20 रुपये का सेल 1,572 रुपये में!
भारत में वाहन कंपनियाँ अपने ग्राहकों को पुर्जों की कीमतों में किस तरह चूना लगाती हैं,
इसका एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया है। आजतक के खोजी पत्रकार और संपादक दीपक शर्मा ने अपने व्यक्तिगत अनुभव से यह खोज की! अपने फेसबुक प्रोफाइल पर उन्होंने हाल में लिखा, ‘जीवन में जो डील आज किया, शायद वह पहले कभी नही किया। एक ऐसी डील जो मुनाफे के मायने बदल देती है। एक ऐसी डील जो मेरी नहीं, आपकी आँखें भी खोल देगी।‘
वे खुद कहते हैं कि मामला छोटा है। पर अगर भारत के लगातार फैलते विशाल वाहन बाजार की इस प्रवृत्ति को समझें तो इसका मतलब काफी बड़ा है। दीपक शर्मा ने किस्सा इस तरह बयान किया, %आज मेरी कार की रिमोट चाभी खराब हो गयी। पता लगा कि रिमोट में जो 3 वोल्ट का बटन सेल है, वह खराब हो गया है। इस वजह से कार चालू नही हो रही थी। मजबूरी थी, इसलिए मैं नोएडा के सेक्टर 11 में शेवरले के शोरूम कम स्टोर पहुँचा। मुझे बताया गया कि रिमोट में 3 वोल्ट का बटन सेल यानी बैटरी खराब हो चुकी है, उसे बदलना पड़ेगा। चवन्नी के बराबर यह बटन सेल रिमोट के अलावा कंप्यूटर और लैपटॉप में भी इस्तेमाल होता है। बटन सेल सीआर 2032 टाइप का है। पहले मुझे बताया गया कि यह बटन सेल 1100 रुपये का है, फिर स्टोर से आधिकारिक जानकारी मिली कि कुल कीमत 1,572 रुपये है। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि एक बटन सेल, जो ज्यादातर घड़ी और छोटे इलेक्ट्रॉनिक आइटम में लगता है, वह इतना महँगा हो सकता है! मोल-तोल की गुंजाइश थी नहीं, क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनी में पुर्जों पर कोई छूट नहीं दी जाती। तभी मेरे एक मित्र ने कहा कि यह सरासर लूट है, आप सेक्टर 18 के मोबाइल बाजार से यह बटन सेल ले लें।Ó
दीपक शर्मा ने इस सलाह पर जब अमल किया तो वे चकित रह गये। वे आगे बताते हैं, ‘लैपटॉप मरम्मत की एक दुकान में घुसते ही मैंने 3 वोल्ट का बटन सेल (टाइप सीआर 2032) माँगा। वैसा ही बटन मुझे दुकानदार ने डिब्बे से निकाल कर तुरंत दे दिया। मैंने पूछा, कितने का है? उसने कहा 20 का। मैंने फिर कहा, कितने का है? वह फिर बोला 20 रुपये का। दाम सुन कर कुछ देर के लिए मेरे दिमाग की बत्ती गुल हो गयी। कहाँ 1572 और कहाँ 20 रुपये?’
इस प्रसंग को लेकर दीपक ने जो सवाल उठाये हैं, वे किसी भी ग्राहक के लिए बड़े प्रासंगिक और चुभते सवाल हैं। दीपक कहते हैं, ‘दाम में इतना अंतर कल्पना से परे है। केवल 20-30 रुपये की चीज 1500 रुपये में बेची जा रही है। क्या यह लूट नहीं है? क्या उपभोक्ता के साथ आर्थिक अपराध नही किया जा रहा है? या ब्रांड बाज़ार से बड़ा हो गया है? आखिर हमारे देश में विदेशी कम्पनियाँ पुर्जों के नाम पर ग्राहक को इस तरह कैसे लूट सकती हैं? क्या ऐसी बिक्री के लिए कोई मानक तय नहीं किये गये हैं?’
दीपक शर्मा का यह किस्सा फेसबुक पर जबरदस्त ढंग से फैल रहा है। उनकी 18 नवंबर की टिप्पणी पर अगले एक हफ्ते में 700 से ज्यादा लाइक और 250 से ज्यादा टिप्पणियाँ आ चुकी हैं। इसे सवा सौ से ज्यादा लोग अपने प्रोफाइल पर शेयर कर चुके हैं।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि ऐसे दौर में, जब ज्यादातर कंपनियाँ सोशल मीडिया को ले कर खूब सजग हैं, शेवरले ने दीपक शर्मा से कोई संपर्क नहीं किया। निवेश मंथन ने जब दीपक शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि अब तक कंपनी ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की है। निवेश मंथन ने शेवरले से संपर्क कर इस मामले पर उसकी प्रतिक्रिया जाननी चाही। लेकिन कंपनी के प्रवक्ता ने वरिष्ठ अधिकारियों की व्यस्तता का हवाला दे कर फोन और ईमेल के जरिये पूछे गये सवालों का जवाब देने के लिए समय माँगा, और एक हफ्ते से ज्यादा गुजरने के बाद उनका जवाब नहीं आया।
दीपक शर्मा की इस टिप्पणी के जवाब में फेसबुक पर उनके तमाम मित्रों ने भी अपने-अपने किस्से लिखे हैं। और ऐसा नहीं है कि यह किस्सा केवल महँगे ब्रांडों का है। सबसे लोकप्रिय कार ब्रांड मारुति के बारे में अभिरंजन कुमार की टिप्पणी है कि ‘मैं तो जब-जब सर्विसिंग के लिए गाड़ी भेजता हूँ, हमारे मारुति वाले भाई भी अनाप-शनाप इतना बिल बना देते हैं कि मन करता है गाड़ी बेच कर साइकिल पर लौट आऊँ।‘
ऑटो विशेषज्ञ रणोजॉय मुखर्जी कहते हैं कि यह सब ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूलने की चाल ही है। गाड़ी की बिक्री में अब उतना मुनाफा रहा नहीं, क्योंकि ग्राहक छूट ले लेते हैं। इसलिए वे इसी तरीके से मुनाफा बनाने में लगी हैं। जो गाडिय़ाँ बिकेंगी, वे किसी-न-किसी डीलर के पास तो सर्विस के लिए आयेंगी। आज गाडिय़ाँ इतनी जटिल हो गयी हैं कि आप बाहर से सर्विस करा नहीं सकते। ग्राहक अगर बाहर से कुछ काम कराये और खराबी हो जाये तो वारंटी भी चली जाती है।
रणोजॉय कहते हैं कि इस बारे में हर कंपनी का एक कार्टेलाइजेशन है और ग्राहक के सामने कोई रास्ता नहीं है। सरकार को इसका नियमन करना चाहिए, लेकिन सवाल है कि वह किस हद तक नियमन कर पायेगी? वे कहेंगे कि हमारी यही कीमत है। गाड़ी धुलवाने का ही उदाहरण ले लें। आप सड़क किनारे के गैराज में यह काम 100 रुपये में करवा सकते हैं, लेकिन सर्विस सेंटर जायें तो वे 15,000-20,000 रुपये ले लेंगे। काम तो वही है। लेकिन वे कहते हैं कि आप न चाहें तो हमसे न करायें, हमारी यही कीमत है।
गाडिय़ों के बाजार में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा के बावजूद यह स्थिति मुनाफाखोरी के लिए गठजोड़ की ओर ही इशारा करती है। रणोजॉय कहते हैं, ‘सारी कंपनियाँ ऐसी ही कीमतें वसूल रही हैं। आपने शेवरले की बैटरी की कीमत का जो उदाहरण दिया, उसी की कीमत आप फोर्ड, स्कोडा, फॉक्सवैगन कहीं भी पूछ लें, सभी कंपनियाँ लगभग वैसी ही कीमत बतायेंगी। ग्राहकों को उनसे ही पुर्जे लेने पड़ते हैं और उन्हीं की बतायी कीमतों पर।‘
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)