हाल के समय में यूनिटेक, जेपी इन्फ्राटेक, जयप्रकाश एसोसिएट्स, हीलियस ऐंड मातेसन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजीज, वलेचा इंजीनियरिंग, अंसल प्रॉपर्टीज, एल्डर फार्मास्युटिकल्स, जेनिथ बिड़ला, रसोया प्रोटीन्स जैसी कंपनियों के बारे में ऐसी खबरें आयीं कि उन्होंने अपने निवेशकों पैसे लौटाने में चूक (डिफॉल्ट) की। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि कॉर्पोरेट डिपॉजिट में निवेश करते समय कंपनी को बहुत सावधानी से चुनने की जरूरत है।
ऊँचे लाभ के लालच में बहुत-से निवेशक बैंक जमाओं के बदले कॉर्पोरेट डिपॉजिट यानी कंपनियों की मियादी जमा योजनाओं में निवेश करते हैं। लेकिन निवेशकों को याद रखना चाहिए कि कॉर्पोरेट डिपॉजिट में पैसे डूबने के जोखिम का स्तर काफी अलग-अलग होता है। दिग्गज कंपनियों की योजनाओं को आम तौर पर अधिक सुरक्षित माना जाता है, पर कई बार ऐसे भी किस्से सुनने को मिलते हैं कि किन्हीं कारणों से वित्तीय संकट में फँस गयी किसी दिग्गज कंपनी ने भी निवेशकों को समय पर पैसे नहीं लौटाये। ऐसे में छोटी कंपनियों को दिये जाने वाले पैसे का भविष्य तो अनिश्चित हो सकता है।
आम तौर पर कॉर्पोरेट डिपॉजिट योजनाएँ असुरक्षित होती हैं, यानी उनके विरुद्ध कोई संपत्ति जमानत के तौर पर नहीं होती। यानी निवेशक केवल कंपनी की साख के आधार पर इनमें पैसा डालते हैं और उनका पैसा समय पर वापस मिलना बस दो बातों पर निर्भर करता है - कंपनी की वित्तीय क्षमता और पैसे लौटाने की उसकी इच्छा।
बैंकों की मियादी जमाओं (एफडी) पर मिलने वाला ब्याज साल 2013 के लगभग 9-9.5% के स्तरों से घट कर अब 7-7.25% के आसपास आ गया है, वहीं कॉर्पोरेट एफडी पर अब भी 8-10% ब्याज मिल जा रहा है और कमजोर रेटिंग या कम साख वाली कंपनियों के एफडी पर तो 12-14% ब्याज भी मिल सकता है।
अगर कोई कंपनी बैंक जमा से 2-3% ज्यादा ब्याज देने को तैयार हो, तो इसका मतलब साफ है कि बैंक जमा की तुलना में उस निवेश पर जोखिम भी उसी अनुपात में ज्यादा होगा। अगर कोई कंपनी इससे भी ऊँचा ब्याज दे रही हो, तब तो और भी सावधान हो जाने की जरूरत होती है। किसी कंपनी के कॉर्पोरेट डिपॉजिट पर ज्यादा ऊँचा ब्याज होने का मतलब यही है कि वह अन्य माध्यमों से पूँजी जुटाने लायक वित्तीय मजबूती और साख नहीं रखती है। हालाँकि यह कहना एक अतिरेक होगा कि कॉर्पोरेट डिपॉजिट से निवेशकों को एकदम अलग ही रहना चाहिए। कंपनी अधिनियम में हुए संशोधन के तहत अब कॉर्पोरेट डिपॉजिट जुटाने के लिए कंपनियों को अनिवार्य रूप से रेटिंग करानी होती है। जिन कंपनियों की जमा योजनाओं को ऊँची रेटिंग मिली हो, केवल उन पर ही विचार करना चाहिए।
इसके अलावा, अगर बैंक एफडी से ऊँचा ब्याज हासिल करने का ही लक्ष्य हो तो म्यूचुअल फंडों की डेब्ट योजनाओं को भी चुना जा सकता है। हालाँकि कभी-कभी डेब्ट फंडों की ओर से मिलने वाला प्रतिफल सुनिश्चित नहीं होता और इनमें उतार-चढ़ाव आ सकता है। लेकिन सामान्यत: उनका प्रतिफल बैंक एफडी से बेहतर होने की उम्मीद रहती है और साथ में कर छूट का लाभ भी उठाया जा सकता है।
कभी-कभी म्यूचुअल फंडों को भी कंपनियों की ओर से भुगतान में चूक का खामियाजा उठाना पड़ता है। मिसाल के तौर पर पिछले साल अगस्त में एम्टेक ऑटो के 800 करोड़ रुपये के बॉन्डों के पैसे लौटाने में चूक की खबरों के बीच इसकी रेटिंग घटाये जाने से जेपी मॉर्गन म्यूचुअल फंड की इंडिया ट्रेजरी फंड और इंडिया शॉर्ट टर्म इन्कम फंड के निवेशकों में घबराहट फैल गयी और उन्होंने इन फंडों से अपने पैसे एकदम से निकालने शुरू कर दिये।
फिर भी, तुलनात्मक रूप से म्यूचुअल फंड अधिक सुरक्षित हैं, क्योंकि उनकी डेब्ट योजनाओं के निवेश का एक बड़ा हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में लगा होता है। साथ ही, जब म्यूचुअल फंड कॉर्पोरेट बॉन्डों में निवेश करते हैं तो फंड मैनेजर अपनी योग्यता से अपेक्षाकृत सुरक्षित बॉन्डों को चुनता है। इसके अलावा, विविधीकरण यानी अलग-अलग प्रपत्रों में निवेश फैला होने के कारण भी जोखिम कम हो जाता है।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)