राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
लक्ष्मी को सभी पाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें प्रसन्न करने का सही तरीका अपनाने में लोग चूक जाते हैं। भारतीय परंपरा कहती है कि लक्ष्मी की पूजा गणेश और सरस्वती को साथ रखे बिना नहीं होती। बुद्धि और विद्या की संगत के बिना लक्ष्मी आयेंगी नहीं, और अगर कभी आ गयीं तो ज्यादा समय तक रुकेंगी नहीं। इस अंक में रवि बुले का लेख धन, बुद्धि और विद्या के इस साहचर्य को बखूबी समझा रहा है।
जो लोग आज अपने यहाँ लक्ष्मी का आवाहन करना चाहते हैं, उन्हें पहले गणेश और सरस्वती को बुलाना होगा। जो नास्तिक हैं और लक्ष्मी के देवी रूप को स्वीकार नहीं करते, वे भी यह मानेंगे कि हम इस समय ज्ञान युग में हैं। इस ज्ञान युग में सफलता का मूलमंत्र ज्ञान में ही निहित है।
आज हर क्षेत्र एक विशेषज्ञता की मांग करता है। यह विशेषज्ञता ही बुद्धि और विद्या है। अपने कार्य में दक्ष होना ही गणेश और सरस्वती को अपने घर निमंत्रित करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। जब गणेश और सरस्वती आपके पास आ जायें, तो आप लक्ष्मी की पूजा शुरू कर सकते हैं। आज इस पूजा का मतलब है प्रयास, उद्यम। आप चाहें तो अपने घर-दफ्तर में किसी पंडित जी को न बुलायें, कोई मंत्र-पाठ न करें और कोई नैवेद्य न चढ़ायें, लेकिन अगर आप अपने कार्य दक्ष में हो कर बुद्धि और विवेक के साथ अपने विशेषज्ञ ज्ञान का लाभ उठायें और सतत प्रयास करें तो लक्ष्मी आप पर जरूर प्रसन्न होंगी।
कहते हैं कि पैसा पैसे को खींचता है। लेकिन इस ज्ञान युग में यह परम सत्य भी कुछ संशोधित हो गया है। यदि आपके पास धन का अकूत भंडार आ जाये, लेकिन गणेश और सरस्वती का साथ में आवाहन नहीं हो तो यह अकूत भंडार कब छीज गया इसका पता भी नहीं चलता है। जमीन बेच कर या अधिग्रहण में मिले मुआवजे की राशि से महँगी कारें खरीदने वाले कितने किसान एकमुश्त मिली बड़ी रकम को सँभाल कर उसे एक पूँजी की तरह इस्तेमाल कर पाते हैं, जिससे उनका और उनकी आने वाली पीढिय़ों का भविष्य सुरक्षित रहे? कुछ सालों की मौज के बाद उनके सामने यह संकट आ खड़ा होता है कि न तो जमीन रही, न हाथ में नकद पैसा - अब करें तो क्या करें?
लेकिन केवल उन किसानों की बात क्यों करें? अपने ज्ञान से ही लक्ष्मी अर्जित करने वाले आईटी क्षेत्र के इंजीनियर या डॉक्टर या वकील साहब के बारे में क्या कहेंगे? शायद ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी पूरी नहीं करने वाला कोई एजेंट उन्हें बताता है कि आप इस फॉर्म पर दस्तखत कर दें और वे बस वहीं दस्तखत कर देते हैं। मानो कलम नहीं चला रहे बल्कि अंगूठे की छाप दे रहे हों! वे किसी एक क्षेत्र में अपने ज्ञान के सहारे ही धन कमाते हैं, लेकिन उस धन को बचाने और उसका सुरक्षित फायदेमंद निवेश करने के लिए जरूरी ज्ञान पाने का कोई प्रयास नहीं करते। उनका ज्ञान एकांगी रह जाता है। वे एक जगह ज्ञान से कमाते हैं, लेकिन किसी और जगह अज्ञान के चलते उस धन को गँवा देते हैं।
पेड़ों पर पैसे नहीं फलते, यह जानते हुए भी जिन लोगों ने एक जमाने में प्लांटेशन कंपनियों को अपनी गाढ़ी कमाई सौंपी थी, उनके बारे में क्या कहा जाये? पोंजी योजना चलाने वाली कंपनियों से ठगे जाने वाले लोग भी अनपढ़ नहीं होते, बल्कि इंटरनेट पर जा कर फॉर्म भरने वाले लोग होते हैं। हमने ऐसी योजनाओं के बारे में अपने जुलाई अंक में आगाह किया था। लेकिन आज अपनी व्यस्त दिनचर्या के बीच कितने लोग कुछ पढऩे के लिए अलग से समय निकालते हैं? हम हर वक्त लक्ष्मी की आराधना में लगे रहते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि उनके साथ-साथ दो और प्रतिमाएँ भी हैं जिनकी साथ में पूजा जरूरी है।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)