भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नये बैंक लाइसेंस के लिए दो कंपनियों को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
इन दो कंपनियों में प्रमुख एनबीएफसी कंपनी आईडीएफसी और कोलकता की माइक्रोफाइनेंस कंपनी बंधन फाइनेंशियल सर्विसेज शामिल हैं। आरबीआई की यह सैद्धांतिक मंजूरी 18 महीने के लिए वैध होगी। इस दौरान उन्हें आरबीआई दिशानिदेशों के तहत जरूरी शर्तें पूरी करनी होंगी। इन पर संतुष्ट होने के बाद आरबीआई उन्हें बैंकिंग गतिविधियाँ चालू करने का लाइसेंस देगा।
केवल दो कंपनियों को चुनते हुए आरबीआई ने बड़े कॉर्पोरेट घरानों को पहले चरण से अलग रखा है। इन पर अगले चरण में विचार किया जायेगा। वहीं डाक विभाग के आवेदन के संदर्भ में आरबीआई का कहना है कि केंद्र सरकार की सलाह के बाद ही इसके आवेदन पर विचार किया जायेगा। आरबीआई ने अन्य आवेदकों को सलाह दी है कि जब नियमित आधार पर लाइसेंस देने के लिए दिशा-निर्देश आ जायेंगे, तब वे नये सिरे से आवेदन कर सकते हैं।
बंधन फाइनेंशियल बैंक लाइसेंस पाने वाली पहली माइक्रोफाइनेंस कंपनी है। इसकी 22 राज्यों में 2016 शाखाएँ हैं। गौरतलब है कि बैंक लाइसेंस के लिए कुल 27 आवेदन मिले थे, लेकिन बाद में टाटा संस और वीडियोकॉन ग्रुप ने अपने आवेदन वापस ले लिये थे। आवेदकों में प्रमुख रूप से एलऐंडटी फाइनेंस होल्डिंग, एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस, आदित्य बिरला फाइनेंस, रिलायंस कैपिटल, बजाज फिनसर्व, रेलिगेयर इंटरप्राइजेज, श्रीराम कैपिटल और मुथूट फाइनेंस शामिल थे।
आरबीआई के इस फैसले के बाद ब्रोकिंग फर्म प्रभुदास लीलाधर ने आईडीएफसी पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इसमें खोने के लिए कुछ नहीं है, पर इसके लिए कुछ पाना भी आसान नहीं होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके मूल्यांकन की तुलना नयी पीढ़ी के निजी बैंकों से करना ठीक नहीं होगा। एक एनबीएफसी से बैंक में तब्दील होने की अवधि में जोखिम रहेगा और यह परिवर्तन चुनौतीपूर्ण होगा। प्रभुदास लीलाधर का मानना है कि नये बैंक के लिए चालू खाते (सीए) और बचत खाते (एसए) में जमाराशियाँ जुटाने में चुनौती पेश आयेगी। इसने आईडीएफसी का लक्ष्य भाव 130 रुपये बताया है, जो 2 अप्रैल 2014 के बंद भाव 125 रुपये के पास ही है। इसने निचले भावों पर यह शेयर जमा करते रहने की सलाह दी है।
लेकिन आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने आईडीएफसी को लंबी अवधि के लिए उपयुक्त मानते हुए इसका लक्ष्य भाव 115 से बढ़ा कर 150 रुपये कर दिया है। इसने कहा है कि आईडीएफसी जैसे बड़े कर्जदाता को बैंक में तब्दील होने से पूँजी का सस्ता स्रोत मिलेगा, लिहाजा यह लंबी अवधि में उसके लिए सकारात्मक है।
आईपीओ बाजार में सुधार की उम्मीद
वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान ज्यादातर समय शेयर बाजार की हालत खस्ता रही, जिसका असर पब्लिक इश्यू से जुटायी गयी रकम पर भी दिखा है। इस दौरान आईपीओ से जुटायी गयी रकम 81% से ज्यादा घट कर महज 1,205 करोड़ रह गयी है। पिछले 10 सालों में यह सबसे कमजोर आँकड़ा रहा। हालाँकि जानकार मानते हैं कि वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान आईपीओ बाजार की हालत में सुधार होगा। खराब धारणा, शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव, खराब मूल्यांकन, बिजली, दूरसंचार और रियल एस्टेट की खस्ता हालत जैसी वजहों से पिछले तीन सालों से आईपीओ बाजार की हालत खस्ता है।
इसके साथ ही सरकार भी मार्च 2012 में एनबीसीसी के आईपीओ के बाद किसी कंपनी का आईपीओ लेकर नहीं आयी है। नये वित्त वर्ष में आईपीओ बाजार के हालात सुधरने की उम्मीद है। प्राइम डेटाबेस के आँकड़ों के मुताबिक 900 से ज्यादा कंपनियों ने आईपीओ लाने के इरादे जाहिर किये हैं।
हालाँकि अभी सिर्फ 14 कंपनियों को सेबी से आईपीओ लाने की मंजूरी मिली है, जिनकी कुल 2,796 करोड़ रुपये जुटाने की योजना है। वहीं चार कंपनियों ने 2,700 करोड़ रुपये जुटाने के लिए सेबी को अर्जी दी है। प्राइम डेटाबेस के मैनेजिंग डायरेक्टर पृथ्वी हल्दिया के मुताबिक लोकसभा चुनाव के बाद एक मजबूत सरकार बनी तो निवेश धारणा सुधरेगी और इससे खास कर मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आईपीओ की कतार लग सकती है। शेयर बाजार में अभी से जोरदार तेजी दिख रही है और बाजार नयी ऊँचाइयों को छू रहा है। पिछले कुछ महीने से वैश्विक बाजारों में भी आईपीओ बाजार में सुधार दिखा है और उनके भारतीय आईपीओ में भी दिलचस्पी लेने की उम्मीद है।
मौजूदा वित्त वर्ष में राष्ट्रीय इस्पात निगम, एचएएल, महानगर गैस और कोचिन शिपयार्ड जैसी सरकारी कंपनियों के इश्यू आ सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष में रकम जुटाने के मामले में इक्विटी भले ही फिसड्डी साबित हुई हो, लेकिन निवेशकों ने जोखिम कम करने के लिए बॉन्ड में जम कर निवेश किया है। वित्त वर्ष 2013-14 में निवेशकों ने पब्लिक बॉन्डों में 41,989 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो इसके पिछले वित्त वर्ष से 147% ज्यादा है। यह रकम पिछले 10 सालों में बॉन्ड से जुटायी गयी सबसे ज्यादा रकम है। निवेशकों ने खास कर करमुक्त बॉन्ड इश्युओं में काफी दिलचस्पी दिखायी। वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान बाजार से इक्विटी और बॉन्ड मिला कर 71,370 करोड़ रुपये जुटाये गये, जो इसके पिछले वित्त वर्ष से 13% ज्यादा है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)