पूनम :
पिछले कुछ महीने सोने और चाँदी के भावों में जबरदस्त उतारचढ़ाव के रहे हैं। पहले तो सोना नयी रिकॉर्ड ऊँचाई को छू गया। लेकिन हाल में जब विश्व में फिर से यूरोपीय और अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं को लेकर घबराहट बढ़ी तो निवेशकों ने इस बार सोने का सुरक्षित दामन थामने के बदले डॉलर को चुनना ज्यादा पसंद किया।
सितंबर के महीने में ही सोने का अंतरराष्ट्रीय भाव छह सिंतबर को 1,924 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चढ़ा और इस महीने के दौरान ही यह 1,535 डॉलर प्रति औंस तक लुढ़क गया, यानी शिखर से करीब 20% नीचे। इस उतार-चढ़ाव के बाद अगर अगस्त अंत की तुलना में सितंबर अंत के भाव को देखें तो सोना पूरे महीने के दौरान 1,826 डॉलर प्रति औंस से 10.5% फिसल कर 1635 डॉलर पर आ गया।
सोने के अंतरराष्ट्रीय भावों में यह उतार-चढ़ाव अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ऑपरेशन ट्विस्ट के फैसले के बाद आया, जिसमें अमेरिका के इस केंद्रीय बैंक ने छोटी अवधि के सरकारी कर्जों से से अपना निवेश निकाल कर लंबी अवधि के सरकारी कर्जों में वह निवेश करने का ऐलान किया। फेडरल रिजर्व से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए किसी बड़े कदम की उम्मीद कर रहे निवेशकों को उसका यह ऐलान अपर्याप्त लगा। इसी निराशा में तकरीबन सभी संपत्ति वर्गों, जैसे शेयर बाजार और कमोडिटी वगैरह में घबराहट भरी बिकवाली शुरू हो गयी।
आम तौर पर जब निवेशक घबराहट के मौकों पर बाकी संपत्ति वर्गों से बाहर निकलते हैं तो सुरक्षा की तलाश में वे सोने में निवेश करते हैं। लेकिन इस बार यह परंपरागत रुझान नहीं दिखा और बाकी संपत्ति वर्गों के साथ-साथ सोने की कीमतों में भी गिरावट आयी। इस बार निवेशकों ने सुरक्षा की तलाश में डॉलर की शरण ली। हालाँकि इस बारे में यह भी कहा गया कि बाकी संपत्तियों में नुकसान उठाने वाले निवेशकों ने नकदी जुटाने के लिए सोने में बिकवाली की। हालाँकि भारतीय बाजार में सोने में आयी गिरावट तुलनात्मक रूप से कम रही, क्योंकि इसी दौरान डॉलर महँगा होने के चलते रुपये में सोने का भाव उतना कम नहीं हो पाया।
सोने के बाजार में पिछले 11 सालों से लगातार तेजी का दौर चलता रहा है। साल 1920 के बाद पहली बार सोने में इतने लंबे समय तक तेजी दिखी। हालाँकि अक्टूबर 2008 में भी सोने में 18% की गिरावट आयी थी, लेकिन इसके अगले दो महीनों में यह फिर से करीब 23% उछल गया था।
पिछले साल से अब तक चार्ट देखें तो इसमें भी लगातार एक तेजी का ही रुझान रहा है, जो सितंबर की गिरावट में ही टूटा। इस दौरान डॉलर इंडेक्स के साथ इसका उल्टा संबंध लगातार चलता रहा है।
सिंतबर में आयी कमजोरी के बावजूद इस साल सिंतबर के अंत तक सोने में निवेशकों को फायदा ही हो रहा है। अगर किसी ने इस साल की शुरुआत में सोना स्पॉट खरीदा हो तो उसे सिंतबर अंत के भाव के मुताबिक 15% का फायदा ही रो रहा होगा। इसी वजह से जानकार मान रहे हैं कि लंबी अवधि के निवेशक सिंतबर की गिरावट के चलते नहीं घबरायेंगे और इसमें अपना निवेश बनाये रखेंगे।
वल्र्ड गोल्ड काउंसिल (डब्लूजीसी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कैलेंडर साल 2011 की दूसरी तिमाही में सोने की भारतीय मांग पिछले साल की दूसरी तिमाही से 38% ज्यादा रही है। इस दौरान चीन से सोने की मांग में 25% बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इस साल की दूसरी तिमाही में सोने की कुल मांग का 46% हिस्सा गहनों के रूप में था। गहनों की वैश्विक मांग 6% बढ़ कर 442.5 टन की रही, जिसमें से 32% हिस्सा भारत में गहनों की मांग का था। जनवरी से जून 2011 की छमाही में भारत में सोने का आयात 553 टन का रहा, जिससे साफ है कि इस साल सोने का कुल आयात 1,000 टन को पार कर सकता है। साल 2010 में भारत ने 958 टन सोने का आयात किया था।
इस बीच आईएमएफ के ताजा आँकड़े बता रहे हैं कि अगस्त महीने में कई प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपना सोने का सुरक्षित भंडार (गोल्ड रिजर्व) बढ़ाया है। सेंट्रल बैंक ऑफ रशिया ने अगस्त में अपने सोने के भंडार में 118,000 ट्रॉय औंस का इजाफा किया है। थाईलैंड का सोने का सुरक्षित भंडार इस साल जनवरी में 32 लाख औंस का था, जो अगस्त के अंत तक बढ़ कर 44 लाख औंस का हो गया। बोलिविया के केंद्रीय बैंक ने भी अपने भंडार में 225,000 औंस की बढ़ोतरी की।
सवाल यह है कि इस समय सोने में निवेश कितना सटीक रहेगा। परंपरा के लिहाज से धनतेरस और दीवाली के मौके पर केवल नियमित निवेशक और कारोबारी ही नहीं, बल्कि आम लोग भी बड़े पैमाने पर सोने-चाँदी की खरीदारी करते हैं। इस खरीदारी की वजह से दीवाली से पहले भारत में सोने और चाँदी का बाजार हर साल ही गर्म रहता है।
इंडिया इन्फोलाइन ने सितंबर के अंत में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सोने के भावों में आयी गिरावट के बाद इस पीली धातु के बारे में उसका नजरिया तेजी का ही है। भारत में त्योहारों और शादी के मौसम की वजह से को ध्यान में रखते हुए इसका मानना है कि सोने के भावों में आयी मौजूदा गिरावट से अक्टूबर और नवंबर में गहनों की मांग मजबूत रहेगी।
साथ ही, जिस तरह फेडरल रिजर्व ने लंबी अवधि की ब्याज दरों को नीचे बनाये रखने की रणनीति अपनायी है, उससे सोने में लंबी अवधि के लिहाज से तेजी का ही रुख कायम रहना चाहिए। एक मोटा अनुमान यह है कि देश में हर साल 1 करोड़ शादियाँ होती हैं और शायद ही कोई भारतीय शादी हो, जिसमें सोने के गहनों की खरीदारी न की जाती हो। जब तक दुल्हन गहनों से लकदक सजी न हो, तब तक कहीं भारत में शादी होती है भला! जानकारों का अनुमान है कि इस साल त्योहारों के मौसम में देश में सोने की मांग करीब 150 टन की रहेगी, जो पिछले साल से 65% ज्यादा होगी। पिछले साल त्योहारी मौसम में 90 टन सोने की मांग रही थी।
इस बार मानसून सामान्य से बेहतर रहने की वजह से ग्रामीण भारत से भी सोने की अच्छी मांग निकलने की उम्मीद की जा रही है। हाल में मुंबई सर्राफा बाजार के जानकारों ने अनुमान जताया है कि दीवाली तक 10 ग्राम सोने का भाव करीब 30,000 रुपये का स्तर छू सकता है। यह तेजी मुख्य रूप से स्थानीय मांग की वजह से रहने की बात कही जा रही है। हालाँकि सभी लोग सोने का भाव इस स्तर तक उछलता देख रहे हों, यह जरूरी नहीं है। कुछ जानकारों के हिसाब से यह करीब 26,000-26,500 रुपये के आसपास रह सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव छह सितंबर को 1924 डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक चढऩे के दिन ही भारतीय बाजार में भी सोना 28,300 रुपये प्रति 10 ग्राम के नये रिकॉर्ड स्तर तक उछल गया था, जो सिंतबर के अंत में करीब 26,000 रुपये तक लौट आया। इस साल की शुरुआत में सोने का भाव 20,688 रुपये प्रति 10 ग्राम था।
अगर गोल्ड ईटीएफ यानी सोने के एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में होने वाले निवेश को देखें तो वहाँ भी यही कहानी है। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स (एम्फी) के आँकड़ों के अनुसार इस साल अगस्त के अंत में सभी भारतीय गोल्ड ईटीएफ की कुल संपत्तियाँ 74.8 अरब रुपये की थीं, जो पिछले साल अगस्त के 26.4 अरब रुपये की तुलना में करीब तिगुनी हैं। भारत में गोल्ड ईटीएफ की शुरुआत केवल चार साल पहले हुई थी। इस समय देश में 11 गोल्ड ईटीएफ हैं, जिनके पास कुल 24.1 टन सोना है। निवेश के नजरिये से गोल्ड ईटीएफ की यूनिटें खरीदना निवेशकों के लिए एक सुविधाजनक विकल्प है, क्योंकि कुछ फंड तो मासिक 100 रुपये जितना छोटा निवेश भी स्वीकार करते हैं।
सोने का आकर्षण वैसे तो दुनिया के हर कोने में है, लेकिन भारत के लोगों को इससे थोड़ा ज्यादा ही प्यार है। आखिर क्यों न हो, यह न केवल बेहद सुंदर, बल्कि एक बेहद दुर्लभ धातु भी है। विश्व के इतिहास में आज तक जितना भी सोना निकाला गया, उसकी कुल मात्रा केवल 1.72 लाख टन ही है। हर साल इसमें बेहद छोटी मात्रा जुड़ती है। पिछले साल 2010 में विश्व भर में कुल 2,450 टन सोना ही खानों से निकाला गया। इसमें से 958 टन सोना अगर भारत आ गया तो साफ है कि बाकी दुनिया के मुकाबले हम इस चमकीले पीले धातु पर कितना मरते हैं!
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)