गुल टेकचंदानी, निवेश सलाहकार :
बाजार की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करेगी कि नरेंद्र मोदी कितनी सीटें जीतने में सफल रहते हैं।
मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, वह तो सब मान ही रहे हैं। अगर वे नहीं बन सके तो बाजार में हलचल हो जायेगी। बाजार को उम्मीद यही है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर आने वाला समय अच्छा रहेगा। वैसे भी अर्थव्यवस्था के वापस सँभलने की उम्मीद है, अभी केवल मानसून को लेकर एक सवाल है।
अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सके तो शेयर बाजार 10% नीचे आ सकता है। ऐसी स्थिति में पैसा बाहर चला जाता है, न केवल शेयर बाजार से बल्कि ऋण बाजार से भी। इससे रुपये पर भी दबाव आयेगा। इस समय तो बाजार यह मान कर ही बैठा है कि मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन चुनावों की भविष्यवाणी कौन कर सकता है? कोई इसका फैसला तो नहीं कर सकता है।
वहीं अगर मोदी बन गये तो बाजार में यहाँ से और भी 10% की तेजी आ सकती है। निफ्टी 7,500 की ओर जा सकता है। बाजार में भी एक लहर बन जाती है। ऐसे में देश का मिजाज सकारात्मक हो सकता है। जो रुकी-थकी हुई परियोजनाएँ हैं, जिनमें निवेश रुका हुआ है, नीतिगत निष्क्रियता की जो बात होती है, इन सब स्थितियों में बदलाव आ सकता है। ऐसा नहीं है कि यह केवल लोगों की उम्मीदें हैं, बल्कि यह प्रतिबद्धता मोदी ने भी जतायी है।
बाजार में यह होता है कि कोई घटना होने पर पहले तो उसे पूरी तरह भुना लिया जाता है, फिर वहाँ से एक हल्की-सी गिरावट आ सकती है। जब मानसून की वास्तविकता सामने आयेगी, तब कुछ नरमी आ सकती है। लेकिन अगले दो-तीन सालों में हमारे देश की अर्थव्यवस्था जिस ढंग से वापस सँभलेगी, उसके मद्देनजर बाजार की संभावनाएँ काफी अच्छी लगती हैं।
निफ्टी के लिए आगे 7,500-7,600 और लंबी अवधि में 8,000 की उम्मीदें की जा सकती हैं। गोल्डमैन सैक्स ने सेंसेक्स के लिए 40,000 की बात कह रखी है। यह सब बातें होती रहेंगी, जरूरत यह है कि बाजार का मिजाज बदले। लोग पैसा लगायें, इसके लिए उनमें यह भरोसा होना चाहिए कि यहाँ से बाजार चलेगा और अर्थव्यवस्था तेज रहेगी।
अभी चुनावी नतीजे आने से पहले भी कोई अच्छा शेयर अगर दिखता है तो मैं खरीदारी करना चाहूँगा। ये ऐसे शेयर हो सकते हैं, जिन पर चुनावी नतीजों का असर न होने वाला हो, शेयर सस्ता हो और आपको समझ आ रहा हो कि एक-दो वर्षों में उनका कारोबार किस तरह आगे बढ़ेगा। बाजार में आप केवल एक व्यक्ति के आधार पर निवेश नहीं करते हैं। आज जिस टीम से लोगों को निराशा है, मनमोहन और चिदंबरम की उसी टीम को कभी ड्रीम टीम कहा जाता था।
मैं अभी अपने शेयरों में कोई खास बिकवाली नहीं कर रहा हूँ। जहाँ मूल्यांकन काफी बढ़ गया है, वैसे ही शेयरों को बेच रहा हूँ। सवाल है कि क्या आप हर बार सरकार बदलने पर अपना पोर्टफोलिओ बदलेंगे? कोई भी गद्दी पर बैठ जाये, आप टूथपेस्ट इस्तेमाल करना तो बंद नहीं करेंगे। बेशक, बाजार की तेजी बनाने में धारणा का महत्व है। अब लोग कह रहे हैं कि रुपये में मजबूती आयेगी, इसलिए आईटी शेयर नीचे जायेंगे। लेकिन अगर रुपये की मजबूती ही किसी शेयर को खरीदने-बेचने का आधार हो तो आप न खरीदें। मैंने आठ चुनाव देखे हैं। बीच में तो हर साल चुनाव होते थे! मैंने कैपिटल गुड्स वगैरह में अपनी स्थिति बना रखी है। मगर मूल बात यह है कि आप चुनाव के आधार पर अपना निवेश नहीं करते हैं। मैं तो निफ्टी 4,700 पर जब था, तब से तेजी की बात करता रहा हूँ। इसलिए मुझे जहाँ मौका मिलता है, वहाँ मैं बिकवाली भी कर लेता हूँ। चुनावी तेजी में हमारे जैसे निवेशकों को छूटने का मौका भी मिलता है। अगर मुनाफा निकालते न रहें तो नये शेयरों को खरीदने के लिए पैसा कहाँ से आयेगा! इसलिए जहाँ भी मूल्यांकन एक हद से ज्यादा दिखने लगता है, वहाँ बेच लेना ठीक रहता है। मेरे काम करने का तरीका तो यही है कि पसंद की भाव पर खरीदना है और पसंद की भाव पर बेचना है।
बाजार की मूल बात यह है कि हर व्यक्ति मुनाफेदारी खरीदता है। इसलिए आपको यह सोचना होगा कि जहाँ भी कंपनियों के मुनाफे काफी बढ़े हैं, जहाँ पूँजी पर लाभ (आरओसी) और इक्विटी पर लाभ (आरओई) ज्यादा हैं, उनके हिसाब से शेयरों को देखा जाये। अब एफएमसीजी या फार्मा के काफी नाम तो पोर्टफोलिओ में पड़े ही रहते हैं, जब तक कि कंपनी निराश न करने लगे। मैं ऐसी रणनीति बना कर नहीं चलता कि पहले एक क्षेत्र चुनूँ और फिर उसमें खरीदारी करूँ। मैं हरेक कंपनी का अलग विश्लेषण करता हूँ।
जो निवेशक अब तक बाजार से दूर रहा हो, उसके लिए मैं कहूँगा कि जब इतने दिनों तक नहीं आये तो थोड़े दिन और रुक जायें और अच्छे से समझ कर आयें। अब चुनावी नतीजे आने से पहले लेने की जरूरत नहीं है। जब भी बाजार किसी भी कारण से गिरे, तब प्रवेश करना ठीक रहेगा। अगर निफ्टी 6,300 या इसके नीचे जाये तो वह खरीदारी का अच्छा स्तर रहेगा।
(निवेश मंथन, मई 2014)