ब्याज दरों में गिरावट का क्रम शुरू हो गया है और वित्तीय सलाहकार निवेशकों को इससे संबंधित सलाह देने में जुट गये हैं और कई तरह के निवेश विकल्पों की सलाह दे रहे हैं। लक्ष्य है पोर्टफोलिओ में ऐसा बदलाव ताकि इस गिरावट का अधिकतम फायदा उठाया जा सके। लेकिन जानकार यह भी कहते हैं कि ब्याज दरों में गिरावट का फायदा उठाने की सोच रहे निवेशक को विकल्पों का चयन करते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए।
जो निवेशक अधिक जोखिम नहीं लेना चाहते, उनके लिए डेट म्यूचुअल फंडों में निवेश एक बेहतर विकल्प है। वे अधिक परिपक्वता अवधि के फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान्स (एफएमपी) और गिल्ट फंड आदि में निवेश कर सकते हैं। ये दोनों ही विकल्प आपको बैंक में किये गये फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले बेहतर रिटर्न उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं।
अधिक परिपक्वता के एफएमपी का कर सकते हैं चुनाव
ऐसे निवेशक जो फिक्स्ड इनकम वाले निवेश में होने वाले उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं लेना चाहते, वे अधिक परिपक्वता के एफएमपी में निवेश कर सकते हैं। इससे उनको तब भी ऊँचे ब्याज दर का फायदा हासिल होगा जब ब्याज दरों में गिरावट आ जायेगी। ध्यान रहे कि एफएमपी ऐसे क्लोज एंडेड म्यूचुअल फंड होते हैं जो डेट विकल्पों में निवेश करते हैं। इनकी परिपक्वता पहले से तय होती है और ये कुछ दिनों से लेकर कई साल तक की अवधि के लिए उपलब्ध होते हैं। एफएमपी का मुख्य उद्देश्य होता है एक निश्चित अवधि में स्थायी रिटर्न हासिल करना ताकि निवेशक को ब्याज दरों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके।
अपने इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए एफएमपी में डेट प्रतिभूतियों का ऐसा पोर्टफोलिओ बनाया जाता है जिसमें ऐसे सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (सीडी) और कॉमर्शियल पेपर (सीपी) में प्रमुखता से निवेश किया जाता है जिनकी परिपक्वता अवधि योजना की परिपक्वता अवधि से मेल खाती है। एफएमपी की अवधि के आखिर में इन प्रतिभूतियों में किये गये निवेश को भुना लिया जाता है।
कर सकते हैं गिल्ट फंड में निवेश
नोटबंदी के बाद लोगों द्वारा पैसे जमा करने की वजह से अब बैंकों के पास पूँजी की कमी नहीं रह गयी है। ऐसे में उन्होंने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरों को कम करना शुरू कर दिया है। जानकारों का यह भी मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपनी अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरें घटा सकता है। विश्लेषक यह भी मानने लगे हैं कि कम ब्याज दरों का दौर अब अधिक दूर नहीं है, ऐसे में वित्तीय सलाहकारों और निवेशकों के बीच गिल्ट फंड काफी लोकप्रिय होते दिख रहे हैं। गिल्ट फंड वे म्यूचुअल फंड होते हैं जो मुख्यत: सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक, भारत सरकार की तरफ से आरबीआई द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ) में निवेश करते हैं। आम तौर पर जो डेट फंड होते हैं वे सभी तरह के डेट विकल्पों में पैसे लगाते हैं, लेकिन गिल्ट फंड निवेश के डेट विकल्पों की केवल एक ही श्रेणी को लक्ष्य बनाते हैं और वे हैं जी-सेक। अगर ब्याज दरों में गिरावट आती है तो बॉन्ड की कीमत ऊपर जाती है। जब बॉन्ड की कीमत ऊपर जाती है तो गिल्ट फंड का नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) बढ़ता है। जानकारों का मानना है कि जब ब्याज दरें ऊँचे स्तरों पर हों और गिरावट का सिलसिला शुरू होने वाला हो, ऐसी स्थिति गिल्ट फंड में निवेश के लिए सबसे उचित अवसर मुहैया कराती है। ब्याज दरें गिरने से जी-सेक की कीमत में बढ़ोतरी होती है। इससे उन सभी फंडों को फायदा होता है जिन्होंने उसमें निवेश कर रखा होता है।
हालाँकि निवेशकों को यह भी समझना चाहिए कि गिल्ड फंड से निश्चित रिटर्न की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसका कारण यह है कि गिल्ट फंड के निवेश के साथ ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव का जोखिम भी जुड़ा होता है। जब ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है तो सरकारी प्रतिभूतियों की कीमत गिरती है और गिल्ट फंड के प्रदर्शन पर इसका बुरा असर पड़ता है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)