शिवानी भास्कर :
साल की शुरुआत का यह ऐसा समय होता है, जब पूरे देश का अर्थतंत्र एक ही तैयारी में जुटा होता है- अगले वित्त वर्ष का बजट। जहाँ तमाम उद्योग संगठन और अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिनिधि अपने-अपने हितों के लिए वित्त मंत्रालय के साथ बैठकें कर उसे अपनी मांगों की सूचियाँ थमाते हैं, वहीं सरकारी विभाग और मंत्रालय भी अपनी-अपनी माँगों के साथ मान-मनुहार में लग जाते हैं।
इन सबके बीच वित्त मंत्रालय खामोशी और गंभीर गोपनीयता के साथ अगले वित्त वर्ष के लिए देश की कमाई और खर्च के ब्योरे सँभालने के काम को अंजाम दे रहा होता है।
यह साल भी कुछ अलग नहीं है। साल 2012-13 के बजट की गहमागहमी शुरू हो गयी है। हर साल पारंपरिक तौर पर बजट फरवरी की अंतिम तारीख को पेश होता है, लेकिन इस साल पाँच राज्यों में विधानसभा के चुनावों की वजह से यह सालाना दस्तावेज मार्च में पेश होगा। बजट सत्र 12 मार्च से बुलाया गया है। आम बजट 16 मार्च को पेश होगा। लोगों की नजर इस बात पर खास तौर से रहेगी कि आर्थिक सुधारों की रफ्तार आगे बढ़ाने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पेंशन सुधार, बीमा सुधार, व्यक्तिगत आय कर की दरों या सीमा में रियायत वगैरह पर सरकार क्या कदम उठाती है।
साल 2012-13 के बजट से पहले दी गयी माँगों की सूची में बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधियों ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) घटाने और डूबे कर्ज (एनपीए) पर टैक्स में छूट देने की माँग की है। दरअसल बैंकिंग क्षेत्र चाहता है कि एक ओर तो बैंकिंग व्यवस्था में ज्यादा-से-ज्यादा रकम जमा हो, वहीं घरेलू बचत का ज्यादा हिस्सा शेयर बाजार में भी लगे। इसी उद्दïेश्य से कुछ खास सुधारों की माँग की गयी है। यह भी सुझाव है कि बिजली, विमानसेवा, कपड़ा जैसे क्षेत्रों में बाँटे गये ऋणों की जोखिम भरी स्थिति देखते हुए एनपीए के मद में की गयी प्रोविजनिंग को पूरी तरह कर-मुक्त कर देना चाहिए। फिलहाल इस पर केवल 7.5% ही छूट है। बैंकों ने सोने और स्वर्ण जमाओं (गोल्ड डिपॉजिट) पर आयात कर बढ़ाने, सोने का सिक्योरिटाइजेशन करने और ऐसी व्यवस्था विकसित करने की माँग की है, जिससे बैंकिंग तंत्र में ज्यादा-से-ज्यादा जमा-राशि लायी जा सके।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश मापने का एक मानक) में 0.7% की कमी दर्ज की गयी। इसका साफ मतलब है कि देश में निवेश की मात्रा घट रही है। दूसरी ओर सरकार की दिक्कत यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी से निपटने और शेयर बाजार से विदेशी निवेशकों के बड़े पैमाने पर निकलने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव है।
यह साफ हो चुका है कि राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) 4.6% के पिछले लक्ष्य से काफी ज्यादा रहने वाला है। ऐसे में इस बजट में वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजकोषीय घाटे को बढ़ाये बिना निवेश के अनुकूल माहौल बनाने की होगी। इसके लिए जहाँ सरकार एक ओर श्रम आधारित उद्योगों को कुछ विशेष सुविधाएँ दे सकती है, वहीं अनाज उत्पादन एवं भंडारण के क्षेत्र में निवेश पर प्रोत्साहन की घोषणा भी की जा सकती है। बजट में बुनियादी ढाँचे में विदेशी निवेश की शर्तों को ढीला किया जा सकता है। साथ ही पीपीपी यानी सरकार और निजी क्षेत्र के तालमेल से चलने वाली परियोजनाओं को मदद देने के लिए विशेष इन्फ्रास्ट्रक्चर डेब्ट फंड का भी गठन किया जा सकता है। आयातित प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल पर सब्सिडी देकर वित्त मंत्री यूरिया उत्पादन में बढ़ोतरी की कोशिश भी कर सकते हैं। यह सब्सिडी आयातित और सस्ती घरेलू गैस की कीमतों में अंतर तक सीमित रहेगी और निवेशकों तथा सरकार को गैस की कीमतों में आने वाले भारी उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद करेगी।
अनाज भंडारण को और प्रभावी बनाने के लिए जिस कोल्ड-चेन नीति पर काम हो रहा है, उसके तहत ऑपरेटर को यह छूट दी जा सकती है कि वह देश के किसी भी भाग में पैदा होने वाले उत्पाद की खरीद कर सके, बनिस्पत केवल उस खास राज्य में पैदा होने वाले उत्पादों के, जहाँ वह स्थित है। पिछले महीने मैरिको के संस्थापक और फिक्की के अध्यक्ष हर्ष मारीवाला की अगुवाई में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मिलने पहुँचे प्रतिनिधिमंडल ने बजट 2012 में व्यावसायिक कोयला खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की माँग की। इसके अलावा प्रतिनिधिमंडल ने विदेश में जमा काले धन को वापस लाने के लिए एक बार माफी दिये जाने की योजना का भी प्रस्ताव रखा। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के अलावा सरकारी परिसंपत्तियों की भी एक इन्वेंट्री बनाये जाने की वकालत की गयी।देशमेंकोयलेकीभारीकमीकोदेखतेहुएपहलासुझावकाफीमहत्वपूर्णहै।अगरसरकारऐसाकरनाचाहेगीतोउसेकोलनेशनलाइजेशनऐक्टकोखत्मकरनाहोगा, जिसके जरिये कोयला खनन में उसका एकाधिकार बरकरार है।
अन्य सुझाव सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन सरकार के ही दूसरे मंत्रालय राजस्व बढ़ाने और पैसे बचाने की वित्त मंत्रालय की चिंताओं पर संजीदा नहीं हैं। कई मंत्रियों और मंत्रालयों ने कर में छूट और प्रोत्साहनों की लंबी सूची वित्त मंत्रालय को भेजी है। कृषि मंत्री शरद पवार ने पशुपालन और लाइवस्टॉक प्रोडक्ट से होने वाली आय के लिए कर में छूट की माँग की है। उनका तर्क है कि इससे बेहतर गुणवत्ता वाले भोजन की आपूर्ति बढ़ेगी और खाद्य महँगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
भारी उद्योग मंत्रालय ने बिजली कारों और हाइब्रिड कारों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए वित्त मंत्रालय से 6,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है। साथ ही मंत्रालय ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि इन गाडिय़ों में इस्तेमाल होने वाली लीथियम बैट्री और दूसरे आयातित पुर्जों पर सीमा शुल्क में कटौती की जाय। फिलहाल इन पर 5% का आयात (कस्टम) शुल्क लगता है, जिसे इलेक्ट्रिक गाडिय़ों के दाम में जोड़ दिया जाता है। पिछले साल नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रीन्यूएबल एनर्जी या एमएनआरई) ने भारत में बनी बिजली कारों की पर एक लाख रुपये की सब्सिडी घोषित की थी। लेकिन यह सब्सिडी इस साल मार्च में खत्म होने वाली है।
साल 2011-12 के बजट में ही सरकार ने यह घोषणा भी की थी कि वह पर्यावरण के अनुकूल कारों के उत्पादन और बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए एक नेशनल मिशन फॉर हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल का गठन करेगी। इसके साथ ही सरकार ने हाइब्रिड कारों के पुर्जों पर 10% आयात शुल्क खत्म कर दिया था। इसके अलावा उस समय इन कारों पर 10% आयात शुल्क को भी उसने 5% कर दिया था।
देश में अभी केवल महिन्द्रा रेवा ही बिजली कारें बनाती है। असीम संभावनाओं के बावजूद ऑटो कंपनियों ने फिलहाल इस श्रेणी से दूरी बना रखी है, क्योंकि उन्हें लगता है कि चार्जिंग स्टेशन के ढाँचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) की भारी कमी है। होंडा सिएल और टीवीएस मोटर्स ने हालाँकि अपने हाइब्रिड और बिजली से चलने वाले वाहन बाजार में उतारे हैं, लेकिन पेट्रोल गाडिय़ों की तुलना में इनके बहुत महँगे होने के कारण इनकी ओर ज्यादा संख्या में ग्राहक आकर्षित नहीं हो सके हैं।
सरकार कच्चा लोहा उत्पादकों को वैल्यू एडीशन करने और पेलेटाइजेशन के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कुछ रियायतें दे सकती है। वित्त वर्ष 2011-12 के केंद्रीय बजट में सरकार ने फाइंस और लंप्स, दोनों ही तरह के आयरन ओर पर निर्यात शुल्क 5% से बढ़ा कर क्रमश: 20% और 15% कर दिया था। इसके अलावा आयरन ओर पेलेट के निर्यात को शुल्क से पूरी तरह छूट दे दी गयी थी।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार पेलेट कैपेसिटी लगाने वाले माइनरों को टैक्स-हॉलीडे देने पर विचार कर सकती है। पेलेट बहुत ही उम्दा किस्म के कच्चे लोहे से ग्लोबल्स के रूप में तैयार होते हैं और इनका इस्तेमाल स्पॉन्ज आयरन बनाने में होता है। कुछ देशों में इनका उपयोग ब्लास्ट फर्नेस बनाने में भी किया जाता है।
भारत दुनिया के शीर्ष आयरन ओर निर्यातकों में शामिल है, लेकिन इसकी पेलेट निर्माण क्षमता बहुत कम है। साल 2010 में दुनिया भर में कुल 28.8 करोड़ टन पेलेट का उत्पादन हुआ, जिसमें से भारत की हिस्सेदारी केवल 1.8 करोड़ टन की थी। साल 2011-12 के लिए बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि कच्चा लोहा एक प्राकृतिक संसाधन है, जिसका संरक्षण किया जाना चाहिए। पिछले साल नवंबर के आखिर में आयरन ओर पर निर्यात शुल्क बढ़ा कर 30% कर दिया गया है। इन नीतियों का असर भी देखने को मिला है। अप्रैल-दिसंबर 2012 की अवधि में कच्चे लोहे का निर्यात केवल 4 करोड़ टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 5.1 करोड़ टन था।
कर सुधार भी सरकार के लिए एक भारी सिरदर्द बने हुए हैं। साल 2007-08 में सरकार का कुल कर राजस्व जीडीपी का 12% था, जो 2009-10 में गिर कर 10% रह गया। व्यक्तिगत तौर पर जमा किये जाने वाले आय कर (इन्कम टैक्स) का जीडीपी में हिस्सा और तेजी से गिरा। ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को आय कर के दायरे में लाने की सरकार की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुई हैं, क्योंकि अब भी देश की कुल जनसंख्या के 3% से भी कम लोग आय कर देते हैं। सालाना 10 लाख रुपये से ज्यादा आमदनी अपने आय कर रिटर्न में दिखाने वालों की संख्या तो बेहद कम है।
सेवा कर (सर्विस टैक्स) वसूली के मोर्चे पर भी हालात चिंताजनक हैं। साल 2007-08 में सेवा कर से होने वाली आमदनी कुल जीडीपी का 1.03% थी, जो 2009-10 में घट कर 0.9% रह गयी। इन सब समस्याओं का अंत करने वाला सबसे बड़ा कर सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) हो सकता है, जिससे सरकार की कुल कर वसूली में जबरदस्त बढ़ोतरी हो सकती है। साथ ही इससे खुदरा कीमतें भी कम होंगी, क्योंकि कई सारे अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में शामिल हो जायेंगे।
अभी तक मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की ओर से उठाये जा रहे कुछ मुद्दों की वजह से जीएसटी की राह में बड़ी बाधा आ रही थी। लेकिन हाल में राज्य के वित्त मत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने सेवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर करों के दायरे में लाने को अपनी सहमति दे दी है। इस समिति की अध्यक्षता भाजपा नेता और बिहार के वित्त मंत्री सुशील मोदी कर रहे हैं। इस कदम से हालाँकि कर सुधारों की राह में एक कदम और बढऩा सँभव हो पायेगा, लेकिन मुकम्मल तौर पर बात तभी बनेगी, जब जीएसटी को लागू कर दिया जाये। इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी। अभी इस विधेयक पर संसद की एक समिति विचार कर रही है, लिहाजा इस बात की उम्मीद कम ही है कि जीएसटी लागू करने के लिए अप्रैल 2012 की समयसीमा का पालन किया जा सकेगा। इसके अलावा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में ढील पर भी सरकार क्या कदम उठाती है, इस पर सबकी नजर रहेगी। अगर इन दो मुद्दों पर सरकार बजट में कुछ ठोस पहल कर सके, तो इससे शेयर बाजार को नया उत्साह जरूर मिलेगा।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)