राजीव रंजन झा :
भारतीय शेयर बाजार में जब सभी लोग बड़े आश्वस्त दिखने लगे थे,
मानने लगे थे कि अब नीचे गिरने की गुंजाइश नहीं लगती और नये रिकॉर्ड स्तरों की ओर बढऩे का समय आ गया है, उसी समय अंतरराष्ट्रीय बाजारों की उठापटक ने परिदृश्य को फिर से झंझावाती बना दिया है।
अमेरिका में फेडरल रिजर्व की ओर से टैपरिंग, यानी बॉण्डों की खरीदारी का कार्यक्रम (क्यूई-3) धीमा करने की प्रक्रिया जारी रखने की संभावना दिख रही है। चीन की अर्थव्यवस्था पर धीमेपन की तलवार लटक रही है। जापान की मुद्रा येन में अचानक तेज उछाल है और इन सबके बीच एशियाई शेयर बाजारों में बुरी तरह घबराहट दिख रही है। आशंका है कि उभरते बाजारों की मुद्राओं में तीखी गिरावट आ सकती है और इस सूनामी की चपेट में रुपया भी आ सकता है। ये सारी बातें भारतीय शेयर बाजार के लिए शुभ नहीं हैं।
बाजार को छका दिया राजन साहब ने फिर से
अपनी 18 दिसंबर 2013 की पिछली नीतिगत समीक्षा में भी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने सबको चौंकाया था, लेकिन ब्याज दरों में वृद्धि होने की आम राय के विपरीत कोई वृद्धि नहीं करके। तब उन्होंने कहा था कि वे दिसंबर महीने में महँगाई दर घटने की उम्मीद कर रहे हैं। उनकी उम्मीद के मुताबिक ही दिसंबर महीने में महँगाई दर घटी भी। इसीलिए 28 जनवरी की नीतिगत समीक्षा से पहले बाजार यह उम्मीदें लगाये बैठा था कि इस बार ब्याज दरों में वृद्धि तो नहीं ही होगी। लेकिन राजन सबको छका गये!
इसी लिए आरबीआई ने 28 जनवरी को जैसे ही रेपो दर को 7.75% से बढ़ा कर 8% करने की घोषणा की, बाजार एकदम से टूट गया। निफ्टी सुबह के कारोबार में कमजोर अंतरराष्ट्रीय संकेतों के बावजूद हल्की बढ़त के साथ 6150 के कुछ ऊपर-नीचे चल रहा था। लेकिन आरबीआई के फैसले की खबर आते ही चंद मिनटों के भीतर यह 6086 तक फिसल गया।
इस प्रक्रिया में निफ्टी ने दिसंबर 2013 में बनी तलहटी 6130 को तोड़ दिया है, जो तकनीकी रूप से बाजार की संरचना के लिए अच्छा नहीं है। अगस्त 2013 के बाद से निफ्टी पहली बार अपनी पिछली तलहटी के नीचे गया है। वहीं दिसंबर के शिखर 6415 के बाद जनवरी में 6358 पर निचला शिखर भी बन चुका है। इसलिए अब निचले शिखर और निचली तलहटियाँ बनने का नया सिलसिला शुरू होने, यानी छोटी से मध्यम अवधि के लिए बाजार का रुख नकारात्मक हो जाने का अंदेशा बन रहा है।
अगर निफ्टी आने वाले सत्रों में 6130 के नीचे ही बना रहे तो छोटी अवधि में यह नवंबर 2013 में बनी दोहरी तलहटी के स्तर 5972 की ओर फिसल सकता है। दरअसल अगस्त 2013 की तलहटी 5701 से दिसंबर 2013 के शिखर 6415 तक की उछाल की 61.8% वापसी का स्तर इसके पास ही 5974 पर है। हालाँकि इस संरचना में बीच में 50% वापसी के स्तर 6058 पर भी एक सहारा बनता है, लेकिन वह शायद ज्यादा मजबूत साबित नहीं हो।
अगर निफ्टी आने वाले हफ्तों में 5972 से भी नीचे जाने लगे, तो यह बाजार के लिए ज्यादा बड़े खतरे का संकेत होगा। निफ्टी के मासिक चार्ट को देखें। अक्टूबर 2008 की तलहटी 2253 से नवंबर 2010 के शिखर 6339 तक की उछाल के बाद निफ्टी जब नीचे फिसला तो इसने 50% वापसी के स्तर 4296 को नहीं तोड़ा। यह इसके ऊपर ही दिसंबर 2011 में 4531 से पलटा। इसके बाद से यह एक ऊपरी रुझान बना कर ही चलता रहा है, क्योंकि हर अगली बड़ी तलहटी पिछली बड़ी तलहटी से ऊपर है। इसने 4531 के बाद जून 2012 में 4770 और फिर अगस्त 2013 में 5119 की तलहटी बनायी।
इस मासिक चार्ट में एक ऊपर चढ़ती पट्टी भी दिख रही है, जो दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 से अब तक की चाल दिखाती है। इस पट्टी की चर्चा मैंने पहले भी की है, लेकिन अब ताजा सूरत के हिसाब से यह पट्टी कहीं ज्यादा स्पष्ट ढंग से दिख रही है। अब तक निफ्टी इस पट्टी के अंदर ही रह कर ऊपर चढ़ता नजर आ रहा है।
दिसंबर 2013 में बना 6415 का नया रिकॉर्ड स्तर इस पट्टी की ऊपरी रेखा पर ही है। अभी यह रेखा लगभग 6450 के पास है, जिसे अगला लक्ष्य या अगली बाधा मान सकते हैं। इस पट्टी की ऊपरी रेखा के पास होने के चलते अभी काफी सावधान रहने की जरूरत है। जिस तरह निफ्टी दिसंबर 2013 में 6415 तक जाने के बाद जनवरी में 6३58 पर ही अटक गया और कई बार प्रयास करके भी इससे आगे नहीं जा सका, उससे स्पष्ट है कि फिलहाल 6415 पर इसने एक शिखर बना लिया है। ऐसे में अगर यह पलट कर इस पट्टी की निचली रेखा को छूने के लिए फिसले तो यह निचली रेखा उसे 5300 के आसपास ही सहारा दे पायेगी। गौरतलब है कि 2253-6339 की संरचना में पिछले शिखर 6339 के बराबर ही अगर लगभग 6400-6450 के पास से निफ्टी नीचे फिसला तो 23.6% वापसी का स्तर 5374 का है। यानी 6415 के ताजा शिखर से निफ्टी में लगभग 1000-1100 अंकों की बड़ी गिरावट की संभावना बन सकती है।
भाजपा दौड़ में आगे, लेकिन मंजिल है दूर
दिसंबर 2013 के पहले हफ्ते में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से पहले ही ‘निवेश मंथन’ के लिए अपने लेख में मैंने लोकसभा चुनावों के संदर्भ में कहा था कि कांग्रेस की सीटें घटने की बहुत साफ भविष्यवाणी की जा सकती है, वहीं दावे के साथ यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा बहुमत के लिए जरूरी आँकड़ा जुटाने की स्थिति में आ चुकी है। लोकसभा के लिए चुनावी प्रचार अभियान अब शुरू हो चुका है और ताजा जनमत सर्वेक्षण वही निष्कर्ष दे रहे हैं। अब यह तो स्पष्ट है कि कांग्रेस अपनी अब तक न्यूनतम संख्या की ओर बढ़ रही है। लेकिन क्या भाजपा अपनी अधिकतम संख्या की ओर बढ़ पायेगी? यह आज भी एक बड़ा प्रश्न-चिह्न है।
भाजपा के लिए सबसे सकारात्मक सर्वेक्षण एबीपी नीलसन का है, जिसने भाजपा को 210 और एनडीए को 226 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। लेकिन इंडिया टुडे और सी-वोटर का ताजा सर्वेक्षण बता रहा है कि भाजपा को देश भर में 188 सीटें मिल सकती हैं। दूसरे सर्वेक्षणों के अनुसार भी भाजपा को पिछले चुनाव की तुलना में बढ़त मिल रही है, लेकिन 200 से आगे जा सकने के अनुमान नहीं हैं। गठबंधन के सहयोगियों को मिला लें, तो एनडीए की संख्या 200 सीटों से कुछ ऊपर जा रही है। ऐसी स्थिति में शेयर बाजार के लिए खुश होने वाली कोई खास बात नहीं है, क्योंकि सीएलएसए ने तो विधानसभा चुनावों से पहले ही अपनी रिपोर्ट में भाजपा को 202 सीटें मिलने का अनुमान सामने रख दिया था। तब बाजार गोल्डमैन सैक्स की टिप्पणियों और सीएलएसए के सर्वेक्षण के उस अनुमान पर उछल गया था। इसलिए ताजा सर्वेक्षणों के जो अनुमान आये हैं, वे तो बाजार के मौजूदा भावों में पहले से ही शामिल हैं।
कुछ लोगों को लग रहा है कि कांग्रेस के लिए आगामी लोकसभा चुनाव 1977 जैसे होंगे। लेकिन 1977 में भी कांग्रेस आज से बहुत बेहतर हालत में थी। उस चुनाव में कांग्रेस गठबंधन ने 189 सीटें और खुद कांग्रेस ने 154 सीटें जीती थीं। आज तो जनमत सर्वेक्षण 100 से कम सीटों की बातें कर रहे हैं और मुझे डर है कि कहीं यह 50-60 सीटों की ओर न फिसल जाये। उत्तर भारत में तो सफाया तय है ही, दक्षिण भारत में भी कोई खास ठौर-ठिकाना नहीं दिख रहा।
लेकिन इस आँकड़ेबाजी के बीच शेयर बाजार के लिए तो मूल प्रश्न एक ही है कि क्या भाजपा की सरकार बन पायेगी? इससे आगे बाजार का प्रश्न यह है कि क्या नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन पायेंगे? बीते कई सालों से कांग्रेस से बुरी तरह निराश शेयर बाजार ने अपनी सारी उम्मीदें मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से बाँध ली हैं। ताजा सर्वेक्षण बाजार को इस बारे में उम्मीद तो जगाते हैं, लेकिन पक्का भरोसा नहीं दिलाते।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)