गोविंद श्रीखंडे
आपके कंसोलिडेटेड तिमाही नतीजों में आमदनी काफी बढ़ी है, लेकिन मुनाफे पर दबाव दिखा है। ऐसा किस वजह से हुआ?
—आपको हमारे नतीजे दो हिस्सों में देखने चाहिए - एक तो शॉपर्स स्टॉप के स्टैंडअलोन नतीजे जिनसे शॉपर्स स्टॉप के डिपार्टमेंट स्टोर का प्रदर्शन पता चलता है, और दूसरे हमारे कंसोलिडेटेड नतीजे जिनमें हाइपर सिटी के आँकड़े पहली बार जुडऩे का असर दिखता है। पिछले साल की पहली तिमाही तक हाइपर सिटी के आँकड़े हमारे नतीजों में नहीं जुड़े थे। दूसरी तिमाही से हाइपर सिटी के आँकड़े भी जुडऩे लगे, जिससे कंसोलिडेटेड नतीजों में कुल आमदनी में उछाल दिखती है। लेकिन हाइपर सिटी अभी घाटे में ही चल रही है, इसलिए कंसोलिडेटेड मुनाफे पर उसका असर तिमाही और सालाना दोनों नतीजों में दिखा है।
आगे आप शॉपर्स स्टॉप के डिपार्टमेंट स्टोर और हाइपर सिटी में किस पर कितना जोर देंगे?
—हाइपर सिटी स्टोर के स्तर पर बीती तिमाही में घाटे से उबरती दिख रही है। लेकिन कंपनी के स्तर पर यह अब भी घाटे में है। हमारा लक्ष्य है कि अगले 24 महीनों में कंपनी के स्तर पर भी हाइपर सिटी का एबिटा यानी कामकाजी लाभ सकारात्मक हो सके। अभी कामकाजी घाटा (एबिटा लॉस) करीब 30 करोड़ रुपये का है, उसे हम 24 महीनों में शून्य पर ले जाना चाहते हैं। अगर शुद्ध लाभ की बात करें तो हम इसे 30 महीनों में मुनाफे में लाने का लक्ष्य रख रहे हैं।
इसके लिए सबसे पहले तो हम इसका मार्जिन मौजूदा 20.2% से बढ़ा कर 22% के स्तर पर ले जायेंगे। दूसरे, हम इसके स्टोर की संख्या बढ़ायेंगे, जिससे लागत में कमी आये। अभी हाइपर सिटी के 10 स्टोर हैं। हर साल 3 नये स्टोर खोल कर हम इसकी संख्या 19 पर ले जायेंगे। तीसरे हम हर स्टोर की उत्पादकता में सुधार लाने की कोशिश करेंगे।
शॉपर्स स्टॉप अच्छे मुनाफे में चल रही है। इस साल मार्च से मई तक हमने तीन नये स्टोर शुरू किये। अभी हमारे 41 स्टोर हैं और हमारा लक्ष्य इस साल इसके 10 नये स्टोर खोलने का है। अगले 36 महीनों में इसके स्टोर की संख्या लगभग 70 हो जायेगी। अभी हमारी मौजूदगी 18 शहरों में है, जिसे हम बढ़ा कर 25 शहरों तक ले जाना चाहते हैं। हालाँकि जो पहली श्रेणी के शहरों यानी मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलूरु और चेन्नई का इसकी बिक्री में योगदान 75% से ज्यादा बना रहेगा।
तो क्या आप हाइपर सिटी को एक अलग कंपनी की तरह बनाये रखना चाहेंगे?
—इसका प्रबंधन एक अलग ब्रांड की तरह होता रहेगा। अभी इसका सारा हिसाब-किताब अलग रख कर इसके नतीजे अलग से दिखा रहे हैं। अभी हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम हाइपर सिटी में हो रही प्रगति के बारे में बाजार को अलग से बतायें। जब यह फायदे में आ जायेगी, तब हम सोचेंगे कि कैसे एकीकरण करना है और क्या इसकी 100% हिस्सेदारी खरीदनी है। इसमें हमारी हिस्सेदारी 51% और प्रमोटरों की हिस्सेदारी 49% है। शॉपर्स स्टॉप की सूचीबद्ध कंपनी में प्रमोटर हिस्सेदारी 68% से ज्यादा है। इसलिए हम कब इन दोनों का एकीकरण करेंगे, यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।
लेकिन कामकाजी स्तर पर दोनों में किस तरह का तालमेल रहेगा?
—आईटी, वित्त (फाइनेंस), संपत्ति (प्रॉपर्टी) की खोज वगैरह में तालमेल पहले ही बन चुका है। सामानों की खरीद के मामले में दोनों अलग तरह से काम करेंगे। इसका कारण यह है कि शॉपर्स स्टॉप स्टोर में ब्रांड की प्रमुखता पर जोर है, जबकि हाइपर सिटी में मूल्य पर जोर है। इसलिए दोनों ब्रांडों को अलग तरह से चलाना होगा। मसलन, हाइपर सिटी के ग्राहक हर हफ्ते स्टोर में आते हैं, जबकि शॉपर्स स्टॉप के ग्राहक औसतन महीने में 1 बार आते हैं। हाइपर सिटी में ग्राहक सामानों की कीमत पर ध्यान देते हैं, जबकि शॉपर्स स्टॉप में वे फैशन और अलग अनुभव पर ध्यान देते हैं। एक ही ग्राहक इन दोनों स्टोर में अलग-अलग सोच के साथ जाता है। हमें दोनों ब्रांडों को इस तरह सँभालना है कि लोगों में दोनों को लेकर कोई भ्रम न बने।
आप प्राइवेट लेबल यानी अपने ब्रांड बेचने की रणनीति को इन दोनों में कितना अपनायेंगे?
—शॉपर्स स्टॉप में हमारे प्राइवेट लेबल की बिक्री करीब 18% है और हम उसी स्तर पर बनाये रखना चाहेंगे। हाइपर सिटी में प्राइवेट लेबल का हिस्सा 22% है और हम इसे बढ़ा कर 24-25% करना चाहते हैं।
कारोबारी साल 2011-12 में आप आमदनी और मुनाफे में किस तरह की बढ़त देख रहे हैं?
—अगर पहले से चल रहे स्टोर को देखें तो हम उनकी बिक्री में ऊँचे इकाई अंक (हाई सिंगल डिजिट) की बढ़त की उम्मीद कर रहे हैं। नये स्टोर से 18-30% तक की बढ़त मिल सकेगी। इस तरह कुल आमदनी में 25% से ज्यादा बढ़त की उम्मीद है। कामकाजी मुनाफे (एबिटा) को हम 8% के स्तर पर रखने का लक्ष्य ले कर चल रहे हैं। यह कोई अनुमान (गाइडेंस) नहीं है, बल्कि यह हमारा लक्ष्य है और हमें लगता है कि हम उसे हासिल कर सकेंगे।
हाल में महँगाई दर लगातार ऊँची रहने से आपकी लागत पर कितना दबाव रहा है?
—हमारी लागत लगातार बढ़ रही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि ग्राहकों की धारणा सकारात्मक बनी हुई है। आने वाले ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अगर पहले से चल रहे स्टोर की बिक्री देखें तो उसमें भी बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए बिक्री की मात्रा पर कुछ असर हो सकता है, लेकिन कुल मिला कर बिक्री बढ़ती रहेगी।
पर इससे मार्जिन पर कितना दबाव आ रहा है?
—मार्जिन पर दबाव नहीं है, क्योंकि हमने कई चीजों को नये सिरे से ढाला है, जैसे ट्रेडिंग मॉडल, किराये के लिए आमदनी में साझेदारी, कामकाजी लागत में कमी वगैरह। इन सबसे हमें मार्जिन अच्छा बनाये रखने में मदद मिली है।
रिटेल क्षेत्र पर भी अर्थव्यवस्था के धीमेपन का असर पड़ा और अब यह उससे उबरता दिख रहा है। इस पूरे चक्र में आपने अपनी रणनीतियों को किस तरह बदला?
—जब धीमेपन का असर शुरू हुआ, उस समय इस क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियों के कारोबारी मॉडल में ज्यादा फर्क नहीं था। जब धीमेपन के दौरान पहले से चल रहे स्टोर की बिक्री घटने लगी तो हमने अपने पूरे मॉडल की समीक्षा की। हमने तीन पहलुओं पर काम किया, जिनमें पहला था माल का भंडार (स्टॉक)। कई रिटेल कंपनियों के बंद होने का कारण ही यही रहा कि उनके पास चीजों का जरूरत से ज्यादा भंडार था या कम भंडार था या सही कीमत पर या सही गुणवत्ता का माल नहीं था।
हमने अपने मॉडल को सुधारा। पहले हमारे पास 60% चीजें पहले से खरीदी हुई होती थीं। हमने इसका स्तर 45% किया। इससे हमने अपने भंडार का जोखिम घटाया। फिर हमने अपने इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ईआरपी) के जरिये इस बात पर जोर दिया कि बिक गये सामान की जगह नया सामान कितनी जल्दी पहुँच सकता है। इससे यह फायदा मिलता है कि सही सामान की कमी के चलते आपको कोई बिक्री गँवानी नहीं पड़ती।
दूसरे, हमने नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) पर ध्यान दिया और हर स्टोर पर इसे सकारात्मक रखने की कोशिश की। इससे हमें ज्यादा स्टोर खोलने में मदद मिली। जब आपके हाथ में नकदी होती है तो उधारी और ब्याज का खर्च घटता है और आपका कर्ज-इिवटी अनुपात ठीक रहता है। अब हमारा कर्ज-इक्विटी अनुपात घट कर 2 पर आ गया है।
तीसरी बात, उस समय किराये आसमान छू गये थे। धीमेपन के दौरान हमने किरायों पर फिर से बातचीत की और कई संपत्तियों को आय में साझेदारी (रेवेन्यू शेयरिंग) के आधार पर रखा, क्योंकि वह हमारे और जगह के मालिक दोनों के लिए फायदेमंद था। ऐसा करने से किराये पर हमारा खर्च 10.8% से घट कर 9.8% पर आ गया। लागत के मोर्चे पर हमने बिजली की खपत घटायी और कर्मचारी खर्च में कमी की। इन सबसे हमने अपनी लागत पर नियंत्रण किया।
आर्थिक धीमेपन से पहले और बाद के रिटेल क्षेत्र में सबसे खास फर्क आप क्या देखते हैं?
—मुख्य रूप से दो बातें साफ दिखती हैं। धीमेपन से पहले लोगों का ध्यान कारोबार की असली कीमत के बदले उसे मिलने वाले मूल्यांकन पर काफी ज्यादा हो गया था। अब लोग मूल्यांकन के पीछे भागने के बदले कारोबार की असली कीमत को समझ रहे हैं। दूसरी बात, जो छोटे खिलाड़ी बस खुद को रिटेल कंपनी बता कर केवल आईपीओ लाने के खेल में लगे थे, लेकिन न ईआरपी था, न कोई बैकअप था और न ही पेशेवर प्रबंधन था, वे सब निपट गये या बंद हो गये। अब जो लोग इस बाजार में बचे हैं, वे यहाँ लंबे समय के लिए हैं। बड़ों और बच्चों का फर्क साफ दिखने लगा है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)