विनेश मेनन, सीईओ, बजाज कैपिटल इन्वेस्टर सर्विसेज:
निवेश के फैसले में ‘समय’ सबसे अहम पहलुओं में से एक है। कुछ लोगों ने अपनी वित्तीय आदतों के बारे में कुछ प्रण किये होंगे तो कुछ ने इसके बारे में सोचा भी नहीं होगा। क्या हमने सोचा है कि पैसे कमाने के लिहाज से 2012 किस तरह अलग होगा।
क्या हमें बचत और धन प्रबंधन के बारे में सामान्य रूप से नये प्रण करने चाहिए या निवेश के तरीकों के बारे में गहराई से सोचते हुए कब, कहाँ, कैसे और कितना जैसे सवालों के जवाब तलाशने चाहिए?
इसका कोई सामान्य जवाब नहीं हो सकता। आदर्श तो यह है कि अपनी स्थिति देखते हुए रणनीति बनायी जाये। आप पहली बार कमाने वाले या नये पति या एक बच्चे के पिता हो सकते हैं, जिसके बड़े सपने हों। या, आप अधेड़ उम्र के वरिष्ठ कर्मचारी हो सकते हैं जिसका वर्तमान जीवन तो बढिय़ा हो, पर जिसने सोचा ही नहीं हो कि 20 बाद कमाई बंद हो जाने पर जिंदगी कैसी रहेगी। हमारा समय हमारे पिता या दादा के जमाने जैसा नहीं है। जिंदगी की रफ्तार बेहद तेज है। पलक झपकते ही आपकी कमाई कई गुना बढ़ सकती है या उतनी ही रफ्तार से मिट्टी में मिल सकती है।
बीते साल सोने और कच्चे तेल जैसी कमोडिटी को छोड़ दिया जाये तो अन्य सभी संपदाओं में गिरावट आयी है। साल भर में सेंसेक्स 25% से ज़्यादा लुढ़क गया। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 14% की गिरावट रही। यूरोप का कर्ज संकट, उभरते देशों में ऊँची महँगाई, ब्याज दरों में बढ़ोतरी और भारत में नीतिगत विफलताओं से निवेशकों के लिए पिछला साल बहुत अच्छा नहीं रहा।
2012 में आपके लिए क्या खास है?
- क्या 2012 में निवेश माहौल 2011 के जैसा ही रहेगा और निवेशकों को कम फायदे से खुश रहना होगा ?
- निवेशकों कर्ज बाजार के सुरक्षित निवेश में चिपके रहें या शेयर बाजार में प्रवेश करना चाहिए ?
- क्या निवेशकों को कमोडिटी और सोने से निकल जाना चाहिए जो 2011 में काफी चढ़ चुके हैं?
- निवेशकों को ब्याज दरें कम होने की उ मीद से संपत्ति में निवेश करना चाहिए या रियल एस्टेट बाजार में सुधार का इंतजार करना चाहिए?
- मूल्यांकन के लिहाज से बाजार के सस्ते होने का इंतजार करना चाहिए या यह बाजार में प्रवेश का अच्छा समय है?
मुझ पर भरोसा करें, आप इन बातों के सीमित या सामान्य जवाब ही पायेंगे।
बाजार के हालात जैसे भी रहें, पर निवेशक परिसंपत्ति आवंटन की जो भी रणनीति अपनायें उस पर कायम रहें। मसलन, अगर आपने अपने कुल पोर्टफोलियो का 60% आवंटन शेयरों में किया है तो वह आवंटन उसी स्तर पर कायम रखें। अगर बाजार में और गिरावट आये तो इससे आपके कुल निवेश में शेयरों का हिस्सा कम हो जायेगा।
तब आपको शेयर बाजार में ज्यादा खरीदारी करनी चाहिए, जिससे आवंटन अपने मूल स्तर पर आ जाये। इससे पोर्टफोलियों में शेयरों की लागत अपने आप कम हो जायेगी और बाजार में तेजी आने पर अच्छा मुनाफा मिल सकेगा। पेशेवर वित्तीय योजनाकार आपकी उम्र, लक्ष्य हासिल करने के लिए निवेश अवधि, जोखिम क्षमता के आधार पर परिसंपत्ति आवंटन की रणनीतियाँ बताते हैं। हर लक्ष्य केंद्रित गंभीर निवेशक के लिए अच्छी तरह वित्तीय योजना बनाना जरूरी है। अगर आपने यह नहीं किया है तो तुरंत करें।
आप ‘ऊँचे भाव पर खरीद’ और ‘कम भाव पर बिकवाली’ करके 2009 के अनुभव को न दोहरायें। इस साल की पहली छमाही के दौरान बाजार में छूट जैसी स्थिति रह सकती है। ऐसे में शेयर बाजार के लिए आवंटित अपना पैसा गैरतरल या लॉक इन अवधि वाली योजनाओं में न लगायें। पता नहीं कब यह पैसा शेयर बाजार में लगाने की जरूरत पड़ जाये।
अगर निवेशक के पास शेयर में लगाने के लिए 100 रुपये हैं तो शोध बताते हैं कि उसे 50 रुपये मनी मार्केट फंड में लगाने चाहिए और एक 6 महीने की एसटीपी (सिस्टेमैटिक ट्रांसफर प्लान) शुरू करना चाहिए जिसके तहत पैसा मनी मार्केट फंड से विविध निवेश वाले इक्विटी फंडों में जाये। इससे 6 महीने में मनी मार्केट से पैसा शेयरों में जायेगा और निवेशकों को इस दौरान बाजार में और गिरावट आने पर शेयरों की कम लागत का फायदा मिलेगा।
युवा निवेशकों को बाजार में सीधे कारोबार (ट्रेडिंग) करना सीखना चाहिए। निवेश योग्य कमाई का 10% सीधे बाजार में लगा कर बाजार की चाल से मुनाफा कमाने में कोई बुराई नहीं है। इस रणनीति पर बाजार की अफवाहों या महज अपने ब्रोकर की सलाह के आधार पर ही आगे नहीं बढ़ें। इसके लिए सबसे पहले बाजार में सीधे निवेश की बारीकियों को समझें और शोध आधारित सलाह पर निवेश करें।
कभी भी सदाबहार रणनीतियों से दूर न जायें, मसलन (क) अपनी मासिक कमाई का एक छोटा हिस्सा म्यूचुअल फंड एसआईपी में लगायें (ख) अपनी निवेश योग्य आमदनी का 7.5%-10% सोने में लगायें और (ग) कम-से-कम एक बीमा पॉलिसी जरूर लें। सोना हमेशा भविष्य में फायदा देने वाला उत्पाद था, है और रहेगा। वहीं म्यूचुअल फंड एसआईपी ऐसा साधन है जो बाजार में तेजी का मोहताज नहीं है। यह सहज रूप से तेजी और गिरावट के बीच आपके निवेश की लागत को औसत स्तर पर ले आता है, जिससे लंबी अवधि में निश्चित रूप से फायदा होगा।
जब भी कोई संदेह हो तो हमेशा बुनियादी बातें याद रखें। ऐतिहासिक आँकड़े बताते हैं कि केवल अनुशासित मासिक एसआईपी से ही निवेशकों को फायदा हुआ है। बुरे समय में जब भविष्य की आय खतरे में पड़़ जाये तो बीमा ही आपको या आपके परिवार को मुश्किल से निकाल सकता है। याद रखें कि आप अपने लिए केवल एक व्यक्ति हैं, लेकिन अपने परिवार के लिए आप पूरा संसार हैं।
निवेशकों को विश्लेषण ‘रोग’ से बचना चाहिए। अपने दिमाग पर घरेलू या अंतरराष्ट्रीय बाजार की हलचलों के बारे में अत्यधित समाचार और विश्लेषणों का बोझ न डालें। निश्चित रूप से निवेशकों को बुनियादी आर्थिक संकेतकों के हिसाब से चलना चाहिए, लेकिन उन्हें बार-बार किसी खास निवेश के बारे में सलाह के लिए अपने सलाहकार के पास जाने से बचना चाहिए।
अंत में मैं एक बार फिर दोहराना चाहूँगा कि 2012 की शुरुआत में बाजार में कुछ उतार-चढ़ाव रह सकता है। लेकिन संकेतक बता रहे हैं कि दूसरी छमाही में हालात सुधरने की उम्मीद है और यह पहली छमाही से कहीं बेहतर होगा। हालाँकि यूरोप के गहराते कर्ज संकट, अमेरिका या यूरोप में मंदी या चीन की विकास दर में तेज गिरावट जैसे जोखिम भी हैं।
इनमें से कोई भी घटना विदेशी पूँजी निवेश में सुस्ती ला सकती है, जिससे भारत के चालू खाते के घाटे पर असर पड़ेगा। अगर सरकार विदेशी पूँजी प्रवाह पर निर्भरता कम करना और एफडीआई बढ़ाना चाहती है तो भारतीय नीति-निर्माताओं को तेजी से फैसले करने के साथ शासन सुधारना होगा।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)