राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
विश्व बैंक की जारी हाल की कारोबारी सुगमता सूचकांक रिपोर्ट में भारत महज एक अंक ही ऊपर खिसक पाया है। अब भारत 190 देशों की 2015-16 की सूची में 130वें पायदान पर खड़ा है। सही मायनों में भारत एक अंक भी नहीं खिसक पाया है, क्योंकि इससे एक साल पहले की सूची में भारत 130वें पायदान पर ही खड़ा था।
इस रिपोर्ट से पहले विश्व की तीन प्रमुख रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की साख के उन्नयन से साफ इन्कार कर दिया था। विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता की यह रिपोर्ट 10 मानकों - कारोबार प्रारंभ, निर्माण (कंस्ट्रक्शन) परमिट, विद्युत कनेक्शन, संपत्ति की रजिस्ट्री, कर्ज प्राप्ति, अल्पमत शेयरधारकों का संरक्षण, टैक्स भुगतान, सीमा पार व्यापार, संविदा लागू करने और दिवालिया समाधान के मुद्दों पर तैयार है। इन मानकों में 4 को छोड़ कर बाकी मानकों पर भारत का स्थान पहले से पिछड़ गया है।
सरकारी नुमाइंदों का कहना है कि तिथि की सीमा (1 जून 2016) के कारण कई सुधारों को इस रिपोर्ट मे शामिल नहीं किया जा सका है और इसका फायदा अगले साल की रिपोर्ट में मिलेगा। उत्पाद एवं सेवा शुल्क, दिवाला सहनता, कारोबारी स्वीकृतियों के लिए एकल खिड़की योजना, ऑनलाइन ईएसआईसी और ईपीएसओ जैसे बड़े सुधार इस रिपोर्ट में शामिल नहीं हो पाये हैं। इस रिपोर्ट से मोदी सरकार का विचलित होना लाजमी है। मोदी ने दुनिया भर में घूम-घूम कर कारोबारी सुगमता का भारी प्रचार किया, पर इस रिपोर्ट से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है। 2018 में कारोबारी सुगमता सूची में शीर्ष 50 देशों में स्थान दिलाने का उनका सपना फिलहाल दूर की कौड़ी लगता है। अब सरकारी महकमा खुद इस लक्ष्य को पाने के लिए कोई समय-सीमा बताने से मुँह छिपा रहा है।
मोदी सरकार जब 2014 में केंद्रीय सत्ता पर काबिज हुई, तब से सुधारों और घोषणाओँ का ताँता लगा हुआ है। कई नये कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। मेक-इन इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, मुद्रा योजना आदि आदि। ऑनलाइन सुविधाओं और समाधानों के लिए भी कई दावे किये गये हैं, पर आर्थिक संकेतक और विश्व बैंक की रिपोर्ट इन दावों की तसदीक नहीं करती है। हकीकत यह है कि व्यापार सुगमता की सूची में कई मानकों पर भारत की स्थिति पहले से बदतर हुई है। स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इडिया की घोषणा पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से मोदी ने बड़े दम-खम से की थी।
पर विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में नये कारोबार शुरू करने के मानक पर भारत का स्थान 4 अंक लुढ़क कर 155वाँ हो गया है। 190 देशों की सूची में निर्माण मानक पर भारत का स्थान 185वाँ है। पिछले एक साल में ही टैक्स प्रणाली अधिकाधिक मित्रवत बनाने के अनगिनत सरकारी बयान आये हैं। इस मानक पर भारत का स्थान 172वाँ है। टैक्स भुगतान मानक में एक पोस्ट-फाइल सूचकांक होता है। इस मानक पर भारत केवल अफगानिस्तान, तिमूर और तुर्की से ही आगे है। इससे ही कर प्रशासन में हुए सुधार का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मसले पर खुद मोदी और अरुण जेटली कर अधिकारियों के साथ कई बैठकें कर चुके हैं, पर नतीजा ज्यादा सुकून देने वाला नहीं है।
अब रियल स्टेट (नियामक और विकास) अधिनियम को ही लीजिए। इसे पारित हुए छह महीने से ऊपर हो गये हैं। इससे संबंधित नियमों की घोषणा 31 अक्तूबर तक होनी थी। राज्यों की बात छोड़ें, खुद केंद्र सरकार दिल्ली के लिए इन नियमों की घोषणा नहीं कर पायी है। नौकरशाही की बेरुखी की वजह से ताइवान की महाकाय कंपनी फॉक्सकॉन कंपनी की 5 अरब डॉलर की परियोजना खटाई में पड़ गयी है। यह परियोजना मेक-इन इंडिया की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही थी।
मोदी सरकार के कार्यकाल का आधा समय बीत चुका है पर विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) और औद्योगिक क्षेत्र अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रहे हैं। निर्यात से किसी देश की प्रतिस्पद्र्धी क्षमता का पता चलता है। इस बार कुल निर्यात 2014 की तुलना में कम रहने वाले हैं। अन्य आर्थिक संकेतक भी उत्साहवर्धक नहीं हैं। निजी क्षेत्र का निवेश गिर रहा है। रोजगार में सन्नाटा पसरा हुआ है। बैंकों के फँसे कर्ज (एनपीए) काबू से बाहर हैं। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियाँ भी अब तक मोदी सरकार के काम-काज से ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। कोढ़ में खाज यह है कि निकट भविष्य में इन एजेंसियों ने भारत की रेटिंग बढऩे की संभावना से इन्कार कर दिया है। कुल मिला कर मोदी सरकार का हल्ला ज्यादा, गल्ला कम है। मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता अब आर्थिक निर्णयों, घोषणाओं और कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने की होना चाहिए, तभी कारोबारी गति और विश्वास में अपेक्षित इजाफा हो पायेगा।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)