नरेंद्र तनेजा, वरिष्ठ पत्रकार :
राहुल गांधी को भले ही हाल में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुए एआईसीसी के सत्र में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न किया गया हो,
लेकिन यह तय हो गया कि वे ही कांग्रेस की कॉकपिट में बैठेंगे। उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करने की मुख्य वजह यह थी कि कांग्रेस चुनाव को राहुल गांधी पर केंद्रित नहीं कराना चाहती थी। अगर चुनाव राहुल गांधी पर केंद्रित हो जाता तो उससे नरेंद्र मोदी को ज्यादा फायदा होता।
कांग्रेस को अच्छी तरह पता है कि वह सत्ता में नहीं लौट रही है। कांग्रेस का खेल इस समय बिल्कुल स्पष्ट है। उसकी नजर 2016 पर है। अभी उसकी रणनीति यह है कि हार सम्मानजनक ढंग से हो। कांग्रेस का प्रयास है कि उसकी सीटों की संख्या 100-120 से नीचे न चली जाये और भाजपा 180 से ऊपर नहीं जा सके। इसके बाद उनकी कोशिश रहेगी कि आम आदमी पार्टी 20-30 सीटें ले कर आ जाये, जिससे एक खिचड़ी सरकार बने। वो खिचड़ी इतनी खराब हो कि लोग उससे त्रस्त हो जायें, फिर 2016 में दोबारा चुनाव हों। कांग्रेस सोचती है कि उसने मनरेगा और खाद्य सुरक्षा कानून जैसे जो कानून बनाये हैं, उनका असर लंबे समय तक रहेगा और उनके फायदे कहीं जाने वाले नहीं हैं। उन्हें लगता है कि इन सब चीजों के फायदे लोगों को 2-3 साल में पता चलने लगेंगे।
नरेंद्र मोदी का भाषण इस तर्ज पर था कि देश और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है, रोजगार पैदा करने हैं, नये शहर बनाने हैं, रेलवे को सुधारना है। यह भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का कच्चा खाका था। नरेंद्र मोदी ने अपना जो आर्थिक दर्शन सामने रखा, उसमें कोई एकदम नयी चीज नहीं थी। लेकिन बहुत समय बाद देश के किसी बड़े नेता ने ऐसी बातें कही हैं। सालों से लोगों को यही सुनाई दे रहा था कि यह घोटाला हो गया, वह स्कैंडल हो गया। भविष्य का भारत कैसा हो, उसकी तो कोई बात ही नहीं कर रहा था। बस सांप्रदायिकता और घोटाले की बातें हो रही थीं।
मोदी के भाषण को सुनते समय मेरे जेहन में यह सवाल जरूर आया कि इन सबके लिए संसाधन कहाँ से आयेंगे? इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गयी। मेरी तो निराशा यह थी कि उन्होंने जितनी बातें कहीं वे मेरी उम्मीदों की तुलना में आधी भी नहीं थीं। मैं इस बात से निराश था कि कितने रोजगार पैदा किये जायेंगे, किस तरह से किये जायेंगे, महिलाओं के रोजगार को कैसे बढ़ाया जाये, इन सबका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। उन्होंने यह नहीं बताया कि किस तरह उद्यमिता को बढ़ावा दिया जायेगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि पक्षपाती पूँजीवाद से निपटने के लिए वे क्या करेंगे?
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)