राजेश रपरिया :
यूपीए-2 सरकार रिटेल में 51% प्रत्यक्षविदेशी निवेश (एफडीआई) को अनुमति देने के फैसले को कुछऐसे पेश कर रही थी, मानो इससे देश की तकदीर बदल जायेगी।लेकिन इस फैसले ने यूपीए सरकार की तकदीर पर ही ग्रहण लगा दिया है।
पर इस प्रकरण ने कई बुनियादी सवालों को भी खड़ा कर दिया है, जिन पर चर्चा व्यापारियों, उपभोक्ताओं और किसानों के लिए और अंतत: देश के हित में ही है।खुदरा बाजार में मल्टी-ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कई भारी फायदे यूपीए सरकार ने गिनाये हैं।
सरकार का दावा है कि खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी आने से उपभोक्ताओं को फायदा होगा। किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिलेगा। बिचौलिये समाप्त हो जायेंगे, जो बेकाबू महँगाई का मूल कारण हैं। खुदरा बाजार में मल्टी-ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश से आगामी तीन सालों में एक करोड़ बेहतर रोजगार के अवसर पैदा होंगे और सरकार का राजस्व 25-30 अरब डॉलर बढ़ जायेगा।सरकार के इस प्रायोजित प्रचार का निचोड़ यह है कि उसने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की जो नीति तैयार की है, उससे फायदे ही फायदे हैं, नुकसान कुछ भी नहीं।
पर यक्ष प्रश्न यह है कि खुदरा बाजार में मल्टीब्रांड एफडीआई से क्या बेकाबू महँगाई से निजात मिल जायेगी? इससे रोजगार बढ़ेगा या बेरोजगारी फैलेगी? क्या सभी किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल पायेगा? क्या वास्तव में देश में बैक एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित हो पायेगा और उससे 30-40% कृषि उत्पादों की बर्बादी रुक जायेगी? क्या इससे देश में बढ़ रही आर्थिक विषमता और भौगोलिक विषमता दूर हो जायेगी? और अंतत: क्या इससे देश के समस्त उपभोक्ताओं को फायदा होगा?
भारतीय खुदरा व्यापार संसार में सबसे बड़ा और अनोखा है।देश की कुल श्रम शक्ति का 8% हिस्सा इस क्षेत्र में लगा है।तकरीबन चार करोड़ लोग इस क्षेत्र से अपनी जीविका कमाते हैं। देश में तकरीबन सवा करोड़ से अधिक खुदरा दुकानें हैं, जो बहुत कम पूँजी और श्रम लागत पर अपना कारोबार चलाते हैं। इनमें से केवल 4% दुकानें ऐसी हैं, जिनके पास औसतन 500 वर्ग फुट जगह है।
मल्टी-ब्रांड रिटेल व्यापार में वालमार्ट दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। इसका कुल कारोबार भारत के कुल खुदरा व्यापार से ज्यादा है।वालमार्ट के स्टोरों का औसत क्षेत्रफल 85,000 वर्गफुट है और प्रति कर्मचारी बिक्री का सालाना औसत 1.75 लाख डॉलर है, यानी तकरीबन 87.50 लाखरुपये। दूसरी ओर भारतीय खुदरा व्यापार का प्रति दुकान औसत कारोबार सालाना 1.75 लाख रुपये है।एक अध्ययन के अनुसार वालमार्ट के 10,000 कर्मचारी साढ़े चार लाख खुदरा व्यापार के रोजगार खत्म कर देंगे।
मौजूदा खुदरा बाजार पर तकरीबन 16-20 करोड़ लोग आश्रित हैं। ये लोग कंगाली का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो जायेंगे, क्योंकि इस क्षेत्र में जो लोग हैं, वे न तो ज्यादा शिक्षित हैं, न ही जी-तोड़ शारीरिक श्रम के काबिल हैं।केंद्र सरकार के श्रम सचिव ने खुदरा व्यापार में रिटेल एफडीआई के बारे में आगाह किया है और बेरोजगारी फैलने की चेतावनी दी है।केंद्र सरकार का यह फर्ज बनता है कि वह इस दस्तावेज को सार्वजनिक करे।
विदेशी मल्टी-ब्रांड स्टोर 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में ही खुलेंगे।ऐसे शहरों की कुल आबादी तकरीबन 12 करोड़ है।जाहिर है कि इतनी आबादी के ही मद्देनजर निवेश करने वाली विदेशी कंपनियाँ बैक एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करेंगी। सरकार का यह उद्घोष कि इससे गाँवों में बैक एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर का जाल फैल जायेगा, खोखला है।इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।दूसरा, गाँवों में न पर्याप्त सड़क है न बिजली।जाहिर है कि ये कंपनियाँ इन चीजों में निवेश नहीं करेंगी।
सरकार का दावा है कि मल्टी-ब्रांड रिटेल स्टोरों के कारण महँगाई खत्म हो जायेगी, क्योंकि ये स्टोर सीधे किसानों से उत्पाद खरीदेंगे।नतीजतन बिचौलिये न होने के कारण उपभोक्ता को सामान सस्ता मिलेगा। बिग बाजार और रिलायंस फ्रेश जैसे देसी मल्टी-ब्रांड स्टोर आये हुए एक दशक हो चुका है। तब भी ऐसा ही दावा किया गया था। लेकिन देसी कॉर्पोरेट स्टोर अब भी मंडियों से ही कृषि उत्पाद खरीदते हैं क्योंकि हजारों छोटे किसानों से सीधे उत्पाद खरीदना उनके लिए मुश्किल है।इसलिए विदेशी मल्टीब्रांड स्टोर सीधे किसानों से उत्पाद खरीदने में सक्षम हो पायेंगे, यह संदिग्ध है।इसे आप हमारी ढाँचागत कमजोरी भी कह सकते हैं और शक्ति भी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)