अगर हम बीती 10 तिमाहियों के आँकड़े देखें तो सूचीबद्ध कंपनियों के प्रमोटरों की 9-10% हिस्सेदारी गिरवी रही है।
अप्रैल-जून 2011 की तिमाही में 9.1% प्रमोटर हिस्सेदारी गिरवी थी, जो जुलाई-सितंबर 2011 की तिमाही में बढ़ कर 9.5% हो गयी है। ये आँकड़े आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के एक रिपोर्ट में दिये गये हैं। चढ़ते बाजार में गिरवी शेयरों को लेकर कोई खतरा नहीं होता, क्योंकि उन गिरवी शेयरों की कीमत नहीं घटती। लेकिन बीती तीन तिमाहियों में सेंसेक्स करीब 20% नीचे आया है। इससे गिरवी रखे शेयरों का बाजार मूल्य भी नीचे आया है। ऐसी स्थिति में शेयरों के बदले कर्ज लेने वाली कंपनियों (या प्रमोटरों) को ज्यादा नकद मार्जिन देना पड़ता है, या फिर और ज्यादा शेयर गिरवी रखने पड़ते हैं। अगर कोई कंपनी समय पर कर्ज नहीं लौटा पाती तो कर्ज देने वाले को गिरवी शेयर बेचने का अधिकार होता है। जब गिरवी शेयर बेचे जाते हैं तो अचानक बिकवाली के चलते उस शेयर के बाजार भाव में तीखी गिरावट आ जाती है। साथ ही प्रमोटर की हिस्सेदारी घटने से कंपनी पर उसका नियंत्रण भी खत्म हो सकता है। लिहाजा जिन कंपनियों के प्रमोटरों की ज्यादा हिस्सेदारी गिरवी होती है, उसे लेकर निवेशकों के मन में शंका बन जाती है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)