विवेक मिश्र :
भारतीय रिजर्व बैंक ने सोने के आयात पर जारी 80:20 नियम को हटा दिया है।
इस नियम के मुताबिक अभी तक देश में सोने के आयातकों के लिए आयात का 20% हिस्सा निर्यात करना अनिवार्य था। सरकार के इस कदम से जहाँ सर्राफा कारोबारी खुश हैं, वहीं अर्थशास्त्री हैरान भी हैं। अर्थशास्त्री हैरान इसलिए हैं कि यह फैसला ऐसे समय में आया जब सरकारी खेमे में सोने के आयात नियमों को और सख्त बनाने की चर्चा हो रही थी। बहरहाल, सरकार की ओर से उठाया गया यह कदम कारोबारियों और खरीदारों के अनुकूल है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली की दलील है कि इस कदम से विकास में तेजी आयेगी, रोजगार के अवसर तैयार होंगे और कर राजस्व में बढ़ोतरी होगी। साथ ही सरकार का मानना है कि इस फैसले से सोने की तस्करी में कमी आयेगी और वैध रूप से सोना देश में आयेगा।
स्वर्ण-आभूषण कारोबारियों और आम खरीदारों पर 80:20 नियम के हटने का प्रभाव समझने के लिए ध्यान रखना चाहिए कि यह कैलेंडर वर्ष की चौथी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर) है, मतलब त्योहारों और लगन का मौसम। इस अवधि में स्वर्ण आभूषणों के लिए कुछ ऐसा संयोग तैयार होता है, जब मांग का ग्राफ अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँच जाता है। त्योहार और लगन के कारण सोने और आभूषणों की भरपूर मांग होती है। इसी का परिणाम है कि आरबीआई की सख्ती के बावजूद सोने के आयात में अक्टूबर के महीने में 281% की बढ़ोतरी हुई थी। इस महीने में सोने का आयात 4.17 अरब डॉलर पर पहुँच गया था। इसके पहले सितंबर में सोने का 95,673 किलोग्राम का आयात हुआ था।
सोने की मांग में बढ़ोतरी की उम्मीद तब और बढ़ जाती है, जब लोगों को स्वर्ण-आभूषण सस्ते में मिले। भरपूर मांग वाले इस मौसम में महँगाई का लेप बिक्री पर बट्टा लगा जाता है। हालांकि, आयात नियम में ढ़ील से बाजार विशेषज्ञों को सोने की कीमतों में बड़ी गिरावट की उम्मीद है। ऐसे में स्वर्ण आभूषण निर्माताओं को उम्मीद है कि मांग के मुताबिक दुकान पर ग्राहक भी आयेंगे। कहा जा सकता है कि 80:20 नियम के हटने से दोनों पक्षों के लिए सोने पर सुहागा है।
ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वेलरी फेडरेशन के मुताबिक सरकार के इस फैसले से उन सभी लोगों को राहत मिली है, जो शादी के मौसम में सोने और गहनों की खरीदारी कर रहे हैं। जेम्स ऐंड ज्वेलरी फेडरेशन ने सोने की तस्करी को रोकने के लिए सरकार से आयात शुल्क में कटौती की भी माँग की है।
लेकिन अब उनकी बात जो सरकार के इस कदम से हैरान हो गये। सोने के आयात का संबंध सीधे चालू खाता घाटा यानी (सीएडी) से है। जब भी देश में सोने का आयात बढ़ता है, तब इसका नकारात्मक असर सीएडी पर देखने को मिलता है। सीएडी का बढऩा सरकार के लिए चिंता का विषय है।
अब आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि इस चिंता के बावजूद सरकार ने सोने के आयात नियमों में ढील देने का निर्णय क्यों लिया है? इस यक्ष प्रश्न का सीधा उत्तर कच्चे तेल की फिसलन से जुड़ा है। देश के आयात बिल में सबसे ज्यादा भागीदारी कच्चे तेल और सोने की होती है। ये दोनों हमारे देश में चालू खाता घाटा पर बोझ बढ़ाने के बड़े कारक हैं। लेकिन ध्यान रखने लायक बात यह है कि कच्चा तेल आयात करना हमारे देश की मजबूरी है। इसलिए सरकार सोने के आयात पर सख्ती करके चालू खाते घाटे पर संतुलन रखती है।
कच्चे तेल का भाव लगभग चार साल के निचले स्तर पर है। ऐसे में कच्चे तेल की ओर से चालू खाता घाटा पर दबाव कम हुआ है। लिहाजा सरकार ने सोने के आयात नियमों में ढील पर सहमति जतायी है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)