राजीव रंजन झा:
महीने भर पहले जब मैंने निवेश मंथन के नवंबर अंक में राग बाजारी के शीर्षक में लिखा कि निफ्टी का अगला स्वाभाविक लक्ष्य है 5978, तो मुझे लिखने से पहले जरा सोचना पड़ा था।
उस समय बाजार का मिजाज ऐसे शीर्षक से मेल नहीं खा रहा था। उस समय निफ्टी 5645 पर था और अक्टूबर के पहले हफ्ते से लगातार दबाव में, लेकिन छोटे दायरे में फँस कर चल रहा था। तब मैंने शेयर मंथन वेबसाइट में अपने स्तंभ में 30 अक्टूबर को लिखी यह बात भी दोहरायी थी कि ‘इतना तय है कि बाजार में एक बड़ी चाल आने वाली है। बीते 5 हफ्तों से दबा स्प्रिंग जब छूटेगा तो निफ्टी के चार्ट पर रॉकेट जैसी चाल दिखेगी।'
यह स्प्रिंग कुछ और हफ्तों तक दबा रहा और छूटा नवंबर के अंत में। नतीजा हमारे सामने है। सीधे 20 नवंबर के निचले स्तर 5548 से लेकर इन पंक्तियों को लिखते समय सात दिसंबर के ऊपरी स्तर 5950 तक, यानी लगभग 400 अंक की उछाल तो आ चुकी है और 5978 का लक्ष्य लगभग पूरा हो चुका है।
इस समय निफ्टी 6000 के स्तर के काफी करीब है और यह स्तर मनोवैज्ञानिक रूप से एक बाधा का काम भी कर सकता है। दरअसल जब आप जानकारों की बातें सुनते हैं तो ऐसा लगता है मानो उनके 6050, 6100 या 6150 के लक्ष्य तक जाने में बाजार को कुछ मशक्कत करनी पड़ेगी और इन लक्ष्यों पर चले जाना बाजार के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
लेकिन गणित के लिहाज से शुक्रवार सात दिसंबर के बंद स्तर 5907 की तुलना में 6000 का स्तर केवल 1.6% दूर है। अगर और ज्यादा दूर लगने वाले 6150 के स्तर की बात करें तो 4.1% की उछाल निफ्टी को वहाँ तक ले जायेगी। इतना तो किसी अच्छे हफ्ते में निफ्टी देखते-देखते चढ़ जाता है, नवंबर का अंतिम हफ्ता ही देख लें। वहीं 6350 की ऊँचाई तक जाने के लिए निफ्टी को बस 7.5% बढऩे की जरूरत है।
कब करें मुनाफावसूली?
इस समय गणित और मनोविज्ञान के बीच एक विरोधाभास है और इसीलिए संख्या के लिहाज से काफी नजदीक आ चुके ये स्तर हमारी सोच के स्तर पर अब भी काफी दूर लग रहे हैं। इसे ही मनोवैज्ञानिक बाधा कहते हैं। इस बाधा के पास आकर और अगर यह इस बाधा को पार करता दिखे तो वैसी हालत में आपकी रणनीति क्या होनी चाहिए? जो कारोबारी बेहद छोटी अवधि के सौदे करते हैं, उन्हें दैनिक चार्ट पर ऊपरी शिखर ऊपरी तलहटी बनने के क्रम पर नजर रखनी चाहिए। यह क्रम जब तक न टूटे, तब तक छोटी-मोटी मुनाफावसूली के आने से परेशान न हों। जब भी निफ्टी पिछले दिन के निचले स्तर को तोड़े तो आप सावधान हो जायें। अगर यह एक और दिन पहले के निचले स्तर को भी तोड़ दे तो वह मुनाफावसूली का सटीक समय होगा।
अगर आप थोड़ा बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हों तो 10 और 20 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) स्तरों पर नजर रखें। जब निफ्टी 10 एसएमए के नीचे आये तो सावधान हो जायें और 20 एसएमए के नीचे आने पर पक्के तौर पर मुनाफावसूली करके बाजार से निकल जायें। वैसे तो ये दोनों छोटी अवधि के संकेतक हैं, लेकिन इस समय बाजार का मौजूदा स्तर इन दोनों से काफी ऊपर आ जाने के चलते इनको देख कर चलने में जोखिम कुछ ज्यादा है। मगर इनके हिसाब से चलने पर आप बाजार में छोटी-मोटी मुनाफावसूली को नजरअंदाज कर कुछ ज्यादा बड़ी चाल पकड़ पाने की स्थिति में भी होंगे।
मध्यम और लंबी अवधि का रुख ऊपर
निवेश मंथन के नवंबर अंक में मैंने मध्यम और लंबी अवधि के लिहाज से जो बातें लिखी थीं, वे अब और ज्यादा पुख्ता होती दिख रही हैं। मैंने लिखा था कि ‘मध्यम और लंबी अवधि के लिहाज से बाजार की दिशा ऊपर है।' दरअसल कई महीनों से मैंने बार-बार निफ्टी की दो रुझान पट्टियों (ट्रेंड चैनल) का जिक्र किया है - एक बड़ी पट्टी और एक छोटी पट्टी। ये दोनों पट्टियाँ ऊपर चढ़ रही हैं। इनमें बड़ी पट्टी अक्टूबर 2011 से अब तक जारी है, जबकि छोटी पट्टी इस साल मई-जून से चल रही है। अभी 20 नवंबर को निफ्टी का 5548 का निचला इसी छोटी पट्टी की निचली रेखा पर है। जून, जुलाई और सितंबर की तलहटियाँ भी ठीक इसी रेखा पर हैं।
नवंबर अंक में मैंने लिखा था कि ‘जब तक निफ्टी इस छोटी पट्टी की निचली रेखा काट कर इससे नीचे न फिसल जाये, तब तक छोटी अवधि के लिए भी बाजार की दिशा को ऊपर ही मानना बेहतर होगा।' इसी पट्टी के आधार पर मैंने लिखा था कि 5900-6050 का लक्ष्य कायम है।
लेकिन आने वाले दिनों में निफ्टी जब इस पट्टी की ऊपरी रेखा पर पहुँचेगा तो उसके बाद क्या होगा? एक स्वाभाविक संभावना मुनाफावसूली की होगी। यह मुनाफावसूली इसे वापस इसी पट्टी की निचली रेखा की ओर खींच सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि इस चढ़ती पट्टी में निचली रेखा से ऊपरी रेखा की ओर बढ़ते समय निफ्टी ज्यादा लंबी दूरी तय कर रहा है, जबकि ऊपरी रेखा से निचली रेखा की ओर लौटने का काम छोटे नुकसान में ही पूरा हो जाता है।
यानी अगर 6050 तक चढऩे में निफ्टी 5548 की ताजा तलहटी से करीब 500 अंक की उछाल लेगा, तो वापस इस पट्टी की निचली रेखा छूने का काम शायद 200-300 अंक के नुकसान में ही पूरा हो जाये। अगर 6050 से निफ्टी पलटा और 300 अंक तक नीचे लौटा तो अगली तलहटी 5750 के आसपास बन सकती है। इस तरह दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 के बाद से लगातार ऊपरी तलहटी बनते जाने का क्रम बना रह जायेगा।
अगर मध्यम अवधि के लिहाज से देखें तो इस साल जुलाई, अगस्त और अक्टूबर में ऊपरी शिखर बनाने के बाद अब निफ्टी ने अक्टूबर के शिखर 5816 को भी पार कर लिया है। इस तरह एक नया ऊपरी शिखर बनना तो तय हो चुका है, चाहे वह 5950 के आसपास बने या 6150 के पास या फिर और भी ऊपर। जब तक निफ्टी ऊपरी शिखर और ऊपरी तलहटी बनाने का यह क्रम जारी रखेगा, तब तक मध्यम अवधि के लिए बाजार का रुख ऊपर ही रहेगा।
मेरी नजर अक्टूबर 2010 के शिखर 6339 से दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 तक की गिरावट की वापसी वाली संरचना पर भी थी। इसमें 61.8% वापसी 5649 पर है, जिसके कुछ ऊपर-नीचे निफ्टी ने हाल में काफी समय गुजारा। जब निफ्टी इस स्तर से फिसला तो इसके अगले स्वाभाविक पड़ाव यानी 50% वापसी के स्तर 5435 तक जाने के बदले उससे पहले ही 5548 से लौट गया। यह एक संकेत था कि निफ्टी ज्यादा फिसलने को तैयार नहीं है और इसने अगली उछाल की तैयारी के लिए ही एक दायरे में समय गुजारा है। अब 61.8% वापसी के स्तर 5649 से काफी ऊपर आ जाने के बाद अगले लक्ष्य यानी 80% वापसी के स्तर 5978 को भी यह लगभग छू चुका है। अगर इस संरचना के साथ हम ऊपर बतायी गयी छोटी पट्टी को देखें तो यह संभावना बनती है कि निफ्टी 6000-6100 के आसपास कहीं एक तात्कालिक शिखर बना कर यह थोड़ा नीचे आये।
आम राय से रहें सावधान
अचानक जानकारों में एक आम राय बनती दिख रही है 6000-6100 के आसपास तक जाने को लेकर। यह बात मुझे परेशान कर रही है। बाजार तो आम राय मानता नहीं! तो क्या बाजार 6000 का स्तर छुए बिना ही नीचे लौटेगा? या फिर यह 6000-6100 पर अटके बिना सीधे 6357 के ऐतिहासिक शिखर को छूने की ओर बढ़ जायेगा? इस बारे में कयास लगाना जरा मुश्किल है। जिस तरह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी ने जोर पकड़ा है, उसके दम पर बाजार के लिए नये ऊपरी स्तरों तक चढ़ते जाने पर चौंकने वाली कोई बात नहीं होगी।
गौर करें कि इस साल जून-जुलाई से ही निफ्टी 50 और 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) स्तरों के ऊपर चल रहा है। नवंबर के मध्य में यह 50 एसएमए से नीचे आया, जो चिंता की बात थी, लेकिन नवंबर के अंतिम हफ्ते में 50 एसएमए के ऊपर लौटने के साथ ही इसमें एकदम से बड़ी उछाल दिखी। दरअसल जुलाई में स्पष्ट रूप से 50 एसएमए और 200 एसएमए का सकारात्मक कटान बना और तब से 50 एसएमए लगातार 200 एसएमए के ऊपर चल रहा है। ऐसा सकारात्मक कटान आम तौर पर बाजार को काफी लंबी उछाल देता है और अभी वैसा ही होता दिख रहा है।
किस-किस पर सनसनी का आरोप लगायेंगे सिब्बल जी?
हाल में 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में टेलीकॉम कंपनियों ने जरा भी उत्साह नहीं दिखाया। नीलामी से मिली रकम सरकार के घोषित अनुमानों की एक चौथाई भी नहीं रही। इस पर संचार मंत्री ने कहा कि 1.76 लाख करोड़ रुपये के घाटे के सीएजी के अनुमानित आँकड़े पर फैली सनसनी ने टेलीकॉम क्षेत्र को मार डाला। किस-किस पर सनसनी फैलाने का इल्जाम डालेंगे आप? क्या सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय पर?
एक ताजा खबर का यह शीर्षक पढ़ कर मेरी हँसी नहीं रुकी कि सरकार ने पूर्व ऑडिटर आर पी सिंह के दावों पर जाँच की माँग की। सच में यह देश भगवान भरोसे ही चलता है, वरना सरकार जाँच की माँग नहीं करती, आदेश देती। जाँच की माँग किससे की गयी है - भगवान से? आर पी सिंह ही 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पहले आओ पहले पाओ की नीति के कारण हुए नुकसान का आकलन करने वाले अधिकारी थे। तब वे सीएजी में लेखा महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑडिट) थे। अब सेवानिवृत हो चुके आर पी सिंह ने मीडिया को बताया है कि उन्होंने 37,000 करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया था, लेकिन सीएजी की अंतिम रिपोर्ट में नुकसान का आँकड़ा 1.76 लाख करोड़ रुपये बताया गया।
लेकिन संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने तो देश को पहले बताया था कि इसमें कोई नुकसान हुआ ही नहीं था, शून्य नुकसान या जीरो लॉस का दावा था। आखिर 37,000 करोड़ रुपये की रकम भी छोटी-मोटी तो है नहीं। सरकार ने पूरे साल 2012-13 के दौरान विनिवेश से जो 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है, वह भी इससे छोटा ही आँकड़ा है। आगे आर पी सिंह ने बताया है कि 37,000 करोड़ रुपये की कम वसूली का आँकड़ा दरअसल नये लाइसेंस का नहीं, बल्कि अतिरिक्त स्पेक्ट्रम पाने वाली कंपनियों से वसूली जा सकने वाली रकम का था।
एक और अखबार में छपी खबर के मुताबिक आर पी सिंह ने बताया कि 31 मई 2010 को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने 2,645 करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात लिखी थी। लेकिन एक टीवी चैनल की खबर में उन्होंने यह भी कहा है कि मेरी रिपोर्ट में नुकसान का कोई आँकड़ा नहीं था। अब आर पी सिंह के हवाले से आपके पास तीन सूचनाएँ हैं। पहली सूचना - नुकसान 37,000 करोड़ रुपये का था। दूसरी सूचना, नुकसान 2,645 करोड़ रुपये का था। तीसरी सूचना - कोई नुकसान नहीं हुआ था। जाँच यह होनी चाहिए कि आर पी सिंह की इन तीन सूचनाओं में से सही क्या है। यह भी जाँच होनी चाहिए कि क्या किसी ने देश को भरमाने का ठेका आर पी सिंह को दिया है?
इस बीच कांग्रेस को यह कहने का मौका मिल गया है कि भाजपा ने सीएजी का दुरुपयोग किया है। दोनों की राजनीतिक कुश्ती या नूरा-कुश्ती अपनी जगह। लेकिन क्या सर्वोच्च न्यायालय ने भी सीएजी की रिपोर्ट का दुरुपयोग किया 2जी के 122 लाइसेंसों को रद्द करने के फरवरी 2012 के ऐतिहासिक फैसले में?
उस फैसले के पैरा 61 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि सीएजी की रिपोर्ट की समीक्षा अभी लोक लेखा समिति (पीएसी) और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में हो रही है, इसलिए हम यह उचित नहीं समझते कि उस रिपोर्ट का कोई हवाला दिया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले का आधार बनाया था संचार मंत्री के रूप में ए राजा की कारगुजारियों को।
न्यायालय ने स्पष्ट कहा था, ‘दूरसंचार विभाग के अधिकारियों ने सितंबर 2007 और मार्च 2008 के बीच तत्कालीन संचार मंत्री (ए राजा) के नेतृत्व में जो कार्य किये, वे पूरी तरह इकतरफा, मनमाने, ओछे, और जनहित के विरुद्ध थे। इस न्यायालय के समक्ष जो चीजें प्रस्तुत की गयीं, वे दिखाती हैं कि संचार मंत्री सरकारी खजाने को नुकसान पहुँचाते हुए कुछ कंपनियों के साथ पक्षपात करना चाहते थे।'
फरवरी 2012 के आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने सबसे ज्यादा पन्ने इस बात पर खर्च किये थे कि ए राजा ने कैसे नियमों को उलटा-पलटा और तोड़ा-मरोड़ा, न कि इस बात पर कि सीएजी का 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान सही है या नहीं। आज कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम ऐसा आभास देना चाहते हैं मानो 2जी घोटाले जैसी कोई बात कभी हुई ही नहीं।
मंत्रीगण सवाल उठा रहे हैं कि अगर घाटे का सीएजी का आँकड़ा सही था तो आज वे 1.76 लाख करोड़ रुपये कहाँ गये? इस सवाल का जवाब जरूर दिया जा सकता है, अगर वे 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकारी खजाने में आयी रकम उन कंपनियों को वापस कर दें।
सीएजी ने नुकसान का अनुमान आखिर 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के आधार पर ही लगाया था। सिब्बल साहब ने खुद ही कहा है ना कि 3जी स्पेक्ट्रम से सरकार को पैसा तो मिला, लेकिन ग्राहकों को सेवाएँ नहीं मिली हैं। कौन लेगा इतनी महँगी सेवाएँ? जब आपने कंपनियों को इतना महँगा 3जी स्पेक्ट्रम दिया, तो 3जी सेवाएँ सस्ती कैसे होंगी?
सिब्बल जी, इस सवाल का जवाब आपको उन सैंकड़ों आवेदकों से भी पूछना चाहिए जो 2008 में 2जी स्पेक्ट्रम पाने की कतार में खड़े थे और अब नदारद हैं। उनसे पता करें ना कि तब कौन-सा लड्डू पाने की कतार में वे खड़े थे और आज वह लड्डू कहाँ गायब हो गया?
ताजा 2जी नीलामी के बारे में माननीय मंत्री जी कह रहे हैं कि हम सर्वोच्च न्यायालय के एक अंतिम आदेश से बँधे थे। आखिर अदालत के किस आदेश ने उन्हें बाँध रखा था? अदालत ने केवल यह कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन खुली नीलामी की पारदर्शी प्रक्रिया से हो। अदालत ने यह तो नहीं कहा था कि आप 14,000 करोड़ रुपये का आसमानी आरक्षित मूल्य (रिजर्व प्राइस) तय करें? फिर जब उनसे पूछा जाता है कि क्या इस नीलामी में आरक्षित मूल्य 14,000 करोड़ रुपये के बदले कम रखना बेहतर नहीं होता, तो वे कहते हैं कि ऐसा करने पर सरकार को ज्यादा पैसे नहीं मिलते और यह मिट्टी के मोल स्पेक्ट्रम बाँटने जैसा होता।
सिब्बल एक तरफ जताना चाहते हैं कि नीलामी की ऊँची कीमत सीएजी, मीडिया और सर्वोच्च न्यायालय के कारण थी। दूसरी तरफ वे कह रहे हैं कि कीमत नीचे रखना भी ठीक नहीं होता। दरअसल सिब्बल सरकार के माथे पर लगे कलंक को धोने की कोशिश के साथ-साथ पूरे देश को भ्रम में रखना चाहते हैं। हालाँकि ताजा खबर यह है कि सरकार अगली 2जी नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य 30% घटाने जा रही है।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)