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- Category: मार्च 2012
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक:
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी संभवत: आज देश के सबसे हैरान-परेशान व्यक्ति होंगे। आगामी वित्त वर्ष का बजट बनाते समय उन्हें अनेक लक्ष्य साधने हैं। विडंबना यह है कि आर्थिक तंगी से उनके दोनों हाथ बुरी तरह बंधे हुए हैं और उन्हें ऐसे में बजट की नैया पार लगानी है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 हर किसी के लिए भयावह रहा है। अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर केवल बुरी खबरों का डेरा था।
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सरकार ने आय कर में छूट की जो सुविधाएँ दे रखी हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाना आपका हक है। बस थोड़ी सी तैयारी और आय कर प्रावधानों की समझदारी से आप अपनी आय पर लगने वाले कर का बोझ काफी हल्का कर सकते हैं। कोई मुश्किल काम नहीं है यह।
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अगर आप वेतनभोगी कर्मचारी हैं, आपकी कुल सालाना आमदनी पाँच लाख रुपये तक है और इसमें वेतन के अलावा कोई अन्य आमदनी नहीं है, तो आपके लिए आयकर रिटर्न जमा करना अब जरूरी नहीं है।
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बचत और निवेश हमारे अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए जरूरी है। और अगर निवेश करने पर आय कर (इन्कम टैक्स) में छूट भी मिल जाये तो यह सोने पर सुहागा ही कहा जा सकता है। आय कर कानून की धारा 80सी के तहत कुल एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर में छूट ली जा सकती है।
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आपका मकान एक नहीं, कई तरह से आपके कर का बोझ हल्का करता है। लोग आम तौर पर यही जानते हैं कि घर कर्ज (होम लोन) पर 1.50 लाख रुपये तक के ब्याज पर कर की छूट मिलती है। लेकिन इसके अलावा कई और तरह से भी मकान आपकी कर देनदारी घटा सकता है। देखते हैं एक मकान किन-किन तरीकों से दिलाता है कर में छूट:
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अगर कोई व्यक्ति (पुरुष) किसी तरह की कर छूट का फायदा न उठाये तो शुरुआती 1.80 लाख रुपये तक की आय कर मुफ्त होगी, फिर 05 लाख रुपये तक 10%, 08 लाख रुपये तक 20% और 10 लाख रुपये तक 30% की दर से आय कर लगेगा।
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आपको आश्चर्य होगा कि सालाना साढ़े पाँच लाख रुपये से ज्यादा की कमाई पर भी आप की आय कर देनदारी शून्य हो सकती है। आइये देखें यह कैसे संभव होगा। कुमार को वेतन-भत्तों से सालाना 5.62 लाख रुपये मिलते हैं। उनका मूल (बेसिक) वेतन 2.50 लाख रुपये है।
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संदीप सिक्का, सीईओ, रिलायंस कैपिटल एएमसी :
कारोबारी साल 2011-12 की तीसरी तिमाही में विकास दर (जीडीपी) के जो आँकड़े आये हैं, वे निश्चित रूप से अनुमानों से कम हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था अभी जिन दबावों का सामना कर रही है, उनमें महँगाई, ऊँची ब्याज दरों, निवेश में कमी, सरकारी घोटालों के सिलसिले, बाजार को पसंद आने वाले सुधारों पर सरकार की धीमी गति और विश्व अर्थव्यवस्था में कमजोरी के कारण लोगों के कम भरोसे को खास तौर पर गिना जा सकता है।
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संदीप सिक्का, सीईओ, रिलायंस कैपिटल एएमसी :
कारोबारी साल 2011-12 की तीसरी तिमाही में विकास दर (जीडीपी) के जो आँकड़े आये हैं, वे निश्चित रूप से अनुमानों से कम हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था अभी जिन दबावों का सामना कर रही है, उनमें महँगाई, ऊँची ब्याज दरों, निवेश में कमी, सरकारी घोटालों के सिलसिले, बाजार को पसंद आने वाले सुधारों पर सरकार की धीमी गति और विश्व अर्थव्यवस्था में कमजोरी के कारण लोगों के कम भरोसे को खास तौर पर गिना जा सकता है।
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सचिन जैन, शीतल अशार, आईसीआईसीआई सिक्योरिटज :
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस) म्यूचुअल फंडों की ऐसी योजनाएँ हैं, जिनमें निवेश करके आप इक्विटी यानी शेयरों में निवेश से मिल सकने वाले अच्छे फायदे के साथ-साथ आय कर में भी अच्छी बचत कर सकते हैं। म्यूचुअल फंड योजनाएँ कई तरह की होती हैं।
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अब्राहम अलापट्ट, ब्रांड प्रमुख, फ्यूचर जनराली इंडिया लाइफ इन्श्योरेंस :
वित्तीय वर्ष का अंत करीब आते ही काफी निवेशक आय कर में बचत के लिहाज से निवेश के विकल्पों पर नजर डालते हैं और उनमें से बहुत लोग जीवन बीमा का विकल्प चुनते हैं। जीवन बीमा योजना खरीदना एक अच्छा और समझदारी भरा वित्तीय फैसला है और लंबी अवधि का ऐसा उत्पाद चुनने में कोई बुराई नहीं है, जिससे आपको आय कर में भी कुछ छूट मिल जाती हो। लेकिन समस्या तब आती है, जब कोई व्यक्ति लंबी अवधि के फायदों और परिणामों को देखे बिना केवल इस साल कर बचत के नजरिये से एक बीमा पॉलिसी खरीद लेता है।
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सतकाम दिव्य, बिजनेस हेड, रूपीटॉप डॉट कॉम :
इस समय हर आदमी कर (टैक्स) बचत के लिहाज से अलग-अलग योजनाओं में निवेश के बारे में सोच रहा है। आय कर अधिनियम की धारा 80 सी और 10 (10)डी के तहत निवेश के कई आकर्षक विकल्प हैं। वहीं 80 सी और 80 सीसीसी के तहत जीवन बीमा प्रीमियम, ईपीएफ, पीपीएफ, एनएसी, यूलिप, होम लोन, ईएलएसएस, एलआईसी और अन्य बीमा कंपनियों की पेंशन योजनाएँ लोकप्रिय कर बचत विकल्पों में शामिल हैं।
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