कमर वहीद नकवी, संपादकीय निदेशक, इंडिया टीवी:
अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के विधान सभा चुनाव में मिली सफलता दिखाती है कि जनता देश की राजनीति और राजनीतिक दलों से किस हद तक निराश हो चुकी है।
यह उस निराशा की ही अभिव्यक्ति है। लोगों को लगता है कि केजरीवाल सचमुच आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं। आम आदमी के दिल के तार केजरीवाल ने छुए हैं।
पिछले डेढ़ साल में केजरीवाल ने लोगों को सीधे-सीधे जोड़ा है। यह जरूर है कि उम्मीद कुछ जरूरत से ज्यादा जग गयी है। कई बार जब उम्मीद बहुत ज्यादा हो जाती है तो निराशा भी बहुत जल्दी आती है। केजरीवाल के लिए सबसे बड़ा खतरा यही है। बात केवल इतनी ही नहीं है कि वायदे पूरे कर पायेंगे या नहीं। उनको यह चीज देखनी पड़ेगी कि वायदों को भरोसेमंद ढंग से पूरा करें। जनता को यह न लगे कि जनता के टैक्स के पैसे की बरबादी है। उन्होंने राजनीतिक जीवन में शुचिता की बात की है। अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो बाकी परंपरागत राजनीतिक दलों को अपने-आप को पूरी तरह बदलना पड़ेगा। केजरीवाल की टीम पर सबसे ज्यादा निगाह इसी मुद्दे पर रहेगी कि कैसे अपने-आपको भ्रष्टाचार की काजल की कोठरी से बचा के रखते हैं।
अगले लोक सभा चुनाव में ‘आप’ की लोकप्रियता बढऩे से नुकसान किसका होगा, यह हम अभी कह नहीं सकते। जब शुरू में ‘आप’ ने विधान सभा चुनाव में लडऩा शुरू किया तो ज्यादातर लोगों ने कहा कि वह भाजपा का वोट काटेगा। यही माना गया कि जो कांग्रेस-विरोधी वोट हैं, ‘आप’ उसी को बाँटेगी और कांग्रेस का वोट तो कांग्रेस को मिल ही जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा का वोट तो कुछ बढ़ ही गया, जबकि आप ने कांग्रेस के काफी वोट ले लिये। मुझे लगता है कि जनता जिस जगह पर जिस पार्टी से ज्यादा असंतुष्ट होगी, उसी के बदले में ‘आप’ को विकल्प के तौर पर लाना चाहेगी। यह हो सकता कि लोक सभा चुनाव में विभिन्न राज्यों में ‘आप’ उन राज्यों में मौजूद तीसरी शक्तियों के वोट भी बाँटे।
दिल्ली में तो विधान सभा का चुनाव था, लेकिन आगे मामला लोक सभा का है। लोक सभा चुनाव में जनता यह देखती है कि ऐसी सरकार बने जो देश को मजबूती दे सके, जो देश में स्थिरता को बनाये रख सके। बहुत बार ऐसा हुआ है कि विधान सभा चुनाव के तीन-चार महीने बाद लोक सभा चुनाव हुए तो जनता ने दूसरे दल को वोट दे दिया और जिसको विधान सभा में हराया था, उसे लोक सभा में जिता दिया। इसलिए अभी से अनुमान लगाना कठिन है कि क्या होगा? लेकिन यह जरूर है कि ‘आप’ ने जो बातें कही हैं उनमें से वे कुछ कर पाये तो एक बड़ी ताकत बन कर उभरेंगे, चाहे अभी इनके पास ढाँचा हो या न हो। लोग उनसे जुड़ रहे हैं।
अजय उपाध्याय , वरिष्ठ पत्रकार :
आम आदमी पार्टी के उभरने से निश्चित तौर पर आगामी लोक सभा चुनाव रोचक हो गया है और 2014 का आम चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव होगा। इस चुनाव में ‘आप’ का कितना प्रभाव रहेगा, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन प्रभाव तो निश्चित तौर पर पड़ेगा। बड़े शहरों में इनका ठीक-ठाक असर दिख सकता है। अब बड़े शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में इनका कितना असर पड़ता है, यह देखने वाली बात होगी। ये लोग भी आक्रामक और पेशेवर प्रचारक हैं। गाँव-गाँव में फैल जाना इन लोगों के लिए बहुत मुश्किल नहीं है। कुल मिला कर इनका ठीक-ठाक प्रभाव पड़ेगा। जहाँ तक लोक सभा के चुनावी समीकरणों का सवाल है, वह पहले तो यही था कि कांग्रेस कमजोर हो रही है और भाजपा मजबूत है, क्योंकि मोदी का एक बड़ा असर है। कांग्रेस इस हिसाब से देख रही है कि अगर अरविंद केजरीवाल आयेंगे तो भाजपा का वोट काटेंगे और मोदी के रास्ते में रोड़ा बनेंगे। अभी तक यही था कि मोदी आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अब मोदी के साथ इसमें एक और व्यक्ति आ गया है। वह ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वे बस किसी एक का नुकसान करेंगे। दरअसल वे कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुँचायेंगे। लेकिन वे किसको असली चोट पहुँचायेंगे, यह देखने वाली बात होगी। अक्सर ऐसा होता है कि डूबते जहाज को ही लोग जल्दी छोड़ते हैं।
दिल्ली चुनाव में ‘आप’ के बेहतर प्रदर्शन के कई मायने हैं। इसकी कई तरीके से व्याख्या की जा सकती है। ‘आप’ पर ठीक से नजर रखनी होगी, क्योंकि यह एक ऐसे कारक के रूप में उभर रहा है जो किसी भी तरफ पासा फेंक सकता है और किसी भी तरफ पलड़े को झुका सकता है। यह बात जरूर है कि विधान सभा चुनाव के पहले के जो समीकरण थे, अब वे बदल गये हैं। यह तो कहा ही जा सकता है कि ‘आप’ के उभरने के चलते राजनीतिक परिदृश्य पहले से ज्यादा अनिश्चित हो गया है। जहाँ तक भाजपा की बात है, उसमें तीन तरह की बातें हैं। अगर 200 से ज्यादा सीटें भाजपा को मिलती हैं तभी मोदी प्रधान मंत्री बन पायेंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके साथ बहुत से सहयोगी दल नहीं आयेंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि यदि भाजपा को 180 से ऊपर सीटें भी मिलीं तो जोड़-तोड़ कर के मोदी प्रधान मंत्री बन जायेंगे। लेकिन अगर भाजपा 180 सीटें भी नहीं पाती है तो मोदी के प्रधान मंत्री बन सकने पर एक प्रश्न चिह्न है।
इसके बाद सवाल यह है कि सबसे बड़े दल के तौर पर कौन उभरता है और कौन गठबंधन बना सकता है। इसमें तीसरे मोर्चे की भी थोड़ी गुंजाइश बढ़ती ही जायेगी।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)