सुशांत शेखर :
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 1993 के बाद से आवंटित किये गये 218 कोयला ब्लॉकों में से 214 के आवंटन रद्द कर दिये।
प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने सिर्फ चार कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द नहीं किया। रद्द होने से बचे कोयला ब्लाकों में एनटीपीसी और सेल के एक-एक ब्लॉक और एडीएजी के अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट यानी यूएमपीपी को दिये गये दो ब्लॉक शामिल हैं।
इससे पहले 25 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कह दिया था कि 1993 से 2010 के बीच के ये सारे आवंटन मनमाने ढंग से किये गये थे। पिछले दो दशकों में 36 स्क्रीनिंग कमिटियों ने अवैध और मनमाने तरीके से कोल ब्लॉक आवंटित किये। न ही ये आवंटन पारदर्शी थे और न ही सही ढंग से किये गये।
अदालत ने छह महीनों के भीतर संबंधित कंपनियों को इन कोयला ब्लॉकों से अपना कामकाज समेट लेने को कहा है। इस बीच अगर नीलामी की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो उन ब्लॉकों की जिम्मेदारी कोल इंडिया को दे दी जायेगी।
अदालत ने उत्पादन शुरू कर चुके 40 और उत्पादन के लिए तकरीबन तैयार हो चुके 6 यानी कुल 46 ब्लॉकों को कुछ रियायत देने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। न्यायालय ने इन कंपनियों पर ब्लॉक से 31 मार्च 2015 तक निकाले गये कोयले पर 295 रुपये प्रति टन की दर से जुर्माना भी लगाया है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियों पर जुर्माने का बोझ करीब 10,000 करोड़ रुपये का हो सकता है। प्रभुदास लीलाधर की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले जिंदल स्टील एंड पावर पर 3,२५४ करोड़ रुपये का बोझ पड़ सकता है।
साथ ही जिन कंपनियों के कोल ब्लॉकों से उत्पादन शुरू हो चुका है, 2014-15 के दौरान उनके मुनाफे में तेज गिरावट भी दिख सकती है। इस दौरान स्पंज आयरन कंपनियों के मुनाफे में 9-10% और अल्युमीनियम क्षेत्र की कंपनियों के मुनाफे में 3-4% का असर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में निवेश के माहौल पर असर पडऩे की आशंका जतायी जा रही है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 178 कोल ब्लॉक डेवलप करने में कंपनियों ने करीब 2.87 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था। साथ अदालत के फैसले से बैंकों के लाखों करोड़ रुपये फँस गये हैं। जून 2014 तक बैंकों ने इस्पात कंपनियों को करीब 2.65 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया है।
साथ ही बिजली कंपनियों को दिये गये करीब पाँच लाख करोड़ रुपये के कर्ज का कुछ हिस्सा फँस सकता है। दरअसल बैंकों ने ज्यादातर कर्ज बिजली वितरण कंपनियों को दिये हैं। इसके पहले फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर फैसला सुनाते हुए 122 लाइसेंस रद्द कर दिये थे। इससे भी बैंकों को करीब 10,000 करोड़ रुपये की चपत लगी थी।
हालाँकि रिजर्व बैंक ने कोयले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से बैंकों को संभावित नुकसान पर कुछ राहत देने के संकेत दिये हैं। लेकिन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन इस पर पहले सरकार के कदम का इंतजार करना चाहते हैं।
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)