संदीप सिक्का, सीईओ, रिलायंस कैपिटल एएमसी :
कारोबारी साल 2011-12 की तीसरी तिमाही में विकास दर (जीडीपी) के जो आँकड़े आये हैं, वे निश्चित रूप से अनुमानों से कम हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था अभी जिन दबावों का सामना कर रही है, उनमें महँगाई, ऊँची ब्याज दरों, निवेश में कमी, सरकारी घोटालों के सिलसिले, बाजार को पसंद आने वाले सुधारों पर सरकार की धीमी गति और विश्व अर्थव्यवस्था में कमजोरी के कारण लोगों के कम भरोसे को खास तौर पर गिना जा सकता है।
अगर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ब्याज दरों को घटाना शुरू नहीं किया और सरकार ने अपने घाटे को सँभालने के साथ-साथ सुधारों की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया तो अगले कारोबारी साल 2012-13 में भी विकास दर लगभग 7% पर ही रह जायेगी। इससे भारत के विकास की कहानी अटक जायेगी। हालाँकि मुझे उम्मीद है कि भारत के लिए अभी काफी अच्छी संभावनाएँ हैं और सरकार समय रहते जरूर ऐसे कदम उठायेगी, जिससे निवेशकों का हौसला कायम रहे।
आने वाले बजट को लेकर मेरा मानना है कि अगर सरकार कर ढाँचे में ऐसे बदलाव करे, जिससे छोटे व्यक्तिगत निवेशकों को फायदा तो मिले तो यह स्वागत करने लायक कदम होगा। इस समय केवल 3% लोग ही म्यूचुअल फंडों में निवेश कर रहे हैं। मेरा मानना है कि आम घरों में निवेश के तुलनात्मक रूप से सुरक्षित विकल्पों, जैसे इक्विटी, सोना या ऋण बाजार के म्यूचुअल फंडों के जरिये बचत को बढ़ावा देने के लिए अभी काफी कुछ करने की जरूरत है। तभी इनमें निवेश करने वालों की संख्या 3% के मौजूदा स्तर से आगे बढ़ पायेगी।
इस समय बाजार में उत्साह कम है और निवेशक अपने पैसे का निवेश करने से हिचक रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि खुदरा निवेशकों में अब काफी परिपक्वता आयी है और वे लंबी अवधि के निवेश की अहमियत को समझने लगे हैं। मुझे इस बात का काफी भरोसा है कि खुदरा श्रेणी में ही सबसे ज्यादा संभावनाएँ छिपी हैं, क्योंकि इसी श्रेणी तक लोग सबसे कम पहुँचे हैं। खुदरा निवेशकों की श्रेणी में पूँजी बाजार को स्थिरता देने की ताकत है। इसके अलावा, एक बार जब वित्तीय संस्थानों का पैसा आने लगेगा तो स्थितियाँ बेहतर होने लगेंगी।
मार्च के महीने में लोग स्वाभाविक रूप से कर बचाने के नजरिये से निवेश की बात सोचते हैं। मेरा मानना है कि इक्विटी यानी शेयर बाजार और सोने के बाजार में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंडों में लंबी अवधि का निवेश करना इस लिहाज से ज्यादा फायदेमंद रहता है। निवेशकों को शेयर बाजार में आने वाली बढ़त का फायदा उठाने का मौका गँवाना नहीं चाहिए। यह अपनी संपदा बनाने का सबसे अच्छा तरीका है जिसमें सबसे असरदार ढंग से कर की बचत भी होती है। इक्विटी में निवेश के लिए म्यूचुअल फंड योजनाओं में एसआईपी करना सबसे अच्छा तरीका है।
निवेशकों को अपनी वित्तीय योजना सोच-समझ कर बनानी चाहिए। उन्हें निवेश संबंधी फैसलों को वित्तीय लक्ष्यों के साथ जोडऩा चाहिए। ऐसा न करें कि जब जहाँ कोई मौका दिखा वहाँ कुछ निवेश कर दिया। इस तरह का बेतरतीब तरीका कारगर नहीं रहता है।
अगर हम म्यूचुअल फंडों के टैक्स-सेविंग फंड की बात करें, तो सबसे पहले यह समझ लें कि म्यूचुअल फंड क्या होते हैं? म्युचुअल फंड में निवेश करना अपने पैसे का प्रबंधन किसी विशेषज्ञ के हाथ में देने जैसा है। फंड मैनेजर उस योजना के तहत पहले से तय उद्देश्यों के मुताबिक आपके पैसे का निवेश पूँजी बाजार में करते हैं, ताकि उस योजना में ज्यादा लाभ मिल सके। म्यूचुअल फंड में हर महीने केवल 100 रुपये जितना छोटा निवेश भी किया जा सकता है। इतने में तो कई अच्छी कंपनियों का एक शेयर खरीदना भी संभव नहीं होगा। लेकिन म्यूचुअल फंड में 100 रुपये का निवेश करके एक साथ बहुत से शेयरों में निवेश का फायदा लिया जा सकता है।
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम या ईएलएसएस को आम तौर पर टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड कहा जाता है। इन पर आय कर कानून की धारा 80सी के तहत एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर छूट तो मिलती ही है, ये आगे चल कर अच्छा लाभ भी दे सकते हैं। ये फंड मुख्य रूप से इक्विटी में निवेश करते हैं। कई ऐसे फायदे हैं, जिनके चलते हर किसी को अपनी कर योजना (टैक्स प्लान) में ईएलएसएस को शामिल करना चाहिए:
अधिक लाभ : ये कर बचत के दूसरे विकल्पों की तुलना में ज्यादा लाभ दे सकते हैं।
कम लॉक इन अवधि : इनमें केवल तीन साल की लॉक इन अवधि है, जो 80सी के तहत कर बचत के विकल्पों में सबसे कम है। इस तरह यह इन सभी विकल्पों में सबसे ज्यादा तरलता वाला विकल्प है, यानी आप इनसे सबसे जल्दी पैसा निकाल सकते हैं।
कर मुफ्त डिविडेंड : इसमें मिलने वाला डिविडेंड कर मुफ्त (टैक्स-फ्री) है। अवधि पूरी होने पर इनसे मिली रकम पर भी कर देनदारी नहीं बनती, क्योंकि इन पर पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) नहीं लगता है। लिहाजा यह कर बचाने में काफी असरदार है।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)