत।
आपके अनुसार विमुद्रीकरण के फैसले का नफा-नुकसान क्या है?
भारत अब डिजिटल होने की तरफ बढ़ रहा है। हम लोग औद्योगिक दौर में जन्मे, पले-बढ़े और इसी वजह से हम नहीं समझ पा रहे कि औद्योगिक दौर को छोड़ कर डिजिटल दौर में कैसे प्रवेश किया जाये। जब नोटबंदी हुई और लोगों को लाचार हो कर ई-पेमेंट, कार्ड या यूपीआई के वैलेट्स का इस्तेमाल करना पड़ा तो समझ आया कि यह तरीका सबसे बेहतर है। इसमें पहली चीज यह है कि हर आदमी से दूसरा आदमी जुड़ सकता है। हर किसी के पास अपने मोबाइल में अपना बैंक है। फिर हमें बैंक की शाखा जाने की क्या जरूरत है? क्यों हम यही देख रहे हैं कि कितने नोटों की छपाई हो रही है? मुश्किल की जड़ यही है कि हम लोग नोट का व्यापार कर रहे हैं। स्वीडन बहुत छोटा देश है, जो बोरीवली से छोटा या दिल्ली के नोएडा जितना बड़ा देश है। वहाँ सिर्फ 2% नकद का इस्तेमाल होता है, जबकि भारत में 70-80% तक।
काली नकदी पर कितना असर पड़ेगा?
जो स्टॉक था, वह तो पहले ही दिन खारिज हो गया। जो लोग कमीशन या दूसरे रास्ते ढूँढ़ लिये थे काला धन बदलने के, उन सब पर सरकार ताला लगा रही है। अब जनधन खातों से आप महीने में 10,000 रुपये से ज्यादा नहीं निकाल सकते। अब आप नोट बदल नहीं सकते। हर बैंक खाते से पैसे निकालने की 24,000 रुपये की सीमा है। जब खाते में पैसे जमा होंगे, तब सवाल उठेगा। नया कानून भी आ गया कि यदि आप पैसा जमा करते हैं तो आपको बताना होगा। अगर यह पैसा बचत का है या कुछ दिन पहले निकाला हुआ ही पैसा है या इस साल की ही कमाई का है, जिसको आप दस्तावेजों के आधार पर बता सकते हैं, तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन जमा करें और कहें कि पता नहीं कहाँ से आये, तो आपको 50% जुर्माना भरना होगा और 25% जमा करना होगा।
सरकार ने 50% के नियम के जरिये काले धन वालों को बचने मौका क्यों दिया?
नहीं, ऐसा नहीं है। लोगों ने लॉन्ड्री चालू कर दी थी, कमीशन और दूसरों रास्तों से पैसे बदल रहे थे। इन सब पर अंकुश लगाने के लिए यह कानून लाया गया है। ऐसे में हमें अपना नजरिया बदलना होगा।
मैं एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी के बोर्ड में हूँ। उन लोगों ने ओडिशा के एक गाँव की कहानी सुनायी कि उस गाँव में जहाँ पहले महीने में 450 करोड़ रुपये नकद वितरण करते थे, वहाँ 15 दिनों में 100 करोड़ रुपये नकद रहित बाँट कर दिखा दिया, लोगों के खातों में दिया और उस ऋण की वापसी भी उसी तरह होगी। ऐसी चीजों पर कोई बात नहीं करता।
क्या बड़ी काली नकदी रखने वाले उसे खपाने के रास्ते निकाल ले रहे हैं या पैसा फँस चुका है और उनके पास अब 50% कर देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है?
हम यह तो नहीं जानते कि किसके पास कितना काला धन है। पानी तो पानी है, जहाँ रास्ता मिलेगा वहाँ चला जायेगा। किसी नोट पर लिखा नहीं होता कि यह काला है। किसी ने बदल लिया तो बदल लिया। हमें यह सोचना चाहिए कि कितने कम नोटों से काम चला सकते हैं। काला धन खपाने के अब सारे रास्ते बंद हो गये हैं। जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था है, वह सब औपचारिक अर्थव्यवस्था में आ जायेगी। जीएसटी के बाद यह और अच्छे से लागू होगा।
भारत ने डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बना लिया। यह बहुत बड़े काम का उदाहरण है। हमने यूपीआई बना लिया, यूएसएसडी चालू कर लिया, 25 करोड़ जनधन खाते खोल दिये। पूरे देश में ई-ऑक्शन चालू हुए। हम इन सब बदलाव की तरफ देखने की बजाय यह देख रहे हैं कि कौन कैसे गलत काम करके बच सकता है। यह सब विचार छोड़ देने चाहिए।
सुनने को मिला कि बिल्डर पुराने नोटों से पिछली तारीख में खरीदारी दिखा रहे हैं।
ऐसी खबरें छपी हैं। यह तो खरीदने वाले को देखना है कि क्या उसे नुकसान सह कर गलत तरीके से संपत्ति खरीदनी है? ये सब गलत बातें हैं, सब पकड़े जायेंगे। कहीं-न-कहीं तो औपचारिक तंत्र में आयेगा और टैक्स लगने लगेगा। किसी बिल्डर ने यह काम कर भी लिया तो जब वह पैसा जमा करने जायेगा तो बताना तो उसे भी पड़ेगा कि कहाँ से आया।
वह तो बिक्री दिखा रहा है अपनी।
कितना करेगा पिछली तारीखों में? यह सब छिपा नहीं सकते। आयकर विभाग ने पकड़ लिया तो उस पर 200% जुर्माना लगा देंगे।
अगर बड़ी तस्वीर देखें तो आपके हिसाब से देश में कितना काला धन है?
उसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। हमें उसका पता लगेगा, जब पूरे नोट 30 दिसंबर तक बैंकों में या 31 मार्च तक रिजर्व बैंक में आ जायेंगे।
पर उसमें तो वह पैसा भी होगा न, जो लोगों ने कमीशन दे कर बदल लिया या जैसे कि बिल्डर के पास खपा लिया। इस तरह का काला धन तो पकड़ में नहीं आयेगा।
पर आखिरकार तो बिल्डर को जमा करना पड़ेगा ना। सफेद अर्थव्यवस्था में तो आयेगा। उसने नुकसान खा कर सफेद कर लिया। आगे बढ़ो, कोई बात नहीं। और ऐसा करने वाले जब जमा रकम का हिसाब नहीं दे पायेंगे तो 50% टैक्स भरना पड़ेगा और 25% सरकारी योजना में जमा करना पड़ेगा चार साल के लिए। अगर कहीं पेनाल्टी में पकड़ लिया, फिर तो उसे अपनी संपत्ति भी बेच कर चुकाना पड़ सकता है।
कितना काला धन बर्बाद होगा, कितना लोग कहीं से बदल लेंगे और कितना 50% वाली योजना में डालेंगे, इस बारे में आपका एक मोटा अंदाजा क्या है?
हरेक रुपया जो काला धन था, उसके सफेद होने की संभावना बहुत ही बढ़ गयी है, १००% तक। यह कितने समय में होगा, कोई नहीं बता सकता। जिसका स्टॉक लगा है काले धन का, वह फँस गया। अब बेनामी कानून भी आ गया है। अब ई-रजिस्ट्री भी होगी। सब रास्ते बंद हो जायेंगे। तब कहाँ जायेंगे लोग? सब सीधे हो जायेंगे। अंतत: गलत कृषि आय बता रहे हैं, उन पर भी शिकंजा कस जायेगा।
किसी राजनेता के बारे में खबर आयी कि उन्होंने 10 एकड़ जमीन पर 100 करोड़ रुपये की कमाई की है।
लोगों को जहाँ जैसी सलाह मिलती है, वैसा करते रहते हैं। लेकिन एक बात याद रखनी चाहिए कि अब सरकार के पास 10 सालों के आँकड़े हैं। हमारा टैक्स इन्फॉर्मेशन नेटवर्क शुरू हुआ था 2006 में। सरकार अब 10 साल के आँकड़ों का विश्लेषण करके जाँचने की क्षमता रखती है। अभी एक आईटी कंपनी को इसका विश्लेषण करने के लिए कहा गया है। छह महीनों के बाद जब यह काम पूरा होगा तो सबकी पोल खुल जायेगी। किसी को छिपने का जरिया नहीं मिलेगा। जो समझदार आदमी है, वह अब 50% और २५% को सह कर आगे बढ़ेगा। अगर कोई गलत रास्ते पर चल पड़ा तो बहुत जल्द पकड़ा जायेगा। ईमानदार बनें, जो भी है उसे जमा करें और टैक्स भरें।
चर्चा है कि 50% कर की योजना विंडफॉल गेन का चोर रास्ता बंद करने के लायी गयी। यह बात कितनी सही लगती है?
बिल्कुल सही। विंडफॉल ही नहीं, कोई भी कह सकता है कि यह मेरी इस साल की आय है। अभी तो इस साल के रिटर्न दाखिल नहीं हुए हैं। जब रिटर्न ही नहीं भरा, तो रिटर्न और आय का अंतर कैसे आयेगा?
पर जिसने पिछले साल 10 लाख कमाये, वह इस साल एक करोड़ की आय दिखाये तो क्या सवाल नहीं उठेगा?
वही ना, सवाल तो उठेगा ही। आयकर वाले सो थोड़े ही रहे हैं। उनके पास 10 साल का रिकॉर्ड है। मगर एक शंका वाली चीज थी कि लोग पैसे जमा कर देंगे और बतायेंगे कि यह मेरी इस साल की आमदनी है, इस पर 30% टैक्स लगायें। इसलिए नये कानून में ज्यादा सख्त करके यह बताया गया है और अगर उससे भी छूट गया तो 85% टैक्स भरना पड़ेगा।
200% के जुर्माने पर क्या स्थिति है?
वह तो आज भी कानून में है, अगर किसी ने आय छिपायी हो। आपके पास जो भी है, वह सारा आपने जमा कर दिया, उसमें आपकी जो पिछले सालों की बचत थी वह आपने अलग कर लिया, इस साल की आमदनी अलग कर लेते हैं, और फिर जो बाकी बच जाता है, उस पर आपने 50% कर दे दिया, तो फिर आप पूरी जिंदगी के लिए सही हो गये हैं। यह योजना बंद होने के बाद जो पकड़ा जायेगा, उस पर 85% का जुर्माने वाला टैक्स है। साथ में कार्रवाई होगी, जो सिर्फ टैक्स भरने से बंद नहीं हो जाती। जिन लोगों पर कार्रवाई चालू हो, और उसमें अगर यह सामने आया कि पैसा छिपाया भी है तो जितनी कर देनदारी बनती है, उसका २००% जुर्माना भी लग सकता है।
जिसने अपने काले धन को किसी संपत्ति में लगा दिया और उस संपत्ति की कीमत गिर जाये तो यह उसका नसीब है। इससे भी काला धन कम होगा। जिसके पास काली नकदी है, उसने ईमानदारी से जमा किया तो 50% कर और 25% जमा की योजना में आ जायेगा। कोई फिर भी बेईमान ही रहने का जोखिम ले और पकड़ा जाये तो 85% या 90% भरना पड़ जायेगा। फिर तो उसके पास कुछ बचा नहीं। और उसने वह पैसा किसी संपत्ति में डाल दिया होगा तो उसे वह संपत्ति बेच कर सरकार को चुकता करना होगा।
इसमें कहा गया है कि आय का स्रोत नहीं पूछा जायेगा। तो क्या कोई व्यक्ति रिश्वतखोरी से जमा पैसा भी इसमें घोषित करके बच जायेगा?
हाँ। पर कानून इतना खोखला भी नहीं है। जो आपराधिक मामले होंगे, वे तो चलेंगे ही। उन पर कानून दंड देगा। अगर किसी ने भ्रष्टाचार किया हो और यह साबित हो जाये तो उसकी संपत्ति जब्त हो जायेगी, उसकी नौकरी चली जायेगी, आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक आय के तहत मुकदमा चलेगा। यह नया कानून तो केवल कर ढाँचे के लिए है। उसके अलावा बाकी कानून तो हैं ही। ऐसा थोड़े ही है कि कोई चोरी, लूट, मारामारी करके पैसा ले ले और जाकर जमा कर दे तो वह बच गया!
कुछ लोग किसानों के खाते में पैसा जमा करा रहे हैं, क्योंकि कृषि आय पर कर नहीं लगता।
पैसे का मतलब यह है कि उससे आप कुछ खरीद सकें, या बैंक में जमा करें, या उससे कुछ संपत्ति लें। अब ये सारे रास्ते या तो पारदर्शी हो गये हैं या बंद हो गये हैं। आप जायेंगे कहाँ? यह प्रोत्साहन बदलने की बात है। किसान कहाँ तक झूठ बोलेगा? और हरेक किसान ऐसा भोला-भाला नहीं है। उसके हाथ में पैसा आने के बाद उसकी संपत्ति हो गयी, वह अपने पास रख लेगा और वापस नहीं देगा। और, बेनामी संपत्ति पर तो बहुत सख्त कानून है। बेनामी संपत्ति जिसने अपने नाम पर रजिस्ट्री करवा ली, उसकी हो जायेगी।
कोई किसान या अन्य व्यक्ति साल में दो लाख रुपये कमाता हो और बैंक खाता नहीं रखता हो, उसे अब 10 साल की कमाई 20 लाख रुपये एक साथ जमा करानी हो तो वो क्या करेगा? सरकार कह रही है कि 2.5 लाख रुपये की सीमा है।
जब कर अधिकारी पूछेंगे तो उसे जवाब तो देना होगा। जो सही बात है, वह बता दे। कर अधिकारी मान जाये तो ठीक वर्ना केस चलेगा और कोर्ट फैसला करेगा। आज भी यह कानून है कि आपको अपनी कृषि आय को बाकी आय के साथ जोड़ कर ही आय कर की दर देखनी पड़ती है। आप सिर्फ खेती की आय को देखें तो पूरी तरह से स्वीकार है। मुझे लगता है कि यह कानून भी बदलेगा। किसान पर फौरन उतना ही कर नहीं लगना चाहिए। पहले उनके लिए छूट की सीमा 25 लाख रुपये कर दें। फिर धीरे-धीरे सबको बराबरी पर लेकर आयें। ऐसा होने पर ही खेती की आमदनी का जो चोर रास्ता है, वह बंद होगा। पर हर चीज एक साथ नहीं हो सकती।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)