अगर किसी ने अब तक 2500 करोड़ डॉलर से ज्यादा के विलय-अधिग्रहण और पूँजी जुटाने के सौदे कराये हों, तो उसके लिए 20 करोड़ डॉलर का सौदा कितना खास होगा? शायद एक छोटा सौदा, कुछ खास नहीं। सुमंत सिन्हा ने भले ही आदित्य बिड़ला समूह के सीएफओ के रूप में नोवेलिस की खरीद के लिए 600 करोड़ डॉलर का सौदा किया हो, लेकिन उससे बेहद छोटा, केवल 20 करोड़ डॉलर यानी लगभग 1000 करोड़ रुपये का एक ताजा सौदा उनके लिए बेहद खास है।
अभी हाल ही में भारत में अक्षय ऊर्जा (रीन्यूएबल एनर्जी) क्षेत्र से जुड़ी यह बड़ी खबर आयी कि अमेरिकी निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स भारतीय कंपनी रीन्यू विंड पावर में बहुमत हिस्सेदारी खरीदने के लिए 1000 करोड़ रुपये का प्राइवेट इक्विटी निवेश करेगा। रीन्यू विंड पावर के चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुमंत सिन्हा हैं। यह भारत में अक्षय उर्जा क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा निवेश होगा। ऊर्जा के जिन प्राकृतिक स्रोतों का क्षय नहीं होता या जिनका नवीकरण होता रहता है और जो प्रदूषणकारी नहीं हैं, उन्हें अक्षय ऊर्जा के स्रोतों में गिना जाता है, जैसे सौर ऊर्जा, पनबिजली, पवन ऊर्जा आदि।
रीन्यू विंड पावर गोल्डमैन सैक्स के निवेश की रकम का इस्तेमाल पवन ऊर्जा के क्षेत्र में नयी परियोजनाओं के मौके तलाशने के लिए करेगी। फिलहाल इसके पास अभी कोई उत्पादन क्षमता नहीं है। लेकिन कंपनी अगले साल जून तक 85 मेगावाट की क्षमता हासिल कर लेगी। कंपनी का लक्ष्य इसके बाद हर साल अपनी क्षमता में 200-300 मेगावाट की बढ़ोतरी करके 2015 तक 1 गीगावाट (1000 मेगावाट) क्षमता वाली कंपनी बनना है। इसने पवन ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज भारतीय कंपनी सुजलॉन एनर्जी और जर्मनी की दो कंपनियों - केनेर्सिस जीएमबीएच और रीजेन पावरटेक के साथ समझौते किये हैं।
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा कंपनी सुजलॉन के साथ सुमंत सिन्हा का पुराना संबंध है। वे साल 2008 से मई 2010 तक सुजलॉन के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) थे और इसका वैश्विक कामकाज सँभालते थे। उन्होंने सुजलॉन के 3 अरब डॉलर के कर्ज के पुनर्गठन (डेट रिफाइनेंसिंग) में अहम भूमिका निभायी थी। साल 2008 में सुजलॉन से जुडने से पहले सुमंत सिन्हा आदित्य बिड़ला रिटेल लिमिटेड (एबीआरएल) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) थे। एबीआरएल मोर नाम से रिटेल श्रृंखला चलाती है। इससे पहले 2002 से 2007 तक आदित्य बिड़ला समूह में सुमंत सिन्हा ने सीएफओ की जिम्मेदारी भी निभायी। उनके इस पद पर रहने के समय ही इस समूह ने अल्ट्राटेक सीमेंट, नोवेलिस और आइडिया सेलुलर जैसे महत्वपूर्ण अधिग्रहण किये थे। सुमंत इस समूह के विलय-अधिग्रहण विशेषज्ञ बन गये थे!
सुमंत सिन्हा ने सिटीकॉर्प के वाइस प्रेसिडेंट और आईएनजी बेरिंग्स के निदेशक, एशिया क्षेत्र की जिम्मेदारी भी सँभाली है। आईआईटी, दिल्ली से बीटेक करने के बाद आईआईएम, कोलकाता से एमबीए किया। साल 1989 में एमबीए पूरा करने के बाद उन्होंने दो सालों तक टाटा ऐडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज को अपनी सेवाएँ दी थी। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स से मास्टर डिग्री भी हासिल की है। साथ ही वे एक चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट (सीएफए) हैं।
सुमंत सिन्हा ने सुजलॉन से अलग होने के बाद रीन्यू विंड पावर से पहले एक निवेश बैंकिंग और सलाहकार कंपनी सेवंट एडवाइजर्स भी शुरू की थी। जब सुमंत ने सुजलॉन से इस्तीफा दे कर सेवंट एडवाइजर्स की शुरुआत की, तो उसकी सलाह सेवाओं के लिए सुजलॉन ही उनकी पहली ग्राहक बनी थी। गोल्डमैन सैक्स के साथ हुए समझौते में सुमंत को वित्तीय सलाह सेवाओं के लिए किसी अन्य निवेश बैंकिंग फर्म के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ी, सेवंट एडवाइजर्स ने ही यह जिम्मेदारी सँभाल ली। सुमंत सिन्हा का एक परिचय यह भी है कि वे एनडीए सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के बेटे हैं। लेकिन कॉर्पोरेट जगत में उन्होंने इस पहचान से अलग खुद अपनी पहचान बनायी और अब लोग उन्हें उनकी अपनी उपलब्धियों से ही ज्यादा जानते हैं। सुमंत के भाई जयंत सिन्हा भी कॉर्पोरेट जगत में हैं और सामाजिक निवेश फर्म ओमिड्यार नेटवर्क इंडिया एडवाइजर्स से प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं।
सुमंत को वित्तीय मसलों पर लिखने का भी शौक रहा है। उनके लेख प्रमुख वित्तीय अखबारों में छपते रहे हैं। राजनीति से अलग कर रह कर कॉर्पोरेट क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के बावजूद सुमंत राजनीतिक मसलों पर मौन नहीं रहते। ट्विटर पर उनकी राय मुखर होती रहती है, हालांकि ज्यादा सक्रिय ढंग से नहीं। इस साल फरवरी में ही उन्होंने ट्विटर पर अपना खाता खोला। एक मार्च को उन्होंने लिखा, “बजट निराश करने वाला रहा, भारत को इससे कहीं ज्यादा चाहिए था। हमें ज्यादा साहसिक कदमों की जरूरत है, साँढ़ को उसकी सींगों से पकडऩे की जरूरत है।“ जब प्रधानमंत्री ने सीवीसी के मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की तो उन्होंने लिखा, “अगर वे अब जिम्मेदारी स्वीकार कर रहे हैं तो उन्होंने पहले ऐसा क्यों नहीं किया। क्यों यह सब केवल सर्वोच्च न्यायालय के दबाव में हुआ? आप पकड़े गये तो गलती मान ली, वरना सब ठीक?” अप्रैल में उन्होंने अन्ना हजारे के अनशन का भी समर्थन किया। कोई चाहे तो कह सकता है कि उनकी राजनीतिक सोच अपने राजनेता पिता से अलग नहीं है। लेकिन हाल में वे ट्विटर पर चुप ही रहे हैं, शायद गोल्डमैन सैक्स से बातचीत में ज्यादा उलझे रहे हों!
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)