किशोर पाटे, सीएमडी, अमित इंटरप्राइजेज, हाउसिंग लिमिटेड :
वर्ष 2013 में दो भवनों के गिरने की घटनाएँ खूब सुर्खियों में रही थीं।
इनमें एक भवन मुंबई के ठाणे में गिरा था, जबकि दूसरा बांग्लादेश के सावर में। ठाणे में जहाँ 74 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी, वहीं सावर में 700 से अधिक लोग मौत के गाल में चले गये थे।
दक्षिण एशियाई शहरों में, जहाँ तेज गति से शहरीकरण हो रहा है, भवनों का गिरना एक सामान्य घटना है, हालाँकि ऐसी त्रासदी अक्सर छोटे मकानों में होती हैं, जहाँ कम आय वर्ग के लोग और अनौपचारिक या अद्र्ध-औपचारिक पड़ोसी होते हैं। वास्तव में, संभव है कि ऐसे मकानों के गिरने की इन घटनाओं में मरने वालों की संख्या कभी-कभार बड़े भवनों के गिरने से होने वाली मौतों से अधिक हो।
जरूरी नहीं है कि भवनों के गिरने की ऐसी घटनाएँ गैरकानूनी रूप से निर्माण की वजह से ही होती हों। दो भवनों के बीच कम जगह होने से निर्माण की गुणवत्ता कम हो जाती है। इसके अलावा, बहुमंजिली इमारतों का निर्माण अप्रशिक्षित मजदूरों द्वारा बगैर किसी इंजीनियरिंग ज्ञान के किया जाता है।
अक्सर, उचित तरीके से पड़ताल किये बगैर घटिया सामग्रियों के उपयोग और खराब निर्माण को भवनों के गिरने की वजह बता दिया जाता है। इस लेख का मकसद आपको यह जानकारी देना है कि किस तरह आप खराब निर्माण की समझ या थाह ले सकते हैं।
1. मिट्टी का उचित तरीके से विश्लेषण किये बगैर भवन बनाना, खास कर बड़े भवनों का निर्माण करने से संरचना और बाहर के पेवमेंट में दरारें आ जाती हैं। खिड़कियों और दरवाजों से आवाज आना, जाम या फ्रेम से अलग होना, खिड़कियों और दरवाजों के कोने के साथ जोड़ के पास दरारें आना फाउंडेशन की समस्याओं में शामिल हैं। बेसमेंट में ऐसी दरारें भी आ जाती हैं, जो लगातार बढ़ती रहती हैं और पानी के रिसाव और छत के रिसाव का कारण बनती हैं।
2. खराब निर्माण सामग्री के उपयोग से भी निर्माण संबंधी परेशानियाँ आती हैं। उदाहरण के लिए, खराब सामगी्र की वजह से होने वाले पानी के रिसाव से संरचना कमजोर हो जाती है। भवनों में नमी, शैली और फफूंदी की उपस्थिति से निर्माण में त्रुटि और खराब भवन सामग्री के उपयोग का पता कर सकते हैं।
3. प्लास्टर की हुई दीवारों में सीधी और क्षैतिज दरार सिकुडऩ या सूखने की तरफ इशारा करती है और यह सामान्य मामला है। लेकिन जो दरारें दांतेदार होती हैं, सीढिय़ों की तरह होती हैं और लगभग 45 डिग्री पर होती हैं, वे सामान्य तौर पर स्थिरता संबंधी मुद्दों और ढाँचा हिल जाने की तरफ इशारा करती हैं।
ये दरारें अक्सर क्षति पहुँचाने वाली नहीं होती हैं, लेकिन कभी-कभी गंभीर किस्म की हो सकती हैं। एक इंच के 1/8वें हिस्से से कम चौड़ाई वाली दरार अक्सर खिंचाव या दबाव की वजह से आती है और नुकसानरहित मानी जाती है। लेकिन 1/4 इंच या इससे अधिक चौड़ी दरार गंभीर किस्म की मानी जाती है।
कंक्रीट की दीवारों के मामले में सीधी और तिरछी दोनों तरह की दरारें सामान्य तौर पर नींव खिसकने की तरफ संकेत करती हैं। अगर सीधी खड़ी दरार नीचे या ऊपर चौड़ी होती जाती है तो सेटलिंग या धीरे-धीरे जोर पडऩा इसका कारण हो सकता है। सीढ़ी-नुमान दरारें भी जोर या दबाव पडऩे की तरफ संकेत करती हैं। क्षैतिज दरारों से डिजाइन में त्रुटि या फिर दीवार के पीछे दबाव बनने के संकेत मिलते हैं। क्षैतिज दरारें गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकती हैं। भवनों के निर्माण के मामले में डिजाइन से संबंधित पक्षों से समझौता किया जाता है और ऐसे लोगों को परियोजनाओं की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है, जिनके पास पर्याप्त तकनीकी जानकारी नहीं होती है।
अंत में, जमीन और सामग्रियों की बढ़ती कीमतों की वजह से खास कर कम आय वर्ग वाले लोग सस्ते विकल्पों की तरफ रुख करते हैं। भारतीय शहरों में इसका सीधा मतलब रातों-रात डेवलपर बन जाने वाले बिल्डरों की दया का पात्र बनना होता है, जिनके पास कोई अनुभव या प्रतिष्ठा नहीं होती है। दूसरे शब्दों में, कम कीमत वाले भवन का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि खराब गुणवत्ता वाले खतरनाक भवन का निर्माण किया जाये।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)