सरकार ने बढ़ते चालू खाते घाटे को देखते हुए अगस्त 2013 में सोने के आयात पर सख्ती की थी,
जिसके तहत 80:20 योजना को लागू किया गया था। शुरुआत में आरबीआई ने केवल सरकारी कंपनियों को ही इसकेतहत आयात में छूट दी थी। इसके बाद मई 2014 में यूपीए सरकार ने 16वीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले छह निजी कंपनियों को भी इसके तहत आयात की मंजूरी दे दी थी। वहीं उद्योग जगत की ओर से लगातार यह मांग उठ रही थी कि 80:20 योजना को खत्म कर दिया जाये। इस मांग के पीछे वजह यह थी कि छोटे कारोबारियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा था और इस क्षेत्र की कंपनियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा था।
फिलहाल सरकार ने इस योजना को हटा कर आभूषण उद्योग को ऑक्सीजन दे दिया है। वहीं, देश में सोने की तस्करी का मुद्दा भी गंभीर है, जिसका ताल्लुक सोने के आयात नियमों से है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक सोने के आयात पर सख्ती की वजह से इस साल 200 टन सोने की तस्करी की गयी। अब सरकार ने सोने के आयात में ढील दे दी है, इसलिए सरकार का मानना है कि सोने की तस्करी पर लगाम लगेगी। लेकिन दूसरी तरफ कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि सोने का आयात बढऩे से अन्य विविध निवेशों को धक्का लगता है। फिलहाल सोने की कीमतों में अभी बड़ी गिरावट नहीं हुई है। ऐसे में यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि सोने के आयात से अन्य निवेशों को धक्का लगेगा।
सरकार के इस कदम से सिर्फ आभूषण निर्यात की अनिवार्यता ही नहीं खत्म हुई है, बल्कि छोटे कारोबारियों के लिए भी अवसर तैयार हुए हैं। रत्न-आभूषण (जेम्स एंड ज्वेलरी) से जुड़े छोटे कारोबारियों को उम्मीद है कि आयात नियमों में ढील से गहनों के निर्यात में और बढ़ोतरी होगी और साथ ही उनके उद्योग को विकास करने में भी मदद मिलेगी। फिक्की की 2013 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि स्वर्ण आभूषण उद्योग का जीडीपी में 6-7% का योगदान है। इसके जरिये करीब 25 लाख लोगों को सीधे रोजगार मिला हुआ है, जबकि आईटी क्षेत्र में 21 लाख लोगों को रोजगार मिला है। रत्न-आभूषणों के घरेलू बाजार का आकार करीब 2,50,000 करोड़ रुपये का है, जो साल 2018 तक दोगुना होने की उम्मीद है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)