सुशांत शेखर :
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी ने हाल में आये सात आईपीओ यानी पब्लिक इश्युओं में गड़बड़ी पायी है।
सेबी ने 28 दिसंबर को अपने अंतरिम आदेश में इन कंपनियों और इनसे जुड़े प्रमोटरों, निदेशकों और मर्चेंट बैंकरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें शेयर बाजार में किसी भी तरह के लेनदेन से रोक दिया।
सेबी ने तक्षशील सॉल्युशंस, आरडीबी रसायंस, भारतीय ग्लोबल, वनलाइफ कैपिटल एडवाइजर्स, ब्रूक्स लैबोरेटीज, पीजी इलेक्ट्रोप्लास्ट और तिजारिया पॉलीपाइप्स के आईपीओ के मामले में कार्रवाई की है। इन सभी कंपनियों के आईपीओ में निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। लिस्टिंग के दिन ही या इसके एक दो दिन के भीतर ये शेयर जमीन पर आ गये थे। इसके बाद से ही इन इश्युओं में गड़बड़ी की आशंका जतायी जा रही थी। सेबी ने इन सभी से जुड़े मर्चेंट बैंकरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कड़ी कार्रवाई की है। तक्षशील सॉल्युशंस के आईपीओ के लीड मैनेजर पीएनबी इनवेस्टमेंट, भारतीय ग्लोबल और पीजी इलेक्ट्रोप्लास्ट से जुड़े अलमोंड्ज ग्लोबल सिक्योरिटीज को कोई भी नया काम लेने से रोक दिया गया है। साथ ही ये सातों कंपनियाँ और इनके प्रमोटर भी अगले आदेश तक बाजार से कोई रकम नहीं जुटा सकेंगे।
सेबी ने आईपीओ से जुटायी गयी रकम को एस्क्रो खाते में रखने को कहा है। कई कंपनियों ने यह रकम इंटरकॉर्पोरेट डिपॉजिट (आईसीड़ी) में लगा रखी थी। सेबी ने इन आईसीडी को वापस लेकर वह रकम एस्क्रो खाते में रखने को कहा है। सेबी ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इन कंपनियों, प्रमोटरो और मर्चेंट बैंकरों पर आईपीओ के दस्तावेजों में कई अहम जानकारियाँ छिपायी थीं। सेबी ने यह भी पाया है कि इन कंपनियों ने मर्चेंट बैंकरों और कई घरेलू या संस्थागत निवेशकों के साथ मिल कर लिस्टिंग के बाद गड़बड़ी की।
कैसे हुई गडबड़ी
हाल के आईपीओ में हुई गडबड़ी ने 2003 से 2005 के बीच हुए आईपीओ घोटाले की याद दिला दी है। उस समय घोटालेबाजों ने फर्जी डीमैट खातों के माध्यम से खुदरा निवेशकों के कोटे के शेयर हथिया लिये थे। मसलन एक कारोबारी रुपलबेन पांचाल के पास 15000 से ज्यादा डीमैट खाते थे। हालाँकि उस घोटाले में प्रमोटरों की भूमिका साफ नहीं है। लेकिन 2011 में हुए घोटाले में तो प्रमोटरों और मर्चेंट बैंकरों ने बाकायदा सांठगांठ करके गड़बडिय़ाँ कीं।
भारतीय ग्लोबल, पीजी इलेक्ट्रोप्लास्ट, तक्षशील सॉल्युशंस और तिजारिया पॉलीपाइप्स में तो कुछ बड़े निवेशकों को इन कंपनियों ने ही अपने आईपीओ में आवेदन के लिए पैसे दिये थे। कुछ मामलों में कंपनी ने रकम को किसी काम में खर्च हुआ दिखाया जो बाद में ब्रोकरों के पास पहुँच गयी। मसलन पीजी इलेक्ट्रोप्लास्ट ने 7 करोड़ रुपये का कच्चा सोना खरीदा। कंपनी ने यह सौदा पद्म प्रभु और एमजे कमोडिटीज के साथ किया। इन दोनों के जरिये 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम ब्रोकरों के पास पहुँच गयी, जिन्होंने आईपीओ में निवेश किया। एमजे कमोडिटीज ने तो 61 लाख रुपये सीधे आईपीओ में निवेश किए। कुछ आईपीओ में चुनिंदा बड़े निवेशकों को भरोसा दिलाया गया कि उन्हें इश्यू से मुनाफे पर निकलने का मौका दिया जायेगा। मसलन तिजारिया पॉलीपाइप्स के इश्यू में तीन संस्थागत निवेशकों - स्पैरो एशिया डाइवर्सिफाइड अपॉच्र्युनिटीज फंड, आईपीआरओ फंड और क्रेडो इंडिया थीमेटिक फंड को शेयर जारी किये गये थे। स्पैरो और क्रेडो ने अपने सारे शेयर 60 रुपये के इश्यू कीमत के मुकाबले 62 रुपये पर बेचे। आईपीआरओ ने भी अपने ज्यादातर शेयर इसी भाव पर बेचे। ये सारे शेयर कुछ खास लोगों ने ही खरीदे थे। इनमें जिवराज बाचूभाई जाला, तोड़ी सिक्योरिटीज, सालसार स्टॉक ब्रोकिंग, दिव्या दृष्टि मर्चेंट्स, दिव्य दृष्टि ट्रेडर्स और व्हीलर्स डेवलपर्स के नाम अहम हैं।
इन सातों कंपनियों पर आईपीओ से मिली रकम के दुरुपयोग का भी आरोप लगा। मसलन भारतीय ग्लोबल ने जुलाई में सामान्य कामकाज, विस्तार आदि के नाम पर आईपीओ से 55 करोड़ रुपये जुटाये। लेकिन 15 नवंबर को कंपनी के खाते में महज 54.49 लाख रुपये बचे थे। बाकी रकम कई कंपनियों के साथ भारतीय ग्लोबल के प्रमोटरों से जुड़ी दूसरी कंपनियों के खातों में डाल दी गयी। कंपनी ने आईपीओ की रकम का कैसे दुरुपयोग किया, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। सेबी की जाँच में खुलासा हुआ कि भारतीय ग्लोबल ने ऑफिस खोलने के लिए धनमंगल डेवलपर्स नाम की कंपनी को ढाई करोड़ रुपये का भुगतान किया। लेकिन सेबी को पता चला कि कोलकाता की धनमंगल डेवलपर्स कोई काम ही नहीं कर रही है। कंपनी ने कहा कि उसने धनमंगल डेवलपर्स की भविष्य की परियोजना के लिए अग्रिम राशि दी थी। लेकिन यह परियोजना कहाँ की थी, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गयी। इस कंपनी ने आईसीडी में 12 करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश किया, जो संदिग्ध है।
इस बार के आईपीओ घोटाले में प्रमोटर, मर्चेंट बैंकर और बड़े निवेशक आईपीओ से मोटा पैसा बनाकर किनारे हो गये और आम निवेशकों को चूना लगाया गया। इस घोटाले में बड़े पैमाने पर मनी लांड्रिंग की आशंका भी जतायी जा रही है। सेबी ने इस मामले में तार्किक अंत तक पहुँचाने का भरोसा जताया है। लेकिन 2005 के आईपीओ घोटाले में जाँच का जो हाल है, उससे कोई उत्साह नहीं जगता। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई की भूमिका भी काफी अहम है, क्योंकि इसमें काले धन को सफेद बनाने के खेल की आशंका भी है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2012)