पंकज पांडेय, रिसर्च प्रमुख, आईसीआईसीआई डायरेक्ट :
निवेशकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि इक्विटी यानी शेयर और ऋण (डेट) में निवेश की तुलना ठीक नहीं है।
किस निवेशक के लिए दोनों में से किसमें कितना निवेश बेहतर रहेगा, यह उस व्यक्ति की जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है। शेयरों में निवेश करना ज्यादा जोखिम भरा है, लेकिन यह कहीं ज्यादा लाभ हासिल कर महँगाई को पछाडऩे का अवसर भी देता है। वहीं ऋण में निवेश करना सुरक्षित है और इसमें एक स्थिर लाभ मिलता है। बाजार के मौजूदा परिदृश्य में ऋण में निवेश पर यील्ड (लाभ की दर) अपने सर्वोच्च स्तरों के पास है, जबकि शेयर बाजार में ज्यादा उत्साह नहीं लग रहा है। इसलिए समझदारी भरी रणनीति यही होगी कि अपने नये निवेश का ज्यादा हिस्सा ऋण में लगायें।
बीते दो सालों में सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 6-7% बढऩे के बाद इस साल भी इसकी वृद्धि दर मध्य इकाई अंक में ही रहने की संभावना है। वैश्विक के साथ-साथ घरेलू बाजार में भी नकदी (लिक्विडिटी) में कमी के मद्देनजर शेयरों को मिलने वाले मूल्यांकन (पीई) में वृद्धि की संभावना नहीं लगती है। लिहाजा निकट भविष्य में शेयर बाजार से उम्मीदें हल्की ही हैं। हालाँकि निवेशकों को बुनियादी रूप से मजबूत व्यवसाय वाली कंपनियों के शेयरों को आकर्षक मूल्यांकन पर खरीद कर लंबी अवधि का इक्विटी पोर्टफोलिओ बनाना चाहिए।
जो निवेशक इस समय जोखिम से एकदम बचना चाहते हैं, उनके लिए एफएमपी दरअसल ऋण म्यूचुअल फंडों की ऐसी श्रेणी है, जो लगभग न के बराबर उतार-चढ़ाव के साथ पूँजी की सुरक्षा भी प्रदान करती है। निवेश के अन्य ऐसे विकल्पों में अच्छी गुणवत्ता के कॉर्पोरेट एफडी और करमुक्त बांडों को लिया जा सकता है।
एफएमपी में निवेश का फैसला इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि निवेश की समयावधि क्या है। आम तौर पर विभिन्न एएमसी के एफएमपी में ज्यादा अंतर नहीं होता। उनमें आवेदन की अवधि कब से कब तक है, इसी बात पर निवेश का फैसला ज्यादा निर्भर करता है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)