बदरुद्दीन खान, एवीपी - रिसर्च, एंजेल कमोडिटीज :
सोने में 2011 के दौरान लगातार ग्यारहवें साल बढ़त रही और घरेलू एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर यह 29,433 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव तक चढ़ा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1920.95 डॉलर प्रति औंस तक चढ़ा। सालाना आधार पर सोने का वायदा भाव कॉमेक्स में 12% और एमसीएक्स में 33% उछला। डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी से भारतीय बाजार में सोने के दाम ज्यादा बढ़े।
रिकॉर्ड ऊँचाई के बाद सोने की कीमतों में तेज गिरावट भी आयी क्योंकि वित्तीय अनिश्चितता की वजह से लोगों का डॉलर पर भरोसा बढ़ा। वहीं जोखिम वाले उत्पादों में बढ़ते दबाव से सोने में भी बिकवाली बढ़ी, क्योंकि निवेशक सोना बेच कर अपना घाटा कम करना चाह रहे थे। सोना 15 दिसंबर 2011 को 1560 डॉलर प्रति औंस तक लुढ़का, जिससे संकेत मिलता है कि लोगों की जोखिम लेने की घटती क्षमता का असर सोने की तेजी पर पड़ रहा है।
वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के आँकड़े बताते हैं कि 2011 की तीसरी तिमाही में सोने की माँग 6% बढ़ कर 1053.9 टन हो गयी। इस दौरान आभूषणों की माँग में 10% की गिरावट रही लेकिन निवेश माँग में अच्छी बढ़त ने इसका असर कम कर दिया। आभूषणों के सबसे बड़े बाजार भारत में गहनों की माँग 26% घटी है। हालाँकि चीन में इस श्रेणी में भी माँग बढ़ी है। तीसरी तिमाही में सोने की निवेश माँग 33% उछलकर 468.1 टन हो गयी। वहीं दुनिया के सबसे बड़े गोल्ड ईटीएफ एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट की औसत होल्डिंग जनवरी के 1257 टन से बढ़ कर दिसंबर में 1290 टन हो गयी।
पिछले साल एमसीएक्स पर सोने की कीमतें 20,740 रुपये प्रति 10 ग्राम पर खुलीं। शुरुआती कमजोरी के बाद सोने को 19,515 पर अच्छा सहारा मिला। बाद में सोने में जोरदार उछाल आया और यह 29,433 रुपये प्रति 10 ग्राम की रिकॉर्ड ऊँचाई तक चढ़ा। दिसंबर के अंतिम हफ्ते में यह 27,500 रुपये प्रति 10 ग्राम से ऊपर ही है। मतलब एक साल में करीब 33% का भारी मुनाफा मिल रहा है।
2012 के लिए अनुमान : मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता को देखते हुए 2012 की पहली छमाही में सोने की कीमत एक दायरे में टिकने की कोशिश करेगी। दूसरी छमाही में इसमें वापस उछाल आने की आशा है, क्योंकि उस समय तक यूरोपीय कर्ज संकट की तस्वीर साफ होने के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार दिखेगा। घरेलू बाजार में सोने को 25000/24000 रुपये के स्तर पर अच्छा सहारा मिल सकता है। वहीं दूसरी ओर 31,500 रुपये पर बाधा है, जिसके ऊपर जाने पर सोना 34,500 रुपये तक चढ़ सकता है। विश्व बाजार में सोने के लिए 1480/1420 डॉलर के स्तर पर बड़ा सहारा है। वहीं 1920 डॉलर पर बाधा है, जिसके आगे (9-12 महीने में) यह 2000 डॉलर तक जा सकता है।
रणनीति (9-12 महीनों के लिए) : एमसीएक्स सोना 25000-25500 प्रति 10 ग्राम के दायरे में खरीदें। इसमें घाटा काटने का स्तर 23,950 रुपये और लक्ष्य 31,500, 34,000 रुपये का रखें।
कच्चे तेल में मिला 32% मुनाफा
साल 2012 में नाइमेक्स में कच्चा तेल 9% बढ़ा, लेकिन रुपये की कमजोरी से एमसीएक्स पर यह करीब 32% उछल गया। दरअसल एक साल में रुपया 18% से ज्यादा लुढ़का। 2011 की पहली छमाही में मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीकी देशों में भूराजनैतिक चिंताओं से नाइमेक्स पर कच्चे तेल में 4% से ज्यादा तेजी रही। मई के पहले हफ्ते में इसकी कीमत 114.83 डॉलर प्रति बैरल तक उछल गयी थी जो अब आर्थिक चिंताओं से घट कर 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गयी हैं। सालाना आधार पर कच्चे तेल का भंडार 3% घटा है।
पिछले साल शुरुआती कमजोरी के बाद इसे 3543 रुपये प्रति बैरल पर सहारा मिला। बाद में यह 5430 रुपये प्रति बैरल तक उछलने के बाद दिसंबर के अंतिम हफ्ते में यह 5385 रुपये के आसपास है। इस तरह पिछले साल के बंद स्तर 4088 रुपये प्रति बैरल के मुकाबले करीब 32% का मोटा मुनाफा मिला है।
2012 के लिए अनुमान : कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि अगर ईरान के निर्यात पर प्रतिबंध लगा तो वह आपूर्ति घटा देगा। नाइमेक्स पर कच्चे तेल को 84/78 डॉलर पर समर्थन और 115/120 डॉलर के आसपास बाधा मिलने की संभावना है। घरेलू बाजार में इसे 4500 पर अच्छा सहारा मिलेगा जिसके नीचे यह 4150 रुपये तक फिसल सकता है। ऊपर की ओर 6100 की बाधा पार करने पर 9-12 महीने में यह 6350 रुपये तक चढ़ सकता है।
रणनीति (9-12 महीने के लिए) : एमसीएक्स कच्चा तेल 4450-4500 रुपये प्रति बैरल के स्तर पर खरीदें। सौदे में घाटा काटने का स्तर 4150 रुपये और लक्ष्य 6100/6300 रुपये प्रति बैरल का रखें।
तांबे की मांग में कमी से चिंता
पिछले साल तांबे में तेज उतार-चढ़ाव रहा। जहाँ इसने 10,190 डॉलर प्रति टन की रिकॉर्ड ऊँचाई को छुआ वहीं यह वैश्विक आर्थिक चिंताओं और औद्योगिक माँग घटने से 6635 डॉलर प्रति टन तक भी लुढ़क गया। ईआईयू के अनुमानों से संकेत मिलता है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका में कमजोर माँग के साथ चीन में मौद्रिक सख्ती से पिछले साल तांबे की खपत बढऩे की रफ्तार घट कर 2.8% पर आ गयी। कर्ज लागत बढऩे से दुनिया में 47% तांबे की खपत वाले चीन में उत्पादन और निर्माण गतिविधियों में सुस्ती रही। नकदी की दिक्कत से चीन की तांबा फैक्ट्ररियों पर बुरा असर पड़ा। हालाँकि कीमत में तीखी गिरावट के बाद तीसरी तिमाही में चीन से माँग कुछ बढ़ी है, लेकिन अभी वहाँ खपत बढऩे के संकेत नहीं हैं। चीन में मौद्रित सख्ती कम होने की उम्मीद से ईआईयू को लगता है कि 2012 में तांबे की खपत 3.2% बढ़ सकती है। साथ ही रीस्टॉकिंग साइकिल से भी माँग बढ़ सकती है क्योंकि 2010 में चीनी कारोबारियों ने स्टॉक नहीं बढ़ाया था। यही वजह है कि 2010 की दूसरी तिमाही में तांबे का आयात सुस्त पड़ा था। लेकिन इस साल दूसरी छमाही में तांबा आयात 275,499 टन तक पहुँच गया जो 16 महीनों का उच्च स्तर है। अगस्त और सितंबर में लंदन मेटल एक्सचेंज पर तांबे की कीमत शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज से ज्यादा गिरी थी। कीमतों में अंतर से चीनी कारोबारियों के लिए आयात फायदेमंद रहा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि खपत में भी बढ़ोतरी हुई। आयात में बढ़ोतरी मुख्यत: मुनाफे के लिए हुई। ईआईयू का अनुमान है कि चीन में रिफाइंड तांबे की मांग 2012 में 6% और 2013 में 8% बढ़ेगी। इस साल चीन में ब्याज घटने की उम्मीद है, जिससे तांबा कंपनियों को राहत की उम्मीद है। हालाँकि यूरो क्षेत्र में तांबे की मांग घट सकती है। वहीं अच्छी घरेलू मांग से चीन पर खास असर नहीं पडऩे की उम्मीद है।
यूरो क्षेत्र में दुनिया के 22% तांबे की खपत होती है, लेकिन कमजोर आर्थिक हालात के कारण इस साल यहाँ माँग सुस्त पड़ी है। डब्ल्यूबीएमएस के मुताबिक 2011 के पहले आठ महीनों में ईयू में माँग केवल 1.4% बढ़ी है। ईआईयू का मानना है कि पूरे 2011 के दौरान ईयू में रीफाइंड तांबे की माँग में केवल 0.8% की बढ़त दिखेगी। यूरोप में कारोबारियों का भरोसा कम हो रहा है और सितंबर में रिफाइनरियों से कैथोड के ऑर्डर टालने की खबरें आ रही हैं।
चीन सबसे बड़ा उपभोक्ता ही नहीं है, बल्कि यहाँ दुनिया के कुल तांबा उत्पादन का 33% हिस्सा यहीं होता है। ईआईयू को उम्मीद है कि 2011 में चीन में उत्पादन में बढ़ोतरी दर 2010 के 13% से घट कर 10.4% रह सकती है। वहीं 2012-13 में ये और घट कर 8% रह सकती है।
पिछले साल एमसीएक्स कॉपर की कीमत 439.30 रुपये प्रति किलो पर खुली। शुरुआती कमजोरी के बाद इसे 332.35 रुपये प्रति किलो पर सहारा मिला। हालाँकि बाद में कीमत 466.20 रुपये प्रति किलोग्राम तक उछल गयी। दिसंबर के अंतिम हफ्ते में तांबा 400 रुपये प्रति किलोग्राम के कुछ ऊपर है। पिछले साल के मुकाबले इसमें करीब 10% का नुकसान रहा।
2012 के लिए अनुमान : आपूर्ति के मसले पर तांबे मे चिंता बनी रहेगी। साथ ही अमेरिका के सुधरते आर्थिक हालात से 2012 की दूसरी तिमाही में तांबे की कीमत को सहारा मिल सकता है। चीन में इस साल ब्याज दरें घटने की उम्मीद है, जिससे वहाँ माँग बढ़ सकती है। लेकिन इसके पहले यूरोप की घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिन्होंने 2011 में तांबे की कीमतों पर बड़ा असर डाला। यूरोप से कोई नकारात्मक खबर आने पर 3-4 महीने में कीमतों में दबाव दिख सकता है। घरेलू बाजार में तांबे को 340 रुपये पर अहम सहारा है जिसके नीचे यह 300 रुपये तक लुढ़क सकता है। वहीं ऊपर यह 9-12 महीने में 466 और फिर 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा सकता है।
सोयाबीन 2800 तक जाने की उम्मीद
2011 की पहली छमाही में सोयाबीन उत्पादक देशों में खराब मौसम और खाद्य तेल की उपलब्धता में कमी की आशंकाओं से कीमत तेज रही। लेकिन दूसरी छमाही के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बाद कमोडिटी माँग में कमी की आशंकाओं से दुनिया भर में खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट रही। हालाँकि घरेलू बाजार में खाद्य तेल कीमतों में 8.2% की हल्की बढ़त रही। वहीं सीबॉट सोया तेल में 12.3% की गिरावट रही।
सर्दियों में माँग बढऩे और रुपये की कमजोरी से स्टॉकिस्टों की ओर से खरीदारी बढ़ाने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आयी। उत्पादन बढऩे की उम्मीद से घरेलू बाजार में सितंबर 2011 के बाद सोयाबीन की कीमत में गिरावट रही। हालांकि 14 सितंबर को कृषि मंत्रालय की ओर से जारी प्राथमिक अनुमान के मुताबिक 2011 में खरीफ तिलहन पिछले साल से 0.67% घट कर 1.25 करोड़ टन रहा। अगस्त में सोयबीन की औसत कीमत 2426 रुपये प्रति क्विंटल रही जो सितंबर में घट कर 2300 रुपये प्रति क्विंटल रह गयी। अक्टूबर में कीमतों में हल्की बढ़ोतरी रही। पूरे साल भर में सोयाबीन में 1.4% की बढ़त रही।
पिछले साल सोयाबीन की कीमत 2388 रुपये प्रति क्विंटल पर खुली। अच्छी निर्यात माँग से शुरू में यह 2557 रुपये प्रति क्विंटल तक चढ़ा। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक अप्रैल से सितंबर 2011 के बीच भारत का खली निर्यात 48% बढ़ कर 20.34 लाख टन रहा। वहीं सोया खली निर्यात 33% बढ़ कर 11.31 लाख टन हो गया। अमेरिका में सोयाबीन का रकबा घटने से शुरुआत में बाजार तेज रहा। हालाँकि बाद में कीमत टिक नहीं पायी और घरेलू रकबा बढऩे की खबर से यह 2031 रुपये प्रति क्विटंल तक लुढ़क गया। लेकिन दक्षिण अमेरिका में सूखे मौसम से कीमत फिर चढ़ी और फिलहाल यह 2480 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है। पिछले साल की बंद कीमत 2374 रुपये से यह करीब 5% ऊपर है।
2012 के लिए नजरिया : ब्राजील और अर्जेंटीना में सूखे मौसम की चिंता से पहली तिमाही में इसमें सकारात्मक रुझान रह सकता है। अभी फसल पक रही है और मार्च अप्रैल तक कटाई होगी। अगर तब तक मौसम सूखा रहता है तो कीमत में मजबूती रह सकती है। इसे 2150/2030 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर अहम सहारा मिलने की उम्मीद है। वहीं 9-12 महीने में ऊपर की ओर कीमत 2630/2800 रुपये प्रति क्विंटल तक चढ़ सकती है।
रणनीति (9-12 महीने के लिए) : एनसीडीईएक्स सोयाबीन 2150/2200 रुपये प्रति क्विंटल के बीच खरीदें। सौदे में घाटा काटने का स्तर 2030 रुपये और लक्ष्य 2600/2800 रुपये प्रति क्विंटल रखें।
(निवेश मंथन, जनवरी 2012)