राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
लक्ष्मी धन, समृद्धि, संपदा, भाग्य, वैभव और संपत्ति की देवी है।
लक्ष्मी की पूजा आदिकाल से की जाती है। लक्ष्मी पूजा का सांस्कृतिक प्रभाव इतना गहन है कि गैर हिंदुओं में भी लक्ष्मी पूजा का प्रचलन है। लक्ष्मी को ‘श्री’ संबोधित किया जाता है। भगवान, ऋषियों, मुनियों और श्रद्धेय लोगों के नाम के आगे श्री शब्द के प्रयोग की प्राचीन परंपरा है। इस शब्द के उच्चारण मात्र से ही पवित्रता-सज्जनता का बोध होता है। श्री शब्द का भौतिक संसार में वही महत्व है जो आध्यात्मिक जगत में ‘ओम’ शब्द का है। पुराणों में लक्ष्मी को भूदेवी भी कहा गया है, जो पृथ्वी का पोषण करती है। लक्ष्मी को श्रीदेवी भी कहा गया है, जिन्हें सौभाग्य की देवी माना जाता है। लक्ष्मी माँ स्वरूपा है, जो हमेशा खुले हाथों से आशीर्वाद देने को तत्पर रहती है।
लक्ष्मी की घर-घर में पूजा-अर्चना के बाद भी देश विपन्न बना हुआ है, बल्कि देश में अलक्ष्मी का निवास बढ़ता जा रहा है। अलक्ष्मी को दुर्भाग्य, दरिद्रता, अन्याय, शोषण और भेदभाव का पर्याय माना जाता है। अलक्ष्मी पौराणिक कथाओं के अनुसार लक्ष्मी की बड़ी बहन है। लक्ष्मी की तरह अलक्ष्मी की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी।
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि लक्ष्मी की घर-घर में इतनी आराधना-अर्चना के बाद भी वे देश से क्यों रूठी हुई हैं? उत्तर भी मौजूद है। संस्कृत में यह श्लोक है कि, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहीं देवता निवास करते हैं। स्त्री को शक्ति का पर्याय माना गया है।
स्त्री शक्ति के बिना भगवान भी अशक्त हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू का प्रसिद्ध वाक्य है - नारी की दशा ही उस देश का हाल बयां कर देती है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की प्रशंसनीय तरक्की के बाद भी कुल मिला कर देश में उनकी स्थिति नारकीय है। उनको आज भी देश में तुच्छ, परिवार पर बोझ और भोग की वस्तु माना जाता है। कोख से लेकर जीवनपर्यंत महिलाएँ भारी भेदभाव, अत्याचार, शोषण और हिंसा का शिकार हैं।
हर साल लगभग 10 लाख बच्चियाँ कोख में मार दी जाती हैं। नतीजतन 0-6 आयु-वर्ग में लड़कों के सापेक्ष लड़कियों का अनुपात तेजी से गिर रहा है। सिखों और जैनों में यह समस्या ज्यादा व्याप्त है, जो ज्यादा संपन्न हैं। देश में हर तीसरी महिला पढऩे में असमर्थ है, 55% महिलाओं में खून की कमी है, 92% महिलाएँ किसी-न-किसी स्त्री रोग से पीडि़त हैं। समान काम के लिए महिलाओं को कम मजदूरी मिलती है।
विडंबना यह है कि धर्म में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है। नवरात्रों में पूरे देश में दुर्गा की पूजा की जाती है। प्रधानमंत्री मोदी की हर सभा में भारत माता के जयकारे लगते हैं। वहीं महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों और क्रूर अपराधों से मानवता का सिर शर्म से झुक जाता है। देश में हर बारहवें मिनट में कोई लड़की या महिला यौन उत्पीडऩ का शिकार होती है। हर बत्तीसवें मिनट में कोई महिला या लड़की बलात्कार का शिकार होती है। हर छियासठवें मिनट में किसी महिला की दहेज को लेकर हत्या होती है। हर ग्यारहवें मिनट में कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है। ‘राही’ नामक संस्था की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार 76% बच्चियाँ देश में यौन शोषण का शिकार बनती हैं। आज अलक्ष्मी ने लक्ष्मी को ही नहीं, सरस्वती को भी देश से बाहर धकेल दिया है। विघ्नहर्ता गणेश निस्तेज हो गये हैं। सबको मालूम है कि दीपावली पर लक्ष्मी के साथ गणेश और सरस्वती की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
पश्चिमी देशों में लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश की पूजा-अर्चना नहीं होती है। पर वहाँ इनकी अनुकंपा सबसे ज्यादा है। क्यों? क्योंकि वहाँ महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्राप्त है। आर्थिक विकास और समृद्धि में उनका भारी योगदान है। वहाँ किसी कंपनी या संस्था में महिलाकर्मियों की संख्या कम होती है तो उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है।
देश में टीसीएस की तरक्की-समृद्धि को देख लीजिए। वहाँ महिलाकर्मियों की संख्या संभवत: विश्व में सबसे ज्यादा है। यूरोपीय कंपनी एरिक्सन में महिलाकर्मियों की भर्ती के लिए ज्यादा प्रोत्साहन है। भारत के स्वर्णकाल को याद कीजिए। तब परिवार में, समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा हासिल था। देश में लक्ष्मी को लाना है तो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना और उनका मान-सम्मान करना अनिवार्य है। कहा गया है, ‘यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:’, अर्थात् जहाँ स्त्री की पूजा नहीं होती है वहाँ सारे सद्कार्य भी निष्फल होते हैं।
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)