जीएसटी के लिए दरों का ऐलान हो गया है। इससे आम आदमी की जेब पर तो कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है, लेकिन ऐशोआराम वाली और नुकसानदेह चीजों के लिए जेब जरा और ढीली करनी पड़ सकती है।
प्रणव
लंबी कशमकश और अटकलों के दौर के बाद आखिरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लिए दरें हो गई हैं। आजाद भारत में अप्रत्यक्ष करों के मोर्चे पर सबसे क्रांतिकारी सुधार के रूप में करार दिये जा रहे जीएसटी का आगाज चार अलग-अलग दरों के साथ होगा। हालाँकि मूल रूप में जिस जीएसटी की अवधारणा पेश की गयी थी, यह उसके अनुरूप नहीं है, लेकिन जानकारों का कहना है कि तमाम विरोधाभासों को देखते हुए कम-से-कम इसकी मौजूदा स्वरूप में शुरुआत तो हो रही है। उद्योग जगत ने भी जीएसटी की तय दरों का स्वागत किया है।
मंजिल अब पास
तकरीबन डेढ़ दशक तक केंद्र और राज्यों के बीच तमाम राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर विरोधाभास के बावजूद जीएसटी लागू होने जा रहा है। जीएसटी परिषद ने इसके लिए 8%, 12%, 18% और 28% की चार दरें तय की हैं। मोटे तौर पर देखा जाये तो ये दरें भी स्पष्टï रूप से दो श्रेणियों में विभाजित हैं, जिसमें एक श्रेणी बहुत कम दर वाली है और दूसरी बहुत ऊँची दर वाली। दरों को तय करने में खासी एहतियात बरती गयी है और इसमें उपभोग श्रेणी का पूरा ध्यान रखा गया है कि कर की दर से आम आदमी को ज्यादा परेशानी न हो। हालाँकि तय की गयी दरें मुख्य रूप से वस्तुओं के लिए ही निर्धारित की गयी हैं और पर स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। फिर भी यही माना जा रहा है कि अधिकांश सेवाओं के लिए जीएसटी दर 18% ही रहेगी। साथ ही मूल्यवान धातुओं में सोने पर कर की दर पर भी कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि यह दर 4% रह सकती है।
महँगाई पर असर
जीएसटी को लेकर शुरुआत से ही यही डर जताया जाता रहा है कि इसके लागू होने से सहूलियत तो बढ़ेगी, लेकिन साथ ही महँगाई में भी इजाफा होगा। ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया जैसे जीएसटी को अपनाने वाले तमाम देशों के उदाहरणों से यह आशंका और बलवती नजर आती है। मगर जीएसटी परिषद ने जिस प्रकार से दरों को निर्धारित किया है, उसे देखते हुए महँगाई के जोर मारने की आशंका कम होती है। जीएसटी के मुख्य शिल्पकार और देश के मुख्य आर्थिक सलाहकर अरविंद सुब्रमण्यन ने भरोसा जताया है कि जीएसटी की दरों से महँगाई बढऩे के आसार नहीं है। अगर ऐसा परिदृश्य बनता नजर आ रहा है तो उसका आधार यही है कि परिषद ने खाद्य तेल, मसाले, चाय और कॉफी जैसी आवश्यक वस्तुओं पर कर की दर को महज 5% रखा है, जिसके बारे में शुरुआत में माना जा रहा था कि यह 6% भी हो सकती है। फिलहाल इन वस्तुओं पर 9% तक कर लगता है।
इसके अलावा महँगाई का पैमाना माने जाने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में शामिल करीब आधी वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से मुक्त रखा गया है। हालाँकि 5% की दर में अब पेंच इस बात पर फँस सकता है कि किन-किन वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी के तहत लाया जाता है। इसके बाद कंप्यूटर और प्रसंस्कृत खाद्य जैसी तमाम वस्तुओं के लिए 12% की मानक दर तय की गयी है, जिन पर अभी 10% से 15% तक कर वसूला जाता है। 18% की एक और मानक दर तय की गयी है, जिसके दायरे में तेल, साबुन और सौंदर्य प्रसाधन के अलावा कई अन्य चीजें शामिल होंगी। इन वस्तुओं पर अभी 15% से 20% कर लिया जाता है। इस लिहाज से देखा जाए तो आम आदमी के इस्तेमाल वाली वस्तुओं पर कर की दरों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। मगर इन मानक दरों से ऊपर 28% की सबसे ऊँची दर निर्धारित की गयी है, जिसमें लक्जरी कार, एलईडी टीवी जैसी वस्तुओं के अलावा तंबाकू जैसे सेहत को नुकसान पहुँचाने उत्पादों को भी शामिल किया है। इस 28% जीएसटी के ऊपर उपकर का भी प्रावधान है। अभी तक इन उत्पादों पर 21% के बराबर कर लगता आया है। लिहाजा, जीएसटी के आने से इनका और महँगा होना स्वाभाविक है। कार्बोनेटेड पेय बनाने वाली कंपनियों को भी इसी श्रेणी में डाला गया है।
इसी तरह अधिकांश सेवाओं के लिए कर की दर 18% रह सकती है, जिससे कई सेवाएँ महँगी हो जायेंगी। हालाँकि सेवाओं के लिए 5% से 12% की एक और श्रेणी भी बनायी जा सकती है, लेकिन उसके दायरे में कम ही सेवाएँ आयेंगी। ऐसे में जीएसटी के आने के बाद फोन, टीडीएच जैसी तमाम सेवाएँ कुछ महँगी हो सकती हैं।
आगे की डगर
हालाँकि उद्योग जगत ने जीएसटी की दरों का स्वागत किया है। जिन वस्तुओं और सेवाओं के कुछ महँगा होने की आशंका है, उनसे जुड़ी हुई कंपनियों ने भी फिलहाल सधी हुई प्रतिक्रिया ही दी है। मगर उद्योग जगत से जुड़ी संस्थाओं का यह भी कहना है कि शुरुआत के लिहाज से जीएसटी की चार दरें ठीक हैं, लेकिन भविष्य में इन्हें एक नहीं तो कम-से-कम दो दरों तक सीमित ही किया जाना चाहिए, अन्यथा ‘एक देश, एक कर’ वाली अवधारणा मूर्त रूप नहीं ले पायेगी। उपकर लगाने को लेकर भी कुछ बात अटकी है।
बहरहाल कारोबार को सुगम बनाने, लोगों की सहूलियत बढ़ाने और कर अनुपालन को बेहतर बनाने वाले जीएसटी ने एक और पड़ाव पार कर लिया है। अब देखना यही होगा कि इससे आर्थिक मोर्चे पर जिस छलांग की उम्मीद लगायी जा रही है, क्या यह देसी अर्थव्यवस्था को वैसी तेजी दे पायेगा।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)