सुशांत शेखर :
एक अक्टूबर से मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी की तर्ज पर स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी लागू हो गयी है। मतलब यह कि अब अगर आप चाहें तो अपनी पॉलिसी बदले बिना बीमा कंपनी बदल सकते हैं। बीमा क्षेत्र के नियामक आईआरडीए के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कोई ग्राहक अपनी मौजूदा बीमा कंपनी से संतुष्ट नहीं है और नयी बीमा कंपनी चुनना चाहता है तो उसे पॉलिसी नवीनीकरण की तिथि के 45 दिनों से पहले नयी कंपनी को आवेदन देना होगा।
नयी कंपनी 7 दिनों के भीतर पुरानी कंपनी से जानकारियाँ लेकर वह पॉलिसी स्वीकार कर लेगी। अगर नयी बीमा कंपनी आपको 15 दिनों के भीतर पॉलिसी स्वीकार करने की जानकारी नहीं देती तो आप मान सकते हैं कि आवेदन स्वीकार हो गया है। आईआरडीए के निर्देशों के मुताबिक 15 दिनों के बाद वह बीमा कंपनी ग्राहक का आवेदन रद्द नहीं कर सकती है।
सबसे अच्छी बात यह है कि नयी बीमा कंपनी चुनने के बाद भी पुरानी पॉलिसी के नो क्लेम बोनस और अन्य फायदे जारी रहेंगे। मसलन, बीमा कंपनियाँ पहले से मौजूद कुछ रोगों पर चार साल बाद पॉलिसी के फायदे देती हैं। अगर आप पुरानी कंपनी से दो साल बाद अपनी पॉलिसी नयी बीमा कंपनी के पास ले जाते हैं तो आपको इस बदलाव के दो साल बाद ही पहले से मौजूद बीमारियों पर बीमा सुरक्षा मिलेगी। नयी कंपनी आपको ऐसे मामले में चार साल इंतजार करने को नहीं कह सकती है।
ग्राहक केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी ही नहीं, बल्कि फेमिली फ्लोटर पॉलिसी के मामले में भी नयी कंपनी चुन सकते हैं। अगर किसी कारण से एक बार बीमा कंपनी बदलने का आवेदन देने के बाद ग्राहक पुरानी कंपनी के साथ ही जुड़े रहने का फैसला करे तो पुरानी कंपनी कोई नयी शर्त नहीं लगा सकती है। यही नहीं, अगर आपने अपनी कंपनी की समूह स्वास्थ्य बीमा ली है तो आपको उसी कंपनी की व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेने का अधिकार होगा। यही नहीं, एक साल बाद ग्राहक दूसरी बीमा कंपनी के पास पॉलिसी का स्थानांतरण कर सकता है।
हालाँकि स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी के कुछ पेंच भी हैं। मसलन बीमा कंपनी ए के साथ ग्राहक की बीमित रकम दो लाख रुपये और संचयी बोनस 50,000 रुपये है, तो जब वह बीमा कंपनी बी से जुड़ेगा तो उसके बीमा की रकम अपने आप 2.5 लाख रुपये हो जायेगी। अगर नयी कंपनी के पास ठीक इतनी रकम की कोई बीमा पॉलिसी नहीं है, तो उसे इस रकम के सबसे करीबी ऊँचे स्लैब की पॉलिसी लेनी होगी। इस स्थिति में उससे प्रीमियम तो तीन लाख रुपये के आधार पर लिया जायेगा, लेकिन उसे पोर्टेबिलिटी के फायदे 2.5 लाख रुपये तक के लिए ही मिलेंगे।
जाहिर है इससे आपका प्रीमियम बढ़ जायेगा। इसी वजह से बीमा क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि नो क्लेम बोनस से जुड़ा यह एक खास पेंच है, जिसका ध्यान बीमा कंपनी बदलते समय ग्राहकों को रखना होगा। इसीलिए कंपनी बदलने से पहले ग्राहकों को नयी बीमा कंपनी की सभी योजनाओं की जानकारी लेनी होगी। हालाँकि ग्राहक के पास कम बीमा वाली हेल्थ पॉलिसी चुनने का विकल्प भी होगा। एक अक्टूबर से लागू होने वाली स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी की सुविधा सिर्फ गैर जीवन बीमा कंपनियों तक ही सीमित होगी। मतलब अगर आप अपनी स्वास्थ्य बीमा कंपनी बदलना चाहते हैं तो गैर जीवन बीमा क्षेत्र की कंपनियों के पास ही जा सकते हैं।
स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी लागू हो जाने के बाद स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढऩे की उम्मीद है। कई बीमा कंपनियों ने दूसरी बीमा कंपनियों के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। कई बीमा कंपनियाँ खास वेबसाइट बनाने की तैयारियाँ कर रही हैं जहाँ पोर्टेबिलिटी के बारे में सारी जानकारियों के साथ ग्राहकों के आँकड़े मौजूद होंगे।
हालाँकि कई बीमा कंपनियाँ यह मानती हैं कि स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी लागू होने का असर होने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। इससे अच्छी सेवा देने वाली बीमा कंपनियों को फायदा मिल सकता है। स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी लागू के बाद उम्मीद है कि बीमा कंपनियाँ अपनी सेवाओं को और बेहतर बनाने की कोशिश करेंगी।
बीमा क्षेत्र के विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी का फायदा उन्हीं ग्राहकों को होगा, जिनका क्लेम रेकॉर्ड अच्छा होगा और जिन्हें कोई खास बीमारी नहीं होगी। यह उन ग्राहकों के लिए वरदान है, जिन्हें खराब सेवाओं या ज्यादा रकम चुकाने के बावजूद पुरानी बीमा कंपनी से जुड़े रहना पड़ता है। अब कंपनी अपने पुराने ग्राहकों को बनाये रखने के लिए भी ज्यादा प्रयास करेगी।
स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी पहले इस साल एक जुलाई से ही लागू होने वाली थी। लेकिन बीमा कंपनियों ने तकनीकी दिक्कतों का हवाला देते हुए आईआरडीए से और ज्यादा समय देने की मांग थी थी।
दरअसल ग्राहक अक्सर स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की शिकायत करते पाये जाते हैं। उनकी आम शिकायत रहती है कि बीमा कंपनियों के एजेंट तो पॉलिसी बेचते समय बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन पॉलिसी लेने के बाद हकीकत कुछ और ही निकलती है। एजेंट हमेशा उन पहलुओं के बारे मे जानकारी देने से बचने की कोशिश करते हैं, जिनके आधार पर कंपनी बीमा के दावे के भुगतान से इन्कार कर सकती है।
इसके साथ ही दावे के समय बीमा कंपनियों के थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) से जुड़ी ग्राहकों की शिकायतें भी आम हैं। टीपीए एक तरह से बीमा कंपनी का प्रतिनिधि होता है जो दावे के निपटारे के लिए अस्पतालों और ग्राहकों से सीधे संपर्क में रहता है। ग्राहकों को टीपीए के जरिये अपने दावे पेश करने होते हैं। टीपीए से जुड़ी शिकायतों को देखते हुए कई बीमा कंपनियाँ टीपीए की नियुक्ति के बजाय यह काम खुद करती हैं। ऐसे में स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी लागू होने से ऐसी कंपनियों को ज्यादा फायदा मिल सकता है, जो कोई टीपीए तैनात करने के बदले यह जिम्मेदारी खुद उठाती हैं।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)