राजीव रंजन झा :
मार्च के अंतिम हफ्ते में भारतीय शेयर बाजार ने काफी उतार-चढ़ाव दिखाया, तकरीबन हर अगले दिन दिशा बदली और अंत में कुछ महत्वपूर्ण समर्थन स्तरों को छूने के बाद वापस पलटता दिखा। पर सवाल है कि क्या इसने बजट के बाद से ही शुरू होने वाली कमजोरी का दौर खत्म कर लिया है?
शुक्रवार 30 मार्च 2012 की सुबह बाजार में वापस उछाल देख कर मैंने शेयर मंथन (222.ह्यद्धड्डह्म्द्गद्वड्डठ्ठह्लद्धड्डठ्ठ.द्बठ्ठ) में राग बाजारी नाम के ही अपने नियमित स्तंभ लिखा था, %%इस वापसी में कितना दम है, इसे समझने के लिए फिलहाल 10 और 20 दिनों के एसएमए पर नजर रखें। कल बाजार बंद होने पर 10 दिनों का एसएमए 5252 पर और 20 दिनों का एसएमए 5296 पर था। इन स्तरों को पार करने में निफ्टी को कितनी आसानी या मुश्किल होती है, इससे संकेत मिलेगा उसकी अगली चाल का।ÓÓ इसने ३० मार्च की उछाल में इन दोनों स्तरों को बड़े आराम से पार कर लिया।
अगर हम निफ्टी की 4531 से 5630 तक की उछाल की वापसी के स्तरों को देखें, तो निफ्टी ने 38.2% वापसी यानी 5210 से थोड़ा नीचे जाकर दो बार सहारा लिया है। अगर निफ्टी इस संरचना में 23.6% वापसी यानी 5371 को फिर से पार कर के इसके ऊपर टिक सके तो बाजार में नयी चाल के और आगे बढऩे की उम्मीदें मजबूत होंगी। वैसी हालत में यह देखना होगा कि यह मार्च के ऊपरी स्तर 5499 को पार कर पाता है या नहीं।
अगर यह 5500 से ऊपर जाकर टिकता दिखे तो न केवल फरवरी के ऊपरी स्तर 5630 को पार करने की उम्मीद बनेगी, बल्कि यह इसके ऊपर भी जा सकता है। दरअसल यह आगे चल कर जब भी 5630 को अच्छी तरह पार करेगा, इसमें एक नयी चाल बनेगी। हाल में मैंने 50 और 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज के सकारात्मक कटान (क्रॉसओवर) की चर्चा की थी। मैंने शेयर मंथन में 27 फरवरी की सुबह लिखा था, 'मेरी नजर इस बात पर रहेगी कि क्या यह 200 दिनों के एसएमए को भी पार कर पायेगा? अगर ऐसा होता है तो आप इसे बाजार के लिए काफी सकारात्मक संकेत मान सकते हैं। जब भी 50 दिनों का एसएमए 200 दिनों के एसएमए के ऊपर जाता है, बाजार में एक टिकाऊ और बड़ी तेजी दिखती है। यह एक ऐसी संरचना है, जो आम तौर पर छकाती नहीं है।'
दरअसल 50 और 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज का सकारात्मक कटान (पॉजिटिव क्रॉसओवर) तब माना जाता है, जब 50 एसएमए नीचे की ओर से 200 एसएमए को काटे और इसके ऊपर निकल जाये। इसे कई लोग सुनहरा (गोल्डेन) क्रॉस भी कहते हैं। आम तौर पर लोग यह गोल्डेन क्रॉस बन जाने का इंतजार करते हैं। लेकिन निफ्टी के बीते दशक के चार्ट के आधार पर मुझे लगता है कि गोल्डेन क्रॉस बन जाने का इंतजार करने के बदले सूचकांक के इन दोनों के ऊपर या नीचे चले जाने को अपने फैसले का आधार बनाना चाहिए। यानी, जब भी निफ्टी 50 और 200 दोनों एसएमए स्तरों के ऊपर जाये तो खरीदारी करनी चाहिए और जैसे ही इन दोनों के नीचे आ जाये, वैसे ही बिकवाली करनी चाहिए।
हालाँकि मार्च के अंतिम हफ्ते में जब निफ्टी ने 50 दिनों के एसएमए को तोड़ दिया और नीचे 200 दिनों के एसएमए की ओर बढऩे लगा तो कुछ पाठकों ने व्यंग्य में पूछा कि आपके गोल्डेन क्रॉस को क्या हो गया! पाठकों का व्यंग्य सिर-माथे! लेकिन अगर कोई निवेशक-कारोबारी इस संरचना के आधार पर खरीद-बिक्री करे तो उसे भावनाओं से अलग हट कर केवल एक ही शर्त ही देखनी है। शर्त यह है कि जब भी सूचकांक 50 और 200 एसएमए के ऊपर जाये तो आप खरीदारी करेंगे और जैसे ही इन दोनों के नीचे जाये तो आप उस निवेश या सौदे से बाहर आ जायेंगे। मार्च के अंतिम हफ्ते में गुरुवार को निफ्टी ने कुछ देर के लिए 200 एसएमए को तोड़ा। नियम के हिसाब से उस समय अपने सौदों या निवेश से बाहर आ जाना चाहिए था। जब भी निफ्टी वापस 50 और 200 एसएमए के ऊपर दिखे तो उसे मध्यम से लंबी अवधि के निवेशकों के लिए फिर से खरीदारी का समय समझना चाहिए।
आखिर क्या होता है 200 और 50 एसएमए के कटान से
इसे समझने के लिए मैं आपके सामने निफ्टी के बीते कुछ सालों के चार्ट की कुछ तस्वीरें रखूँगा। फायदा-नुकसान समझने के लिए यह मान कर चलें कि जब भी निफ्टी 50 और 200 दोनों एसएमए स्तरों के ऊपर जाये तो खरीदारी करनी है और जैसे ही इन दोनों के नीचे आ जाये, वैसे ही बिकवाली करनी है। दोनों रेखाओं के कटने (क्रॉसओवर) का इंतजार नहीं करना है।
पहली तस्वीर जून 2003 से मई 2004 की है। इसमें निफ्टी की रेखा के अलावा एक रेखा 200 एसएमए की और दूसरी रेखा 50 एसएमए की है। निफ्टी ने 2 जून को 1008 पर इन दोनों रेखाओं को पार कर लेने की शर्त पूरी की। यह 2004 की शुरुआत में 2000 के भी ऊपर चला गया। जून 2004 में निफ्टी 200 और 50 एसएमए दोनों के नीचे आ गया। ऐसा होने के समय निफ्टी 1644 पर था। लगभग 1 साल में इस संरचना ने 1008 से 1644 तक यानी 63% से ज्यादा फायदा दिया।
दूसरी तस्वीर सितंबर 2004 से जून 2006 तक की है। इसमें 200 और 50 एसएमए दोनों को पार करने की शर्त सितंबर 2004 के अंत में 1712 के स्तर पर पूरी हो गयी। उस समय से जो उछाल बनी, वह साल 2006 की दूसरी तिमाही तक चलती रही, जिसमें निफ्टी ने 100% से ज्यादा की बढ़त दिखायी। निफ्टी 7 जून 2006 को 2904 पर 200 दिनों के एसएमए के नीचे आया। अगर 1712 से 2904 तक की उछाल देखें तो करीब 70% का फायदा बनता है।
तीसरी तस्वीर जुलाई 2006 से जनवरी 2008 तक की है। इस बार निफ्टी ने 26 जुलाई 2006 को 3028 पर इन दोनों रेखाओं को पार करने की शर्त पूरी कर ली। यह तेजी जनवरी 2008 तक चलती रही। निफ्टी 22 जनवरी 2008 को वापस इन दोनों रेखाओं के नीचे आया, जब 4894 पर 200 एसएमए कटा। इस तरह 3028 से 4894 तक 62% का फायदा मिला।
चौथी तस्वीर मई 2008 से अप्रैल 2009 की है, जिसमें इन दोनों रेखाओं के नकारात्मक कटान (क्रॉसओवर) का परिणाम दिखता है। निफ्टी 26 मई 2008 को 4909 पर 50 एसएमए के नीचे आ गया। वापस इन दोनों रेखाओं के ऊपर यह अप्रैल 2009 में लौटा, जब 15 अप्रैल 2009 को 200 एसएमए 3426 के ऊपर आया। इस तरह 4909 से 3426 तक 30% गिरावट का फायदा मिला।
अगर हम अपनी शुरुआती शर्त को थोड़ा संशोधित कर दें, तो इस संरचना से मिलने वाला फायदा और भी बढ़ सकता है। संशोधन केवल यह है कि अगर 50 और 200 दिनों के एसएमए के बीच का फासला काफी बड़ा हो 50 दिनों के एसएमए के कटते ही निकल जाना बेहतर है। हालाँकि ऐसा करने पर एक खतरा यह हो सकता है कि आप किसी उछाल का पूरा फायदा न ले पायें, या फिर आपको एक ही स्तर के आसपास कई बार खरीद-बिक्री के सौदे करने पड़ जायें, जिससे लागत थोड़ी बढ़ सकती है।
इस संशोधित रणनीति के हिसाब से अगर देखें तो ऊपर दिखायी गयी तीसरी तस्वीर में 16 जनवरी 2008 को 5926 पर 50 एसएमए कटते ही निकला जा सकता था। वैसी हालत में 3028 से 5926 तक का फायदा मिलता। इस तरह आपका फायदा 62% के बदले 96% होता।
इसी तरह चौथी तस्वीर में 16 दिसंबर 2008 को ही 3005 पर 50 एसएमए पार होने पर सौदा काटा जा सकता था। वैसी हालत में 4909 से 3005 तक का फायदा मिलता। यानी आपका फायदा 30% से बढ़ कर 39% हो जाता।
अब पाँचवीं तस्वीर देखते हैं जो अप्रैल 2009 से नवंबर 2010 तक की है। निफ्टी ने 15 अप्रैल 2009 को 3426 पर 200 दिनों का एसएमए पार किया, जबकि 50 एसएमए मार्च में ही पार हो चुका था। इसके बाद 17 मई 2010 को 4988 पर 200 एसएमए कटा। इस तरह 3426 से 4988 तक यानी 46% की उछाल का फायदा मिला।
इसी तस्वीर में आगे दिखता है कि कुछ ही समय बाद निफ्टी ने 200 एसएमए वापस पार कर लिया और 14 जून 2010 को इसने 50 एसएमए भी 5147 पर पार कर लिया। यह वापस खरीदारी करने का मुकाम था। इस खरीद पर मुनाफावसूली का समय 16 नवंबर 2010 को आया, जब निफ्टी ने 6045 पर 50 एसएमए को काटा। यहाँ 200 एसएमए कटने का इंतजार ठीक नहीं था, क्योंकि 50 और 200 एसएमए के बीच फासला काफी था। इस तरह 5147 से 6045 तक यानी 17% की उछाल मिली।
छठी तस्वीर मई 2011 से अब तक की है। निफ्टी ने 3 मई 2011 को 5631 पर 50 एसएमए नीचे की ओर काटा, जबकि 200 एसएमए अप्रैल में ही कट चुका था। यह बिकवाली का मौका था। इसके बाद 12 अक्टूबर 2011 को 5035 पर 50 एसएमए वापस पार होने पर मुनाफावसूली का मौका आया। यहाँ भी 200 एसएमए पार होने का इंतजार ठीक नहीं था, क्योंकि यह काफी ऊपर था। इस तरह 5631 से 5035 तक यानी करीब 11% का फायदा मिला।
कभी-कभी बहानों की दरकार होती है बाजार को
बाजार निराश है कि प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) के बारे में इस बजट में कुछ ठोस नहीं कहा गया, लेकिन उसी डीटीसी के एक प्रावधान को लागू करने से उसके होश उड़ गये हैं।
जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स (गार) का प्रावधान डीटीसी में ही शामिल था, और डीटीसी पहले 1 अप्रैल 2012 से ही लागू होने वाला था। बाजार हमेशा इस बात पर भी दुख जताता रहता है कि मॉरीशस के साथ कर संधि के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार कुछ नहीं करती, लेकिन जब भी मॉरीशस संधि में बदलाव के लिए दोनों देशों के बीच कोई बातचीत शुरू होती है या भारत सरकार अपनी ओर से कोई कदम उठाती है, तो बाजार को बुखार चढ़ जाता है। बाजार को जरा तय कर लेना चाहिए कि उसे क्या चाहिए!
दरअसल बाजार को सुधारवादी वचन बड़े सुहाते हैं, लेकिन अगर उस सुधार के चलते कहीं से पैसे आने का रास्ता बंद हो रहा हो तो वह बात नहीं सुहाती। बाजार को अभी डर इस बात का है कि अगर मॉरीशस के रास्ते से आने वाले एफआईआई निवेश पर कर माफी बंद हो गयी तो एफआईआई का पैसा आना भी बंद हो जायेगा। बजट में आय कर कानून की एक धारा में 1962 से लागू एक संशोधन पर भी बाजार ने यही हाय तौबा मचायी है कि अब सरकार 60 साल पुराने मामलों को भी खोलने की ताकत अपने हाथ में लेना चाहती है। बाजार को डर है कि ऐसे कानून रहे तो कौन-सी विदेशी कंपनी भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करने की सोचेगी।
इस का जवाब एक सीधे से सवाल में है। कोई विदेशी कंपनी भारतीय बाजार में क्यों आती है, यहाँ क्यों निवेश करती है, यहाँ क्यों अपनी उत्पादन इकाइयाँ लगाती है? क्या उसका मुख्य मकसद कर रियायत हासिल करना होता है? या वह भारतीय बाजार में विकास की संभावना से आकर्षित होकर आती है? उसे लगता है कि यहाँ उसे अपने निवेश पर दुनिया के किसी दूसरे हिस्से की तुलना में ज्यादा लाभ मिलेगा। यहाँ उसे बाकी जगहों से ज्यादा तेजी से फैलता बाजार दिखता है। कोई कर रियायत ऐसे फैसलों में मददगार हो सकती है, लेकिन मुख्य कारण नहीं होती।
डीटीसी के मसौदे में ही गार के प्रावधान रहने के बावजूद और इस साल बजट में ही इन प्रावधानों के शामिल होने के बावजूद बाजार को अचानक 26 मार्च को इस बात का ध्यान आया। दरअसल बाजार को घबराहने के लिए बहानों की जरूरत पड़ती रहती है। यह भी एक बहाना बन गया।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2012)