रवि सिन्हा, सीईओ, ट्रैक2रियल्टी :
भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र के रुझान को समझ पाना बड़ा मुश्किल होता है,
क्योंकि इस बाजार के हर एक छोटे हिस्से में अपना अलग ही रुझान चल रहा होता है। लेकिन मोटे तौर पर यह क्षेत्र जिन खास मुद्दों से जूझ रहा है, वे हैं धीमी बिक्री, नकदी की कमी, स्वीकृति में परेशानी और निवेशकों का हट जाना। अटकी हुई आवासीय परियोजनाओं से निवेशक निकल रहे हैं और रीट यानी रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट का रास्ता साफ होने के मद्देनजर व्यावसायिक परियोजनाओं में पैसा लगा रहे हैं।
बीते एक साल में जमीन-जायदाद की कीमतें घटी भी हैं और नहीं भी। यह विरोधाभास इसलिए है कि जहाँ निर्माताओं (डेवलपरों) ने आम ग्राहकों के लिए कीमतों को लेकर बड़ा सख्त रवैया अपनाये रखा, वहीं अंडरराइटरों और संस्थागत निवेशकों के लिए उन्होंने हर तरह के विकल्प खुले रखे। इसलिए हो सकता है कि एक आम ग्राहक अगर अपार्टमेंट खरीदने के लिए सीधे निर्माता के पास जाये तो शायद उसे बाजार की वास्तविक कीमत से ज्यादा महँगे दाम मिलें।
बाजार के धीमेपन के बीच यह बात विडंबना ही लगेगी कि इस दौरान लक्जरी मकानों की बिक्री सबसे बेहतर रही। इसका सीधा कारण यह है कि इस श्रेणी के मकानों के खरीदार मंदी से बेअसर होते हैं। वहीं व्यावसायिक भवनों में दफ्तर और रिटेल दोनों श्रेणियों पर धीमेपन का सबसे बुरा असर दिखा। दक्षिण भारत में बेंगलूरु और कोयंबटूर जैसे बाजार बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे, जबकि मुंबई और दिल्ली-एनसीआर के बाजारों को निवेशकों के निकल जाने की वजह से झटका लगा।
हाल के कानूनी विवादों के मद्देनजर उन परियोजनाओं को खरीदारी के लिए सुरक्षित माना जा सकता है, जिनमें किसानों और निर्माताओं के बीच सरकारी एजेंसियों ने बीच की कड़ी की भूमिका नहीं निभायी हो। जिन स्थानों पर निर्माताओं ने सीधे किसानों से जमीन खरीदी हो, मिसाल के तौर पर राजनगर एक्सटेंशन, वहाँ कोई खास कानूनी मुद्दा नहीं है। लेकिन घर खरीदने वालों को किसी भी संपत्ति की खरीदारी से पहले पूरी जाँच-परख कर लेनी चाहिए। दिल्ली-एनसीआर में बेहतर है कि आप जाँच-परख के लिए कुछ हजार रुपये खर्च दें, बजाय इसके कि बाद में फँस जायें। मकान देने की समय-सीमा और देरी पर जुर्माने समेत निर्माताओं की ओर से किये जाने वाले हर दावे को एकदम स्पष्ट लिखित रूप में लेना चाहिए।
अगले एक साल में अनुमान है कि व्यावसायिक संपत्तियों का बाजार तेजी पकड़ेगा क्योंकि रीट का रास्ता खुल गया है। साथ ही व्यावसायिक संपत्तियाँ अब अपनी तलहटी से उबरने लगी हैं। लेकिन आवासीय संपत्तियों के बाजार में कोई बड़ी तेजी आने की उम्मीद नहीं है। उल्टे ऐसा लगता है कि आवासीय श्रेणी में अभी एक गिरावट आनी बाकी है।
आने वाले महीनों में बेंगलूरु और कोयंबटूर जैसे दक्षिण भारतीय बाजार निवेश के लिए अच्छे लगते हैं। मुंबई में कुछ गिरावट आ सकती है। दिल्ली-एनसीआर के कुछ हिस्से आकर्षक लगते हैं, लेकिन पूरा क्षेत्र नहीं। ग्रेटर नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन, यमुना एक्सप्रेसवे, न्यू गुडग़ाँव और द्वारका एक्सप्रेसवे (एनपीआर यानी नॉर्दर्न पेरिफेरी रोड) आकर्षक लग रहे हैं। यहाँ मध्यम श्रेणी के मकानों में तेजी रह सकती है।
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)