डेविड पेजारकर, इक्विटी प्रमुख, दाइवा एएमसी :
इस समय निवेशकों को अपना पैसा तो बिल्कुल ही नहीं निकालना चाहिए। बाजार 20% से ज्यादा की गिरावट के बाद जिस तरह के मूल्यांकन पर आ चुका है, वहाँ बेचना तो कतई समझदारी नहीं होगी। कोई मेरी बात को कुछ इस तरह तरह भी देख सकता है कि एक फंड मैनेजर कभी म्यूचुअल फंड से पैसा निकालने की बात तो कह ही नहीं सकता। लेकिन आप केवल इस साल की गिरावट को न देखें।
पिछले तीन सालों से एक संपत्ति-वर्ग (एसेट क्लास) के रूप में इक्विटी यानी शेयर बाजार ने बाकी संपत्ति-वर्गों (जैसे कमोडिटी वगैरह) की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया है। हम यह भी जानते हैं कि लंबी अवधि में शेयर बाजार ही बाकी संपत्ति-वर्गों से ज्यादा बेहतर फायदा देता है। भारत जैसे विकासशील देश में ऐसा होना स्वाभाविक है। इसलिए मुझे लगता है कि अगले तीन सालों में शेयर बाजार में मिलने वाला फायदा बाकी संपत्ति-वर्गों से ज्यादा होगा। अगर लंबी अवधि के लिए शेयर बाजार को बाकी संपत्ति-वर्गों की बराबरी में भी आना है तो अगले तीन सालों में इसे बाकी सबसे ज्यादा तेज चलना होगा। लिहाजा अगर कोई निवेशक और तीन सालों तक अपना निवेश बनाये रखने की सोचे तो उसे शेयर बाजार में ही ज्यादा अच्छा फायदा मिलना चाहिए।
लोगों को शेयर बाजार या इक्विटी म्यूचुअल फंड से पैसा तब निकालना चाहिए, जब बीते दो-तीन सालों में शेयर बाजार ने बाकी संपत्ति-वर्गों की तुलना में काफी ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ोतरी दर्ज की हो। लंबी अवधि में आम तौर पर किसी इक्विटी पोर्टफोलिओ पर मिलने वाला फायदा सकल विकास दर (नोमिनल जीडीपी, जिसमें से महँगाई दर घटायी नहीं गयी हो) के बराबर होता है। अगर सकल विकास दर 14-15% के आसपास हो और बीते तीन सालों में शेयर बाजार ने सालाना 30% की दर से फायदा दिया हो तो आप सोच सकते हैं कि यह इससे बाहर निकलने का समय है।
लेकिन अगर आप बीते तीन सालों में भारत की सकल विकास दर की तुलना शेयर बाजार में मिले फायदे से करें तो यह फायदा काफी कम रहा है। आप भले ही कहें कि निवेशकों को नये निवेश के पक्ष में सलाह देने में मेरा अपना हित शामिल है, लेकिन आप शुद्ध रूप से आँकड़ों को देखें। उस लिहाज से यह बाहर निकलने का समय तो बिल्कुल नहीं है। अगर आपका नजरिया बेहद छोटी अवधि का हो और आप अगले 3-6 महीनों के लिए अपनी पूँजी की सुरक्षा करना चाहते हैं तो यह एक अलग सवाल है। ऐसे निवेशकों के लिए इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड सही विकल्प नहीं होगा।
इस समय अगर हम पूरे म्यूचुअल फंड क्षेत्र को देखें तो मुझे नहीं लगता कि निवेशकों की ओर से पैसा निकालने (रिडेंप्शन) का कोई दबाव है। नियमित रूप से लोग जिस तरह से पैसा निकालते रहते हैं, वैसी ही स्थिति है। लेकिन बाजार में गिरावट की वजह से म्यूचुअल फंडों से निवेशकों के पैसा निकालने वाली स्थिति नहीं है। मुझे नहीं लगता कि म्यूचुअल फंडों में आने वाले नये निवेश की तुलना में अभी निकाली जाने वाली रकम ज्यादा होगी।
जहाँ तक यह सवाल है कि क्या किसी को इस समय नया निवेश करना करना चाहिए, तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके समूचे निवेश पोर्टफोलिओ में इक्विटी यानी शेयरों की हिस्सेदारी कितने प्रतिशत है। इसलिए यह बात हर व्यक्ति के अपने मौजूदा पोर्टफोलिओ पर निर्भर है। अगर किसी का इक्विटी में निवेश हल्का है तो यह इक्विटी में निवेश बढ़ाने का काफी अच्छा समय है। यह संभव है कि बाजार शायद यहाँ से थोड़ा और गिर जाये। लेकिन मेरे हिसाब से स्थिति ऐसी नहीं है कि बाजार एकदम से टूट जाये। यह ठीक है कि अभी बाजार के सामने बहुत सी दिक्कतें हैं, लेकिन उन्हीं की वजह से बाजार में इतनी गिरावट भी आ चुकी है।
एक फंड मैनेजर के रूप में इस समय मैं अपने पोर्टफोलिओ में बहुत ज्यादा नकदी नहीं रखना चाहूँगा। हम बाजार में अपना निवेश बनाये रखने की रणनीति पर चल रहे हैं। हम चुन-चुन कर नया निवेश कर रहे हैं। जहाँ भी हमें असामान्य रूप से सस्ते भाव दिख रहे हैं, वहाँ हम नया निवेश कर रहे हैं। इसके लिए हम चुनिंदा शेयरों पर ध्यान देते हैं। मसलन कुछ दिग्गज शेयरों को देखें, जिनमें काफी ज्यादा गिरावट आ गयी है। बैंक, धातु (मेटल), आईटी जैसे क्षेत्रों में हमने अपना निवेश बढ़ाया है। मौजूदा स्थिति में हम टॉप डाउन नजरिया अपना रहे हैं, मतलब पहले हम अपने कुछ पसंदीदा क्षेत्र चुनते हैं और फिर उन क्षेत्रों में निवेश के लायक शेयरों को चुनते हैं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमारे पोर्टफोलिओ में उस क्षेत्र की पहले से कितनी हिस्सेदारी है। अगर किसी क्षेत्र में पहले से ही हमारा ज्यादा निवेश है तो हम उसमें और निवेश नहीं करना चाहेंगे, भले ही उस क्षेत्र के शेयरों के भाव काफी नीचे आ गये हों। ऐसा इसलिए कि हम उस क्षेत्र और ज्यादा निवेश करके अपना जोखिम बढ़ाना नहीं चाहेंगे।
क्षेत्रों और शेयरों को चुनने के लिए हम कई पैमाने बनाते हैं। एक तो हम यह देखते हैं कि मूल्यांकन कैसा है। दूसरे, हम यह भी देखते हैं कि उस क्षेत्र के लिए आर्थिक माहौल खराब तो नहीं है, या वैश्विक घटनाओं पर उसकी ज्यादा निर्भरता तो नहीं है। वैसी हालत में मूल्यांकन आकर्षक होने पर भी उसमें कीमतें और गिरने की संभावना रहेगी, लिहाजा हम उन्हें नजरअंदाज करते हैं।
फिलहाल हम ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों को लेकर बहुत ज्यादा नहीं, पर थोड़ा नकारात्मक हैं। ऐसे क्षेत्रों में आप जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) और निर्माण (कंस्ट्रक्शन) जैसे क्षेत्रों को गिन सकते हैं। बैंकिंग पर भी थोड़ा नकारात्मक नजरिया है, खास कर सरकारी बैंकों को लेकर। तुलनात्मक रूप से हम निजी बैंकों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। निजी बैंकों की संपत्ति (कर्ज) की गुणवत्ता सरकारी बैंकों से बेहतर है। सरकारी बैंकों में डूबे कर्जों (एनपीए) को लेकर ज्यादा चिंता है।
आईटी क्षेत्र में हम दिग्गज कंपनियों पर ही ध्यान दे रहे हैं, छोटी कंपनियों को नहीं चुन रहे। हमने बड़ी आईटी कंपनियों में अपना निवेश कुछ बढ़ाया है। तेल-गैस क्षेत्र पर हमारा नजरिया नकारात्मक (अंडरवेट) है और अभी ऐसी ही स्थिति रहने वाली है। इस क्षेत्र में पहले से हमारा कुछ निवेश है और उतने से हम संतुष्ट हैं, हम उसे और बढ़ाना नहीं चाहते हैं।
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)