विभिन्न म्यूचुअल फंड अब ऐसे समाधान प्रस्तुत करने लगे हैं, जिनमें पैसे डालने-निकालने के मामले में तो वैसी ही सहूलियत हो जितनी बैंक खाते में होती है, मगर प्रतिफल ज्यादा मिले।
बैंकों के बचत खातों या चालू खातों में पैसे को सुस्त पड़े छोड़ देना पहले से ही कोई अच्छी आदत नहीं थी। अब तो नोटबंदी के बाद लोगों के खातों में पहले से ज्यादा पैसे आ गये हैं। इसे देख कर आपके बैंक खाते में पड़े पैसों को जगाने के लिए म्यूचुअल फंडों ने अभियान छेड़ दिया है।
विभिन्न म्यूचुअल फंड अब ऐसे समाधान प्रस्तुत करने लगे हैं, जिनमें पैसे डालने-निकालने के मामले में तो वैसी ही सहूलियत हो जितनी बैंक खाते में होती है, मगर प्रतिफल ज्यादा मिले। सामान्यत: बेहद छोटी अवधि के लिए अपनी अतिरिक्त नकदी का निवेश करने लिहाज से लिक्विड फंडों को उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इनमें सबसे ज्यादा तरलता मिलती है। अमूमन एक दिन के भीतर इनसे पैसा निकाला जा सकता है। मगर अब म्यूचुअल फंड यह प्रयास कर रहे हैं कि इनकी तरलता बिल्कुल बैंक खातों जैसी हो जाये।
रिलायंस एमएफ का एटीएम कार्ड!
रिलायंस म्यूचुअल फंड ने सिंपली सेव नाम से एक ऐप्प पेश किया है। सिंपली सेव के साथ उपभोक्ताओं को एक क्लिक से निवेश करने की सुविधा मिलती है, जिससे उनके बैंक खाते से पूर्वनिर्धारित राशि रिलायंस म्यूचुअल फंड के लिक्विड फंड - कैश प्लान / रिलायंस मनी मैनेजर फंड ग्रोथ प्लान के खाते में हस्तांतरित की जा सकती है। इतनी ही आसानी से ग्राहक पैसा वापस निकालते हुए फंड से अपने बैंक खाते में हस्तांतरित कर सकते हैं और इस तरह अपनी अतिरिक्त नकदी या खाली पड़े पैसे पर तुलनात्मक रूप से ऊँचा प्रतिफल हासिल कर सकते हैं।
अब रिलायंस म्यूचुअल फंड ने एक डेबिट कार्ड की शुरुआत की है, जो निवेशक के म्यूचुअल फंड फोलिओ से जुड़ा होगा। यह कार्ड एक साथ निवेश और खरीदारी दोनों की सुविधा उपलब्ध कराता है। यानी आप जब चाहें तब खर्च करें, और जब तक खर्च नहीं किया तब तक उस पर निवेश का लाभ उठायें। इसका उपयोग ऑनलाइन भुगतान के लिए भी किया जा सकता है। यह वीसा कार्ड है, यानी जहाँ भी वीसा एटीएम हो या वीसा के माध्यम से ऑनलाइन लेनदेन स्वीकार किया जाता हो, वहाँ इस कार्ड का उपयोग किया जा सकता है। यानी अगर कहीं एटीएम पर कतार छोटी मिल जाये, तो उससे पैसे निकाल सकते हैं और एटीएम से नहीं निकाल पाये तो किसी पर दुकान पर इस कार्ड से खरीदारी कर सकते हैं। घर बैठे फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील या शॉपक्लूज जैसी वेबसाइटों पर ऑनलाइन खरीदारी भी इससे कर सकते हैं।
इस कार्ड को रिलायंस लिक्विड फंड और रिलायंस मनी मैनेजर फंड के साथ जोड़ा जा सकता है। निवेशक अपनी योजना में निवेशित राशि के 50% या 50,000 रुपये (जो कम हो) की सीमा तक पैसे निकाल सकते हैं। वहीं डेबिट कार्ड की तरह खरीदारी करने के लिए इसकी सीमा 50% या एक लाख रुपये (जो कम हो) तक है।
डीएसपी ब्लैकरॉक का इंस्टैंट रिडेंप्शन
डीएसपी ब्लैकरॉक ने भी इंस्टैंट रिडेंप्शन यानी तत्काल निकासी की सुविधा उपलब्ध करायी है। निकासी अनुरोध डालते ही निवेशक के खाते में पैसे वापस आ जाते हैं। इसमें निकासी के लिए 95% तक या दैनिक 2 लाख रुपये तक (जो कम हो) की सीमा है। न्यूनतम निकासी 100 रुपये की हो सकती है।
बिड़ला सन लाइफ का ऐक्टिव एकाउंट
हाल में बिड़ला सन लाइफ एएमसी ने भी ऐक्टिव एकाउंट नाम से एक मोबाइल ऐप्प शुरू किया है। इसका भी मकसद आपके लिक्विड फंड के निवेश प्रबंधन को आसान बनाना है। यह ऐप्प बिड़ला सन लाइफ कैश प्लस योजना को आपके बैंक खाते से जोड़ता है। इस ऐप्प के जरिये सीधे आपके खाते से पैसा इस योजना में डाला जा सकता है और जब चाहें वापस अपने खाते में डाला जा सकता है। यह पैसा 24 घंटे में आपके खाते में आ जायेगा।
ऐसी सुविधा दे रहे म्यूचुअल फंडों ने इनके बारे में निवेशकों को जानकारी देने के लिए अच्छा-खासा प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है। नोटबंदी के दौरान जहाँ सरकार कैशलेस या नकदी-रहित लेनदेन को जम कर बढ़ावा दे रही है, वहीं म्यूचुअल फंडों की यह पहल भी डिजिटल कैश की सोच आगे बढ़ाने में योगदान करेगी।
खबरें आ रही हैं कि जल्दी ही बाजार नियामक सेबी लिक्विड फंडों के लिए इस तरह की सुविधा अनिवार्य कर सकता है। सेबी कुछ सीमाओं के साथ इस तरह का विकल्प देने पर विचार कर रहा है। ऐसा होने पर लोगों के लिए लिक्विड फंड अतिरिक्त नकदी रखने का आकर्षक विकल्प बन जायेंगे।
ब्याज दरों में गिरावट के दौर में वैसे भी लिक्विड फंड बचत खातों से काफी आकर्षक प्रतिफल देते हैं। हाल में इस श्रेणी के फंडों का प्रतिफल लगभग 7.5% रहा है। हालाँकि इनमें निवेश को पूरी तरह जोखिम मुक्त नहीं कहा जा सकता, मगर इक्विटी म्यूचुअल फंडों की तुलना में इनका जोखिम काफी कम होता है। ये अमूमन ऐसे प्रपत्रों में निवेश करते हैं, जिनकी परिपक्वता अवधि तीन महीने से ज्यादा नहीं होती। लिहाजा इनके प्रतिफल में तीखे उतार-चढ़ाव नहीं आते।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)