रिलायंस का शेयर बहुत लंबे समय से एक दायरे में अटका हुआ है और निवेशकों को लाभ नहीं मिला है। उनके मन में सवाल है कि रिलायंस कब अपने मौजूदा दायरे से ऊपर निकलेगा। जियो में किये गये भारी निवेश का फायदा रिलायंस को कब से मिलना शुरू होगा? ऐसे तमाम सवालों पर केआर चोकसी सिक्योरिटीज के एमडी देवेन चोकसी की राय।
रिलायंस जियो का जो बिजनेस प्लान है, उसमें उन्होंने 10 करोड़ ग्राहक बनाने का लक्ष्य रखा है। इनसे अगर औसतन 500 रुपये प्रति ग्राहक की मासिक आमदनी आती है, तो सैद्धांतिक रूप से उनसे कुल सालाना आमदनी 60,000 करोड़ रुपये की हो सकती है। अगर लगभग 40% एबिटा मार्जिन लें, तो एबिटा आय लगभग 24,000 करोड़ रुपये की होगी। इसमें से अगर ब्याज और मूल्यह्रास वगैरह काट लिया जाये, तो लगभग 10,000 करोड़ रुपये की कर पूर्व लाभ की राशि बनती है। यह इस कारोबार की तात्कालिक संभावना दिखती है।
अब सवाल है कि 10 करोड़ ग्राहकों से मासिक 500 रुपये की औसत आमदनी होगी या नहीं। मेरे विचार से यह हासिल कर पाना आसान है, क्योंकि इस उद्योग में बड़े ग्राहक ही आमदनी में 70% से 80% का योगदान कर रहे हैं। ये ग्राहक ही रिलायंस जियो के लिए सबसे पहले लक्ष्यित समूह होंगे, क्योंकि अगर उन्हें मौजूदा दरों की तुलना में केवल एक बटे पाँचवीं लागत पर सेवाएँ दी जाती हैं तो यह काफी संभव है कि वे रिलायंस की सेवाओं को अपना लेंगे। डेटा संबंधी जरूरतों के लिए 500 रुपये मासिक लागत बहुत ज्यादा नहीं है।
अभी भारती जैसी मौजूदा कंपनियों की प्रति ग्राहक औसत आमदनी (एआरपीयू) में 70-80% हिस्सा वॉयस कॉल से आता है। यहाँ रिलायंस जियो तो वॉयस को मुफ्त कर रही है। कंपनी के लिए डेटा ही आमदनी का जरिया होगी। भारती जैसी कंपनी के लगभग 25-30% ग्राहक डेटा आमदनी में योगदान कर रहे हैं। इन ग्राहकों को अगर भारती की मौजूदा दरों के मुकाबले एक बटे पाँचवीं कीमत पर डेटा मिले, तो वे बदल कर जियो के ग्राहक बन सकते हैं। इसलिए तर्क यह बनता है कि भारती के लगभग 26 करोड़ ग्राहकों में से एक चौथाई यानी लगभग सात करोड़ ग्राहकों में से काफी लोग जियो की तरफ चले जायेंगे। ऐसा ही बाकी कंपनियों के साथ हो सकता है।
इसके अलावा, डेटा प्लान अपनाने वाले ग्राहकों की संख्या भी बढ़ेगी। अभी भारती और दूसरी टेलीकॉम कंपनियों के डेटा ग्राहकों की संख्या कम है, क्योंकि डेटा की कीमत ज्यादा है। जब डेटा की कीमत घट कर एक बटे पाँच रह जायेगी और आप वॉयस को मुफ्त कर दें, तो ग्राहक आपकी ओर आ जायेंगे। इन ग्राहकों को वॉयस के लिए पैसे नहीं देने होंगे, पर कनेक्शन के लिए एक न्यूनतम शुल्क तो देना होगा।
अभी ज्यादा ग्राहक पुरानी कंपनी को छोड़ कर रिलायंस जियो अपनाने की ओर नहीं बढ़ेंगे। जब तक इंटरकनेक्ट ठीक नहीं होता है और वॉयस या डेटा की लाइनें ठीक से नहीं चलती हैं, तब तक क्यों ऊँचा भुगतान करने वाला मौजूदा ग्राहक किसी के कनेक्शन को छोड़ेगा? मौजूदा ग्राहक पुरानी कंपनी को तब तक नहीं छोड़ेगा, जब तक जियो का नेटवर्क पूरी तरह से मानकों के मुताबिक नहीं चलने लगता। अभी जियो का नेटवर्क अभी जूझ रहा है और ठीक तरह से नहीं चल पा रहा। मौजूदा कंपनियाँ जियो के ट्रैफिक को अपने नेटवर्क पर पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही हैं।
अभी जियो के आँकड़ों के आधार पर हमने रिलायंस के नये लक्ष्य भाव की गणना नहीं की है, मगर मेरा आकलन है कि जियो की एबिटा आय उसके मौजूदा व्यवसाय की एबिटा आय के लगभग बराबर हो सकती है। आगे चल कर जियो व्यवसाय की संभावना ऐसी दिखती है, क्योंकि यह ऊँची एबिटा आय देने वाला व्यवसाय है। वैसे भी इस कारोबार में लगभग डेढ़-दो लाख करोड़ रुपये का पूँजीगत खर्च हो चुका है। इस लिहाज से कंपनी का उपक्रम मूल्य (एंटरप्राइज वैल्यू या ईवी) लगभग दो लाख करोड़ रुपये अधिक हो चुका है। अगर इस ईवी के एक गुऩा के आधार पर भी देखें तो कंपनी की बाजार पूँजी में दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि बनती है। पर यह वृद्धि अभी होगी या इस आय स्रोत के सफल होने के बाद होगी, यह तो समय ही बतायेगा। पर मेरा कहना यह है कि जियो व्यवसाय रिलायंस की बाजार पूँजी में दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि करने की क्षमता रखता है। अभी रिलायंस ने ग्राहक बनाने जरूर शुरू कर दिये हैं, पर व्यावसायिक तौर पर इससे आमदनी आनी शुरू नहीं हुई है। अभी तो नेटवर्क स्थिर होने तक उन्होंने इसे मुफ्त रखा हुआ है। जब इस व्यवसाय से आमदनी में योगदान होने लगेगा तो शेयर भाव पर असर भी दिखने लगेगा। यह योगदान तीन महीने में भी शुरू हो सकता है और साल भर भी लग सकता है। यह योगदान तब शुरू होगा, जब मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) सफलता से होने लगे और इंटरकनेक्शन का मुद्दा सुलझ जाये।
इसलिए अभी अगले एक साल के लिए इस व्यवसाय के आँकड़ों का आकलन करने के बदले यह देखना होगा कि जियो का व्यावसायिक कामकाज कब से आरंभ हो पाता है। अभी उनका जोर अधिक-से-अधिक ग्राहक बना लेने पर है। उनका नजरिया सही है। जब ग्राहक बन जायेंगे और आमदनी आनी शुरू हो जायेगी, तब इस कारोबार का मूल्यांकन ठीक से हो सकेगा।
रिलायंस का शेयर लगातार हमारी खरीदारी सूची में है। मैं मानता हूँ कि यह बहुत लंबे समय से एक दायरे में अटका हुआ है और निवेशकों को लाभ नहीं मिला है। कंपनी की ओर से किसी व्यवसाय में निवेश का समय लंबा होता है और निवेश का समय पूरा होने के बाद उसका असर आता है। जियो में निवेश हो चुका है, इसलिए अब समस्या नहीं आनी चाहिए। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं लग रहा है कि रिलायंस अपने मौजूदा दायरे से ऊपर निकलेगा।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)