डॉ. प्रसून माथुर, वरिष्ठ विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज
अक्टूबर में शुरू हुए चीनी के नये मौसम में भारत में शानदार उत्पादन होने की आशा बनी है। ज्यादातर विश्लेषक मान रहे हैं कि 2011-12 के दौरान देश में चीनी का उत्पादन 2.6 करोड़ टन रह सकता है।
पिछले कारोबारी साल में यह उत्पादन 2.4३ करोड़ टन का था। लिहाजा इस साल भी देश में चीनी की अधिकता की समस्या रहेगी। बीते साल के दौरान बाजार की धारणा बार-बार बदलती रही और ज्यादातर समय तक इसके भावों में कमजोरी का ही रुझान रहा। हालाँकि पिछले एक महीने से कीमतें सुधरती दिख रही हैं।नये मार्केटिंग मौसम की शुरुआत के साथ इस बात को समझना जरूरी है कि इस साल भारतीय बाजार और समूचे विश्व बाजार में बुनियादी बातों के मद्देनजर कीमतों का रुझान कैसा रह सकता है।
भारत में चीनी का कुल उत्पादन 2011-12 फसल वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 2.6 करोड़ टन रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल यह उत्पादन 2.4३ करोड़ टन था। इसकी तुलना में यहाँ चीनी की सालाना माँग 2.२ करोड़ टन से कुछ अधिक रहने की संभावना है। वैश्विक बाजार और भारतीय बाजार की बुनियादी स्थितियों की तुलना करने पर बाजार में कीमतों की स्थिति का अंदाजा लग सकता है।
पूरे विश्व में इस मौसम की शुरुआत में आरंभिक भंडार (स्टॉक) में 0.82% की हल्की बढ़ोतरी होने का अनुमान है, जबकि भारत इस मौसम की शुरुआत 16.43% अधिकता (सरप्लस) के साथ शुरुआत कर रहा है। इस मौसम के अंत में चीनी बिक्री वर्ष के पूरा होने पर यह अधिकता 13.2% की रहेगी। भारत के अन्य आँकड़े भी विश्व की तुलना में काफी ज्यादा हैं। चीनी की आपूर्ति में केवल 1.79% की बढ़ोतरी की उम्मीद है, जबकि भारत में चीनी आपूर्ति 6.51% बढ़ सकती है। चीन और थाईलैंड जैसे देशों में आरंभिक भंडार काफी नीचे है। चीनी वर्ष के अंत में भी इन देशों का चीनी भंडार काफी कम रहेगा। विश्व के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में चीनी उत्पादन 6.78% घट सकता है।
इसलिए एक तरफ तो विश्व बाजार के आँकड़े कीमतों में तेजी की संभावना दिखाते हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय बाजार की बुनियादी स्थिति बताती है कि यहाँ कीमतें दिसंबर-जनवरी तक एक छोटे दायरे में बँधी रह सकती हैं। दिसंबर-जनवरी के बाद ही यहाँ उत्पादन की असली स्थिति के बारे में कुछ कहा जा सकेगा। हाल में भारत सरकार ने 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दे दी है। साथही 30 नवंबर से चीनी की भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) भी हटा दी गयी है। इन दोनों कदमों से निकट भविष्य में चीनी का बाजार कुछ सुधरने की उम्मीद है। इससे पहले कुछ राज्य सरकारों, जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने किसानों को दिया जाने वाला राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) बढ़ाने का फैसला किया, जिससे बाजार में धारणाएँ कुछ सुधरी हैं।
इस साल सितंबर से नवंबर के दौरान विश्व बाजार में चीनी की कीमतें काफी घटी हैं। अनुमान है कि अब यहाँ से तेजी को सहारा देने वाली बुनियादी स्थितियों के कारण बाजार में धारणा मजबूत होगी। भारतीय बाजार काफी हद तक इस बात पर निर्भर होगा कि इस साल वास्तविक उत्पादन कितना होता है और सरकार आगे कब और कितनी चीनी के निर्यात की अनुमति देती है। मौजूदा स्थिति के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि भारत में चीनी का वायदा कारोबार पूरे चीनी वर्ष 2011-12 के दौरान 2800-3500 के दायरे में रह सकता है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)