भारतीय रिजर्व बैंक ने पेमेंट बैंकों और छोटे बैंकों की स्थापना के लिए अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं।
इन बैंकों को खोले जाने का उद्देश्य वित्तीय समावेश और बचत को बढ़ावा देना है। इन श्रेणियों में बैंक खोलने के लिए न्यूनतम 100 करोड़ रुपये की पूँजी का होना अनिवार्य है। छोटे कारोबारियों, किसानों और श्रमिकों तक बैंकिंग सेवाओं की पहुँच बनाने के साथ उन्हें छोटे कर्ज भी उपलब्ध कराये जायेंगे।
आरबीआई के दिशानिर्देशों के मुताबिक दूरसंचार, सुपरमार्केट श्रृंखलाएँ, मोबाइल, पीएसयू और रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियाँ पेमेंट बैंक की स्थापना के लिए योग्य हैं, जबकि एनबीएफसी और ग्रामीण/अद्र्धशहरी क्षेत्रों में पहुँच रखने वाले एमएफआई छोटे वित्तीय बैंकों के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को छोटे बैंक खोलने से दूर रखा गया है।
आरबीआई के मुताबिक प्रमोटर मौजूदा व्यावसायिक बैंकों के साथ मिल कर संयुक्त उपक्रम के जरिये भी पेमेंट बैंक की स्थापना कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कारोबार चलाने का पाँच साल का अनुभव होना आवश्यक है। इन बैंकों में शुरुआती दौर में प्रति व्यक्ति सिर्फ एक लाख रुपये तक की अधिकतम राशि जमा करने की इजाजत होगी।
पेमेंट बैंक पैसे जमा करने, पैसे निकालने, पैसे भेजने, एटीएम कार्ड और वित्तीय उत्पादों जैसे म्यूचुअल फंड और बीमा जैसी सुविधाएँ ग्राहकों को मुहैया करा सकेंगे, लेकिन क्रेडिट कार्ड जारी नहीं कर पायेंगे। प्रवासी भारतीय पेमेंट बैंकों में खाता नहीं खुलवा सकेंगे। पेमेंट बैंक घुमंतू (माइग्रैंट) श्रमिकों, कम आय वाले लोगों, छोटे कारोबारों और अन्य असंगठित क्षेत्र की इकाइयों के लिए पैसे भेजने की सेवा उपलब्ध करायेंगे। लेकिन कर्ज देने की सुविधा इन बैंकों के पास नहीं होगी। पेमेंट बैंकों में विदेशी हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए लागू एफडीआई नियमों के अधीन है।
आरबीआई के दिशानिर्देशों के मुताबिक छोटे वित्तीय बैंक बचत करने और राशि भेजने के साथ छोटे कारोबारियों, कारोबारी इकाईयों, किसानों और असंगठित क्षेत्र की इकाइयों को कर्ज दे सकेंगे। छोटे बैंकों पर आरबीआई के सीआरआर, एसएलआर नियम लागू होंगे। इन बैंकों के लिए मसौदा दिशानिर्देश 17 जुलाई को जारी किये गये थे और आरबीआई के ये अंतिम निर्देश मसौदा नियमों से मिलते-जुलते ही हैं। इन दोनों श्रेणियों में बैंक खोलने के लिए आवेदकों को 16 जनवरी 2015 तक आवेदन करना होगा।
किसान विकास पत्र फिर से शुरू, कालेधन की आशंका
डाकघर में निवेश विकल्प किसान विकास पत्र (केवीपी) को 19 नवंबर को फिर से शुरू कर दिया गया। इसमें न्यूनतम एक हजार रुपये से निवेश शुरू किया जा सकता है। इसमें लगाया गया पैसा आठ साल चार महीने की अवधि में दोगुना हो जायेगा। हालाँकि यह विकल्प है कि ढाई साल बाद भी इसमें से पैसा निकाला जा सकता है। आम बजट के दौरान ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे दोबारा लाये जाने की बात कही थी।
केंद्र सरकार द्वारा संचालित किसान विकास पत्र लंबी अवधि के लिए निवेश का जरिया है। इसका लाभ डाकघर के जरिए लिया जा सकता है। मगर ध्यान रखना चाहिए कि केवीपी में किये गये निवेश पर आयकर अधिनियम (आईटी ऐक्ट) की धारा 80सी के अंतर्गत कर छूट का लाभ नहीं मिलता है।
वहीं, विपक्ष ने केवीपी पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि इससे काले धन को बढ़ावा मिलेगा। कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने श्यामला गोपीनाथ समिति की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि समिति ने मनी लांड्रिंग और वित्तीय अनियमित्ताओं पर लगाम कसने के लिए केवीपी को बंद करने की सिफारिश की थी और इसीलिए केवीपी योजना को बंद करने का फैसला किया गया था।
दूसरी ओर केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा का तर्क है कि हाल के वर्षों में बचत दर में आयी गिरावट को देखते हुए केवीपी को दोबारा शुरू करने का फैसला किया गया। देश में इस समय बचत दर 30% से नीचे चली गयी है, जो पहले 36% से अधिक हुआ करती थी। केवीपी के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह जरूरी किया गया है कि निवेशक पहचान और आवास के प्रमाण उपलब्ध कराये। साथ ही 50,000 रुपये से अधिक राशि जमा करने पर पैन नंबर भी बताना होगा।
बैंक खाते से ज्यादा लेनदेन पर लग सकता है टैक्स
एक दिन में बैंक खाते से तय सीमा से अधिक पैसे के लेनदेन पर अब आपको कर का भुगतान करना पड़ सकता है। देश में काले धन पर निगरानी रखने के लिए पार्थसारथी शोम समिति ने बैंकिंग कैश ट्रांजैक्शन टैक्स (बीसीटीटी) लगाने का प्रस्ताव सरकार को दिया है। सबसे पहले वर्ष 2005 में यूपीए शासनकाल के दौरान बीसीटीटी को देश में लागू किया गया था। इसके तहत व्यक्तिगत खाते से एक दिन में 50 हजार रुपए से ज्यादा की नगदी के लेन-देन पर टैक्स चुकाना होता था। वहीं, अन्य खाते से एक लाख रुपए से ज्यादा के लेन-देन पर टैक्स लगता था। अप्रैल 2009 में इसे यूपीए सरकार ने हटा लिया था।
शोम कमेटी ने सरकार से यह भी सिफारिश की है कि अगले तीन सालों में करदाताओं की संख्या मौजूदा 3 करोड़ से बढ़ा कर 6 करोड़ करना चाहिए। समिति ने कहा है कि बड़े किसानों को भी आय कर के दायरे में लाना चाहिए। इसके मुताबिक काफी ऊँची, जैसे कि सालाना 50 लाख रुपये से अधिक कृषि आय वाले किसानों पर आय कर लगना चाहिए। हालाँकि समिति की इस सिफारिश को सरकार ने स्पष्ट रूप से नकार दिया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोक सभा में स्पष्ट किया है कि सरकार कृषि आय पर आय कर लागू नहीं करेगी।
शोम समिति ने कहा है कि सरकार को अपना ध्यान नये करदाताओं और उन क्षेत्रों पर देना चाहिए, जो कि अब भी कर के दायरे से बाहर हैं। समिति ने यह भी कहा है कि अधिकांश छोटे उद्योग कर के दायरे से बाहर हैं, जिन्हें इस दायरे में लाने की जरूरत है। शोम समिति ने कहा है कि असंगठित खुदरा विक्रेताओं की मानसिकता कर न देने की है और इनमें से अधिकांश ने राज्य स्तर पर वैट और केंद्र स्तर पर आय कर एवं सर्विस टैक्स का पंजीकरण भी नहीं कराया है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)