महेश उप्पल, निदेशक, कॉमफस्र्ट
कम-से-कम सितंबर माह में नये ग्राहकों के आँकड़ों से ऐसा नहीं लगता कि पुरानी कंपनियों पर रिलायंस जियो के आगमन ने बहुत नकारात्मक प्रभाव डाला है।
रिलायंस जियो को एयरटेल या अन्य कंपनियों ने इंटरकनेक्शन बिंदु (पीओआई) कहाँ दिये हैं, यह भी देखना महत्वपूर्ण है। जहाँ जितने अनुरोध किये गये थे, वहाँ उतने पीओआई दिये गये तभी बात बनेगी। जैसे आप बोलें कि हमने इतनी सड़कों को चौड़ा कर दिया है, लेकिन जहाँ वास्तव में ज्यादा ट्रैफिक है उन सड़कों को चौड़ा नहीं किया तो बात नहीं बनेगी।
पुराने ऑपरेटरों के पास ऐसा कोई प्रोत्साहन नहीं है कि वे इंटरकनेक्शन को आसान करें और पूरा सहयोग दें। दूसरी तरफ यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी नेटवर्क को सुचारू बनाने में सालों लग जाते हैं। इस नजरिये से भी देखना होगा कि कॉल ड्रॉप में कितना योगदान कम पीओआई मिलने का है और कितना योगदान जियो के अपने नेटवर्क की तकनीकी दिक्कतों का है। अभी अगर जियो का डेटा संपर्क ही भरोसेमंद नहीं है और उसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है, जबकि इसमें इंटरकनेक्ट का कोई मसला नहीं है, तो इसका मतलब है कि उनके नेटवर्क में कुछ दिक्कतें जरूर हैं। पुराने ऑपरेटर भी जियो से सहयोग नहीं कर रहे हैं और खुद जियो के नेटवर्क से जुड़े मुद्दे भी हैं।
यह मान भी लें कि जियो की कुछ अपनी समस्याएँ हैं, तो इसका यह मतलब नहीं है कि पुराने ऑपरेटर अपने हिस्से का सहयोग दे रहे हैं। इसलिए संभवत: टीआरएआई का यह नजरिया है कि पुराने ऑपरेटर अपने लाइसेंस की शर्तों का पूरी तरह से पालन नहीं करने के दोषी हैं। टीआरएआई ने 3,050 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की जो सिफारिश की है, उसे डीओटी के अधिकारी अगर कम करेंगे तो उनके लिए मुसीबत हो जायेगी। उनसे कहा जायेगा कि आपने सरकारी खजाने की आय को नुकसान पहुँचाया है।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)