राजीव रंजन झा
बाजार में मजबूती का दारोमदार इस बात पर है कि सेंसेक्स ईपीएस में इस साल अनुमानों के मुताबिक वृद्धि हो पाती है या फिर से निराशा मिलती है। अगर नतीजों से निराशा और एफआईआई बिकवाली के बीच बाजार कुछ फिसले, जिसमें सेंसेक्स 26,000 के पास और निफ्टी 8000 के पास आ जाये, तो वह लंबी अवधि के निवेश का अच्छा अवसर होगा।
दीपावली के अवसर पर निवेशकों के मन में यही हिसाब-किताब चलता रहता है कि पिछली दीपावली से अब तक कितना नफा-नुकसान रहा और अगली दीपावली तक जोरदार मुनाफा कहाँ मिलेगा। बाजार के जानकारों की यह उम्मीद पिछले साल भर में सही बैठी है कि ब्याज दरों में कमी आयेगी और इक्विटी में निवेश का प्रवाह जारी रहेगा। लेकिन कंपनियों के कारोबारी प्रदर्शन को लेकर स्थितियाँ अब भी सुहावनी नहीं हुई हैं। साल 2016-17 की दूसरी तिमाही के अब तक के जो भी कारोबारी नतीजे आये हैं, वे मोटे तौर पर मिले-जुले ही हैं और बहुत उत्साह नहीं जगाते। यानी कंपनियों की आय वृद्धि में तेजी आने की उम्मीदों को फिर से नयी तारीख मिलने की संभावना बढ़ती दिख रही है।
दरअसल पिछले दो वर्षों में बार-बार यही सुनने को मिलता है कि चलो, इस बार भी कंपनियों की आय में सुधार नहीं आया मगर अगली छमाही बेहतर रहने की उम्मीद है। 2016-17 की पहली छमाही में स्थितियाँ ज्यादा बेहतर नहीं होने के बाद कुछ विश्लेषक अब दूसरी छमाही से उम्मीदें लगायेंगे, तो कुछ ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि वास्तविक सुधार तो अब 2017-18 में ही दिखेगा। अब सवाल है कि क्या वाकई अगले साल भर में, यानी अगली दीपावली तक भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार के लिए स्थितियाँ आज की तुलना में ज्यादा सकारात्मक हो सकेंगी?
इसमें संदेह नहीं कि इस समय महँगाई दर काफी हद तक नियंत्रण में है और ब्याज दरें भी ठीक-ठाक नीचे आ चुकी हैं। अभी चार अक्टूबर को हुई कटौती के बाद रिजर्व बैंक की रेपो दर (जिस ब्याज दर पर बैंक आरबीआई से बहुत छोटी अवधि का ऋण लेते हैं) घट कर 6.25% पर आ गयी है। इससे पहले रेपो दर इतने निचले स्तर पर दिसंबर 2010 में थी। हालाँकि अप्रैल 2009 से ले कर फरवरी 2010 तक का ऐसा समय भी रहा है, जब आरबीआई ने रेपो दर 4.75% जितने निचले स्तर पर रखी थी। उस समय की तुलना में आज भी रेपो दर 1.50% ज्यादा है। लेकिन तब वैश्विक आर्थिक संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था को डाँवाडोल होने से बचाने के लिए आरबीआई ने आपातकालीन उपाय के तौर पर दरें इतनी कम की थीं।
अब अगले साल भर में आरबीआई की ओर से ब्याज दरें घटाने की ज्यादा उम्मीद नहीं रहेगी, बल्कि नजर इस बात पर रहेगी कि आरबीआई की ओर से अब तक हुई कटौती का कितना फायदा बैंक आगे अपने ग्राहकों को देते हैं। इस बारे में बैंकों की अनिच्छा पर आरबीआई ने कई बार फटकार लगायी है। सरकारी दबाव में पीएसयू बैंकों ने कुछ कटौती की है और उसके बाद निजी बैंकों ने भी उनकी तुलना में थोड़ी कम कटौती की है। पर आरबीआई की रेपो दर जहाँ 8% के ऊँचे स्तर से घट कर 6.25% पर आ गयी है, यानी इसमें 1.75% अंक की कटौती हो चुकी है, वहीं बैंकों की ब्याज दरों में कटौती इसकी आधी भी नहीं है। इस समय भारी एनपीए की समस्या से जूझ रहे बैंक अपने मार्जिन को जोखिम में नहीं डालना चाहते। पर उम्मीद की जा सकती है कि अगले साल भर में बैंकों का एनपीए संकट भी काबू में आयेगा और उनकी ओर से ग्राहकों को मिलने वाली प्रभावी ब्याज दरें भी और घटेंगी।
कम बॉन्ड यील्ड यानी अर्थव्यवस्था को फायदा
बैंकों की ओर से ब्याज दरें भले ही कम घटायी गयी हों, मगर बॉन्ड बाजार में आरबीआई की कटौतियों का असर जरूर झलक रहा है। एंजेल ब्रोकिंग की एक रिपोर्ट में जिक्र है कि 10 साल के जी-सेक बॉन्डों की यील्ड घट कर 6.72% तक आ चुकी है, जो लेहमन ब्रदर्स संकट के तत्काल बाद के कुछ महीनों को छोड़ दें तो 12 वर्षों का सबसे निचला स्तर है। आम तौर पर बॉन्ड यील्ड नीचा रहने का शेयर बाजारों पर सकारात्मक असर होता है।
बाजार के लिए राहत की बात यह है कि अच्छे मॉनसून के चलते देश में महँगाई दर अगले साल भी नीचे रहने की उम्मीद बनी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल अपने निचले स्तरों से जरूर कुछ ऊपर आया है, मगर अब भी यह 50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। आपूर्ति की अधिकता और कमजोर माँग के चलते इसके बहुत ऊपर जाने की आशंका भी नहीं लग रही है। यह स्थिति भारत के लिए अच्छी है और महँगाई दर नियंत्रण में बने रहने की संभावना को मजबूत करती है। इन्हीं बातों के मद्देनजर एंजेल ब्रोकिंग की रिपोर्ट कहती है कि 7% से कम बॉन्ड यील्ड हो जाना निकट भविष्य में निचली ब्याज दरों का दौर टिके रहने का संकेत है।
इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि इससे पहले कम यील्ड वाला दौर 2002-04 के बीच था, जिस दौरान अर्थव्यवस्था की विकास दर 8-9% की हो गयी। इसने सेंसेक्स ईपीएस में अच्छी तेजी ला दी, जिससे शेयर बाजार में 2002 से 2007 तक की जबरदस्त तेजी का दौर चला। इस कैलेंडर वर्ष में कम महँगाई दर, नकदी तरलता में सुधार और ब्याज दरों में कटौती के चलते बॉन्ड यील्ड में लगभग 1% अंक तक की कमी आयी है। एंजेल ब्रोकिंग का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने कम महँगाई दर और कम ब्याज दर की वजह से तेज विकास के लिए पर्याप्त संवेग जुटा लिया है। खाद्य महँगाई आगे और कम होने के मद्देनजर एंजेल को आशा है कि भविष्य में ब्याज दरों में और भी कटौतियाँ हो सकती हैं, लिहाजा अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार में मजबूती का दौर आयेगा।
निचली ब्याज दरों का यह दौर बाजार विश्लेषकों और बड़े निवेशकों को यह उम्मीद दिलाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी पकडऩे वाली है। मगर यह उम्मीद हकीकत में कब से बदलनी शुरू होगी और आँकड़ों में कब दिखेगी, यही सबसे बड़ा सवाल है। पिछले दो वर्षों में यह उम्मीद छकाती रही है, हालाँकि इसका एक प्रमुख कारण दो वर्षों तक लगातार मॉनसून कमजोर रहना भी था।
एंजेल ब्रोकिंग ने मौजूदा परिवेश की तुलना साल 2002-04 की अवधि से की है, जब यील्ड मई 2002 के लगभग 8% से घट कर जनवरी 2003 में 6% से नीचे आ गयी थी और साथ में महँगाई दर भी कम थी। आरबीआई ने इस दौरान लगातार ब्याज दरें घटायी थीं, जिससे रेपो दर मार्च 2002 के 6% से घट कर सितंबर 2003 में 4.5% पर आ गयी थी।
कम ब्याज दरों ने माँग में वृद्धि पैदा की, जिससे 2003 से 2007 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज विकास दर हासिल की। जहाँ साल 2002 में जीडीपी वृद्धि केवल 3.8% थी, वहीं साल 2005 और 2006 दोनों में 9% विकास दर रही। अर्थव्यवस्था में तेज विकास दर के अनुरूप ही सेंसेक्स ने दिसंबर 2002 के 3,377 के स्तर से दिसंबर 2007 के 20,000 से ऊपर के रिकॉर्ड स्तर तक की यात्रा की। शेयर बाजार एक बार फिर वैसी ही चाल दिखाने के लिए तैयार है, ऐसा दावा करना तो किसी विश्लेषक के लिए मुश्किल होगा। मगर जानकार यह जरूर उम्मीद जता रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज विकास दर की ओर बढऩे के लिए जमीन तैयार कर ली है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय सबसे मजबूत पक्ष खपत आधारित क्षेत्रों का ही है। अच्छे मॉनसून के चलते ग्रामीण माँग और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के मद्देनजर शहरी माँग में मजबूती आने की उम्मीद कायम है। इस साल खरीफ की फसल अच्छी रहने से अनाज उत्पादन 27 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 7% अधिक होगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि के चलते भी किसानों की आय बढ़ेगी।
लेकिन बाजार के लिए यह उम्मीद अब नयी नहीं है और इसका जो भी फायदा बाजार को मिलना था, वह उसे भुना चुका है। बुनियादी ढाँचे पर सरकारी खर्च की कहानी भी काफी कही जा चुकी है। इस समय बाजार को एकदम से आगे ले जा सकने वाले ऐसे क्षेत्र कम हैं, जिनकी दमदार कहानी बन रही हो। इसीलिए बाजार अभी थोड़ा देखो और इंतजार करो वाले मिजाज में आ गया है, जिससे सेंसेक्स एक दायरे में अटका हुआ है। बाजार के सामने कोई बड़ी निराशा नहीं है और विदेशी निवेशकों एफआईआई की अब तक कोई बड़ी बिकवाली भी नहीं उभरी है, इसलिए बाजार ज्यादा फिसला भी नहीं है। हालाँकि फरवरी 2016 के बाद पहली बार अक्टूबर 2016 के महीने में एफआईआई बिकवाली की ओर झुकते दिखे हैं। सेबी के आँकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में नकद श्रेणी में उनकी शुद्ध बिकवाली 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की हो चुकी है।
मूल्यांकन औसत के पास, मगर...
ब्रोकिंग फर्मों के विश्लेषण में बाजार मूल्यांकन अभी दीर्घावधि औसत के पास है, यानी न सस्ता है न महँगा। मगर यह आकलन इस अनुमान पर आधारित है कि सेंसेक्स ईपीएस यानी सेंसेक्स के शेयरों की कुल प्रति शेयर आय में अगले दो वर्षों में लगभग 14-17% की सालाना वृद्धि हो सकेगी। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने अपनी दीपावली रिपोर्ट में कहा है कि उसे 2016-17 की दूसरी तिमाही से कंपनियों की आय वृद्धि तेज होने की उम्मीद है। इसका कहना है कि बाजार भले ही कैलेंडर वर्ष 2016 के निचले स्तर से 25% से ज्यादा ऊपर चल रहा है, मगर इसका मूल्यांकन अब भी 10 वर्षों के औसत स्तरों के पास ही है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 12 महीनों की अनुमानित आय के आधार पर सेंसेक्स का पीई मूल्यांकन अभी 16.8 गुणा है, जबकि 10 वर्षों का औसत 16.9 गुणा बैठता है। बाजार पूँजी और जीडीपी का अनुपात भी 2016-17 की अनुमानित जीडीपी के आधार पर 75% पर है, जो 78% के दीर्घावधि औसत से कम है। इसका अनुमान है कि सेंसेक्स ईपीएस वित्त वर्ष 2016-18 के दो वर्षों में सालाना औसतन 17% की दर से बढ़ेगी।
वहीं एंजेल ब्रोकिंग ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुमान पेश किया है कि सेंसेक्स ईपीएस साल 2015-16 के 1,330 रुपये से बढ़ कर 2016-17 में 1,450 रुपये और 2017-18 में 1,753 रुपये हो जायेगी। लेकिन मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही के प्रदर्शन और दूसरी तिमाही में अब तक आये नतीजों को देख कर इस अनुमान के सही साबित होने पर सवाल उठना लाजिमी है। आय वृद्धि के इसी तरह के अनुमान पिछले दो सालों से रखे जाते रहे हैं, मगर सेंसेक्स ईपीएस 2013-14 के 1,338 रुपये के मुकाबले 2014-15 में केवल 1,354 रुपये रही, यानी केवल 1.2% बढ़ सकी। वहीं 2015-16 में तो यह 1.8% घट कर 1,330 रुपये पर आ गयी। इसलिए बाजार में मजबूती टिकने का काफी दारोमदार इस बात पर है कि सेंसेक्स ईपीएस में इस साल अनुमानों के मुताबिक वृद्धि हो पाती है या फिर से इस मोर्चे पर निराशा मिलती है।
मैंने पिछले अंक में लिखा था कि आने वाले दिनों में 27,700-27,500 के आसपास के स्तरों पर सावधानी से नजर रखनी होगी। अक्टूबर के मध्य में सेंसेक्स ने 27,500 के पास ही सहारा लिया और महीने के अंत तक यह फिर से 28,000 के आसपास आ गया। वहीं ऊपर के लिए मैंने लिखा था कि 50 दिन और 20 दिन के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) स्तर महत्वपूर्ण बाधा का काम करेंगे। अक्टूबर के आरंभ में सेंसेक्स को 20 एसएमए पर और दूसरे-तीसरे हफ्ते में 50 एसएमए पर ही बाधा झेलनी पड़ी। तकनीकी लिहाज से अभी इन्हीं बाधा और समर्थन स्तरों का ध्यान रखना होगा।
अगर तिमाही नतीजों से निराशा और एफआईआई बिकवाली के बीच बाजार कुछ फिसले, जिसमें सेंसेक्स 26,000 के पास और निफ्टी 8000 के पास आ जाये, तो वह लंबी अवधि का निवेश करने के लिए अच्छा अवसर होगा। यह खरीदारी चुनिंदा क्षेत्रों में करने के बदले विविध क्षेत्रों में करनी चाहिए, क्योंकि जब बाजार की स्थितियाँ बेहतर होंगी तो लगभग सारे ही क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन करेंगे। पर शेयरों के चुनाव में दिग्गज शेयरों की ओर झुकाव रखना चाहिए, क्योंकि अभी छोटे-मँझोले शेयरों का मूल्यांकन ज्यादा है और बाजार को लगने वाले किसी झटके का असर उन पर ज्यादा होगा। दूसरी ओर बाजार मजबूत होने पर दिग्गज शेयरों का मूल्यांकन ज्यादा सुधरने की उम्मीद रहेगी।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)