पीयूष गोयल, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और राज्य सभा सांसद, भाजपा :
एनडीए और यूपीए की आर्थिक नीतियों में काफी अंतर है।
यूपीए सरकार महँगाई दर घटाने के लिए ब्याज दरें बढ़ाती है, जबकि हमारा कहना है कि महँगाई दर और ब्याज दर दोनों में कमी आ सकती है अगर आपूर्ति के पक्ष पर ध्यान दिया जाये। वे पहले भ्रष्टाचार करते हैं, उसके बाद ढिंढोरा पीटते हैं कि हम उसको रोकेंगे। हम कहते हैं कि भ्रष्टाचार होने ही नहीं देंगे। सरकार के पास स्वैच्छिक शक्तियाँ क्यों होनी चाहिए? सारे प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य पारदर्शी तरीके से तय होना चाहिए और इसमें सबको समान अवसर मिलना चाहिए।
उनकी सोच है कि सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) बढऩे दो, चालू खाता घाटा (करंट एकाउंट डेफिसिट) बढऩे दो, अर्थव्यवस्था में रोजगार जरूरी नहीं है। हम सरकारी घाटे पर नियंत्रण चाहते हैं। इस बारे में आपने शायद चिदंबरम की वाहवाही सुनी होगी, लेकिन उन्होंने व्यर्थ के खर्चों में तो कटौती जरा भी नहीं की। आपने बजट पढ़ा होगा तो उसमें गैर-योजना व्यय उल्टे बढ़ा ही है और पूँजीगत योजना व्यय में कटौती की गयी है।
भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पैसा उधार ले कर उससे आधारभूत पूँजीगत संपत्ति बनाने के बदले रोजमर्रा के खर्चों में गँवा देता है। एक तरह से आज की पीढ़ी उधार ले रही है और हमारी भावी पीढिय़ाँ ब्याज समेत उसका भुगतान करेंगी। उन्हें उस पैसे का कोई लाभ भी नहीं मिलेगा क्योंकि उससे पूँजीगत चीजें नहीं बनी हैं, हमने उसे अन्य खर्चों में उड़ा दिया है।
वे एयर इंडिया को 30,000 करोड़ रुपये देते हैं। पीएसयू कंपनियों का कुल घाटा पिछले साल 27,000 करोड़ रुपये का रहा है। उन्हें पेशेवर बनाने और सुधारने की कोई योजना यूपीए के पास नहीं है। जहाँ-जहाँ हमारा शासन आया, हमने पीएसयू को पेशेवर बनाया, उन्हें स्वायत्तता दी, जिससे घाटे में चलने वाले पीएसयू भी आज फायदे में हैं।
हम मल्टीब्रांड खुदरा (रिटेल) कारोबार में एफडीआई के घोर विरोध में हैं। सब्सिडी घटाने की जहाँ तक बात है, जैसे-जैसे लोग आत्मनिर्भर होंगे वैसे-वैसे सब्सिडी का बोझ कम होगा। विनिवेश (डिस्इन्वेस्टमेंट) पर हमारी नीति स्पष्ट है कि जो पीएसयू कंपनियाँ हैं, उन्हें पेशेवर बना कर स्वायत्तता दें और सुधार कर उनमें मूल्य-निर्माण करें। गुजरात में हमने राज्य बिजली बोर्ड में सुधार किया। एनडीए-1 में हमने घाटे वाली पीएसयू इकाइयों को बेचा था। जो कंपनियाँ मुनाफे में नहीं आ सकती हैं, उनमें सरकार को घाटा उठाते रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। मारुति में समझौते पर आधारित कुछ प्रतिबद्धताएँ थीं, जिन्हें पूरा करने के लिए विनिवेश किया गया।
वास्तव में गाड़ी बनाना, स्कूटर बनाना, सिलाई मशीन बनाना, हवाई जहाज चलाना - ये सब सरकार के काम नहीं हैं। सरकार को आयुध कारखानों को ठोस बनाना चाहिए, रेलवे को आधुनिक करना चाहिए। सरकार को किन-किन उद्योगों में रहना चाहिए, इस बारे में विस्तृत रूपरेखा तब बनेगी, जब नयी सरकार आयेगी। अभी हमने इस पर विचार किया नहीं है। सरकार आने पर एक-एक चीज को गहराई से देख कर निर्णय लेंगे। जब हम अर्थव्यवस्था की हालत को देखेंगे तो उसके आधार पर आगे का रास्ता तय होगा।
हमारे घोषणा-पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हमें सबसे पहले लोगों का विश्वास पाना है। निवेशकों को यह भरोसा दिलाना है कि वे भारत में व्यवसाय कर सकते हैं और अगर आप भारत में निवेश करेंगे तो आपका पैसा सुरक्षित रहेगा।
लोगों के हित में जो भी आर्थिक सुधार जरूरी होंगे, वे सुधार किये जायेंगे। आज के दिन हमें किसी खास चीज का जिक्र नहीं करना है। लेकिन हम मानते हैं कि हमें लोगों के जीवन में सरकारी दखल को कम करना है। हमने न्यूनतम सरकार, अधिकतम प्रशासन (मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस) की कई बार बात की है। हमारा ध्यान केवल खर्चों का विवरण बनाने के बदले परिणाम पर होगा। मूल रूप से हमारी प्रक्रिया प्रशासनिक और न्यायिक सुधार की रहेगी। हमारा मानना है कि संरचनात्मक सुधार होने चाहिए। यूपीए सरकार के लिए सुधार का मतलब रहा है एफडीआई। उनको और कोई सुधार सूझता नहीं है।
बीमा क्षेत्र में सुधार पर वित्त मामलों की स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी ऑन फाइनेंस) ने जो विचार रखे हैं, उनके आधार पर हम चलेंगे। बीमा कंपनियाँ किस तरह की प्रतिबद्धताएँ सामने रखती हैं, किन कीमतों पर आती हैं, नया पैसा आयेगा या पुराने लेनदेन को ही वैध बनाने की कोशिश करेंगे, उन सब बातों पर विचार करके निर्णय लिया जायेगा।
प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) पर हमारे विचार यूपीए से एकदम 180 डिग्री अलग हैं। हम समझते हैं कि डीटीसी को सरल और तार्किक बनाना होगा। कर संबंधी आतंक (टैक्स टेररिज्म) को खत्म करना होगा। यूपीए ने कर प्रणाली को और जटिल बना दिया है। अभी डीटीसी का जो मसौदा है, उससे हम जरा भी सहमत नहीं हैं।
स्थायी समिति ने इस पर बहुत सारी टिप्पणियाँ की हैं, जो सार्वजनिक हैं। हमें लगता है कि इसे और सरल बनाने की काफी गुंजाइश है। स्थायी समिति ने जो सब बताया था, सरकार ने वे सुधार किये ही नहीं। आप समिति की रिपोर्ट देख लें। मिसाल के तौर पर, गार (जीएएआर) के मसले पर कोई सुरक्षा-प्रावधान नहीं रखे गये। एनआरआई की परिभाषा पर भी हमारा मतभेद था।
आय कर का सरलीकरण और इसे तार्किक बनाना जिससे लोगों को कोई असुविधा नहीं हो, करदाताओं का उत्पीडऩ बंद करना जिससे विश्वास का वातावरण बने, एक साथ कई-कई कर न हों, दुरुपयोग की संभावनाएँ कैसे न्यूनतम की जायें, इन सब बातों को जोड़ते हुए एक सरल कानून बनायेंगे, जिसे लागू करना सरल हो और स्वैच्छिक अधिकार खत्म हो जायें, जिसमें लोगों को न्याय मिले। विवादों का समाधान तेज हो, विदेशी कंपनियों को भी यहाँ आने पर धमकी भरा माहौल न लगे कि सरकार कभी भी कानून बदल सकती है और कुछ भी व्याख्या करके उन्हें परेशान कर सकती है। इन सब चीजों का ध्यान रखते हुए ऐसा कानून बनायेंगे, जो सबको समझ में आ सके, सरल हो और जिसमें सबसे समान व्यवहार हो।
आयकर में छूट की सीमा कितनी बढ़ेगी, यह अभी मैं नहीं कह सकता। यह तो वित्त मंत्री तय करेंगे। मैंने एक सुझाव रखा कि यह सीमा बढऩी चाहिए।
जीएसटी के मसले पर जब तक आप राज्यों की सहमति नहीं लें, उन्हें यह भरोसा नहीं दिलायें कि उनका अगर कुछ नुकसान हुआ तो उसका ईमानदारी से भुगतान होगा और संघीय व्यवस्था के अनुसार राज्यों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं होगी, तब तक मैं नहीं समझता हूँ कि किसी के लिए भी इसे स्वीकार करना संभव होगा। नरेंद्र मोदी ने एक राज्य को चलाया है, इसलिए वे राज्यों की पीड़ा को समझते हैं। हम राज्यों की चिंताओं को लेते हुए आगे चलेंगे।
यदि कांग्रेस से जीएसटी पर सहयोग नहीं भी मिला तो हम वैकल्पिक रास्ते तलाशेंगे। सबसे पहले सारे केंद्रीय करों को मिला कर एक किया जा सकता है। एनडीए के सारे राज्य अपने सारे करों को मिला कर एक बना सकते हैं। हम जब सरलीकरण कर देंगे तो बाकी लोगों को प्रतिस्पर्धी दबाव के चलते साथ आना पड़ेगा। वैट में कुछ मात्रा में ऐसा ही हुआ था।
टॉफी मॉडल का जो विवाद है, उस पर हमने काफी सारे तथ्य सामने रखे हैं। गुजरात सरकार की वेबसाइट पर चले जाइये, सब कुछ है।
(निवेश मंथन, मई 2014)