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- Category: दिसंबर 2011
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक:
हिंदी की एक कहावत है - चौबे गये छब्बे बनने, दुबे बन कर लौट आये।अभी यह कहावत केंद्र में काबिज यूपीए सरकार पर शत प्रतिशत खरी उतरती है। अपनी मृतप्राय छवि को सुधारने के लिए इस सरकार ने देश के खुदरा बाजार में 51% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की मंजूरी देने की घोषणा की।
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शिवानी भास्कर :
आर्थिक सुधारों और वैश्वीकरण की जिस प्रक्रिया को वित्त मंत्री के तौर पर डॉ मनमोहन सिंह ने 1991 में शुरू किया था, वह हाल में अटक सी गयी थी। जानकारों ने कहना शुरू कर दिया था कि सरकार नीतिगत रूप से लकवाग्रस्त हो गयी है। लेकिन सरकार जब हरकत में आयी और इसने सालों से लंबित कुछ महत्वपूर्ण फैसले किये तो साथ ही विवादों का पिटारा भी खुल गया।
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राजीव रंजन झा :
भारत सरकार लंबे इंतजार के बाद नीतियाँ बनाने के मोर्चे पर हरकत में आयी और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो बड़े फैसले कर लिये। इसने कंपनी विधेयक पर मुहर लगा दी और साथ ही खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के दरवाजे भी खोल दिये। केवल एक ब्रांड वाले खुदरा कारोबार के लिए 51% एफडीआई की अनुमति पहले से ही थी, जिसमें अब 100% एफडीआई की अनुमति दे दी गयी है।
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खुदरा क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोलने का सरकारी फैसला आते ही देश के छोटे-बड़े व्यापारियों ने सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया। वे इसे कॉर्पोरेट घरानों के लिए बेलआउट पैकेज करार दे रहे हैं।
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एसएमई के लिए राजीव कुमार, महासचिव, फिक्की :
खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने से देश में एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) विकसित हो सकेगी। इससे किसानों और छोटे-मँझोले उद्यमों (एसएमई) को आधुनिक व्यापार प्रक्रिया से जोड़ा जा सकेगा। तभी किसानों और एसएमई को अपने उत्पादों के लिए अच्छी कीमत भी मिल सकेगी और कीमतें तय करने की प्रणाली ज्यादा पारदर्शी बनेगी।
मेरी समझ से छोटे-मँझोले उद्यमों को इसके कई फायदे मिलेंगे :
- उन्हें प्राइवेट लेबल उत्पादों को तैयार करते समय गुणवत्ता, प्रक्रिया, योजना आदि के लिए सही जानकारी मिल सकेगी।
- उपभोक्ताओं की नयी मांगों को देख कर नये उत्पादों को विकसित करने में वे साझेदार बन सकेंगे।
- वे बाकायदा कानूनी समझौतों के तहत कारोबार कर सकेंगे, जिसमें सारी शर्तें और स्थितियाँ सुगठित और पेशेवर ढंग से होंगी।
- उन्हें आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) की जानकारी मिलेगी, जिससे वे लागत और संभावित घाटे को न्यूनतम कर सकेंगे। उन्हें सही समय पर भुगतान मिलेगा।
- उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यवर्ती बाजारों तक पहुँचने के मौके मिलेंगे। बड़ी खुदरा कंपनियाँ अपने सप्लायरों को उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने का मौका देती हैं, जिससे वे उपभोक्ताओं की माँग के मुताबिक खुद को ढाल सकें।इससे सप्लायर अपनी क्षमता को सुधार कर नये बाजारों तक जा सकने लायक बनते हैं।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)
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राजेश रपरिया :
यूपीए-2 सरकार रिटेल में 51% प्रत्यक्षविदेशी निवेश (एफडीआई) को अनुमति देने के फैसले को कुछऐसे पेश कर रही थी, मानो इससे देश की तकदीर बदल जायेगी।लेकिन इस फैसले ने यूपीए सरकार की तकदीर पर ही ग्रहण लगा दिया है।
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राजीव रंजन झा :
शेयर बाजार : आर या पार:अभी टला नहींखतरा
सबसे पहले तो आपको निवेश मंथन के सितंबर 2011 अंक के राग बाजारी का शीर्षक याद दिला दूँ – ‘अगले दो महीनों में 5400 पर?’ उस समय निफ्टी 5000 के करीब था और 28 अक्टूबर को इसने ठीक 5400 का स्तर छू लिया। खैर, बाजार की कई बातें अभी अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 के दौर की याद दिला रही हैं। बात केवल इतनी नहीं है कि मार्च 2009 में रुपये ने डॉलर की तुलना में अपना ऐतिहासिक निचला स्तर छू लिया था और हाल में एक बार फिर रुपया डॉलर की तुलना में ऐतिहासिक निचले स्तर पर चला गया। दरअसल बाजार में निराशा अपने चरम पर है।
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रिलायंस इंडस्ट्रीज : हमने अक्टूबर अंक में लिखा था कि यह 465-1,268 की 61.8% वापसी के स्तर 772 पर सहारा लेता दिख रहा है। इस स्तर से सहारा लेकर यह शेयर नवंबर के पहले हफ्ते में 905 रुपये तक गया और इस समय फिर से 772 के आसपास लौट आया है।
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डाबर इंडिया ने इस कारोबारी साल की दूसरी तिमाही में अच्छा प्रदर्शन किया था,जो बाजार के अनुमानों से थोड़ा आगे था।इसकी तिमाही कंसोलिडेटेड सकल बिक्री सालाना आधार पर 29.5% बढ़ कर 1,270 करोड़ रुपये हो गयी। इस बढ़ोतरी में बिक्री की मात्रा 10% बढऩे का भी योगदान रहा।
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नवनीत पब्लिकेशंस अब किताबों और स्टेशनरी के क्षेत्र में एक स्थापित नाम बन चुकी है। आगे चल कर इसके कारोबार में और अच्छी बढ़त दिखसकती है। इसके दो कारण हैं। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि एक तो अगले दो सालों में पाठ्यक्रमों में होने वाले बदलाव की वजह से इसकी बिक्री बढ़ेगी, साथही ई-लर्निंग के कारोबार में भी इस कंपनी की दखल बढ़ रही है।
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अगर हम बीती 10 तिमाहियों के आँकड़े देखें तो सूचीबद्ध कंपनियों के प्रमोटरों की 9-10% हिस्सेदारी गिरवी रही है।
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शिवानी भास्कर :
पेट्रोल और डीजल की कीमतें यूँ तो सीधे-सीधे आम आदमी की जेब और देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई हैं, लेकिन अपने देश में इसका साबका आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक परिणामों से पड़ता है। पिछले तीन साल में पहली बार 16 नवंबर को तेल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल के दाम में कमी की। दिल्ली में 2.22 रुपये की कमी के बाद पेट्रोल की कीमत 66.42 रुपये है।
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