प्रदीप गुप्ता, वाइस चेयरमैन, आनंद राठी सिक्योरिटीज :
आरबीआई इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होना चाहता है कि महँगाई दर निश्चित रूप से नियंत्रण में आ चुकी है।
वह जल्दबाजी करके ऐसा कोई फैसला नहीं करना चाहता है जिसे बाद में पलटना पड़ जाये। मेरा अनुमान कि अगले एक-डेढ़ महीने तक स्थितियाँ देखने के बाद आरबीआई जनवरी में दरों में कटौती का फैसला कर सकता है। इस बीच अभी तक जो कदम उठाये गये हैं, उनसे बैंकिंग व्यवस्था में पर्याप्त नकदी आ चुकी है। इसलिए जैसा कि आरबीआई ने अपनी टिप्पणी में कहा भी है, अगर बैंक चाहें तो अपनी ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं। अभी तक जो कदम उठाये गये उनका फायदा बैंकों ने आगे अपने ग्राहकों को नहीं दिया है। समय के साथ ऐसा होना शुरू हो जायेगा।
आरबीआई की ओर से जनवरी या फरवरी में कोई कदम जरूर उठाया जाना चाहिए। बजट के पहले ही यह हो जायेगा। आरबीआई ने कहा भी है कि मौद्रिक नीति की समीक्षा का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। बजट का इंतजार करने की जरूरत इसलिए नहीं होगी कि कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतें नियंत्रण में हैं।
उद्योग जगत तर्क देता रहा है कि ब्याज दरों में कमी के बाद ही नया निवेश हो पायेगा। लेकिन मुद्दा यह है कि अभी भी माँग में टिकाऊ वृद्धि नहीं हो रही है, इसलिए निवेश के फैसले टल रहे हैं। समय के साथ जैसे-जैसे विकास दर सुधरनी शुरू हो जायेगी और माँग बढऩे लगेगी तो अपने-आप ही निवेश बढऩे लगेगा।
केंद्र सरकार ने अब तक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए जितनी बातें कही हैं, उन पर अमल होने की जरूरत है। कोयला की नीलामी की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। यह एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन कई उद्योगों के लिए अभी फैसले किये जाने हैं। भूमि अधिग्रहण विधेयक में बदलाव की जरूरत है। पर्यावरण मंजूरी को लेकर सरकार ने प्रभावी कदम उठाये हैं। अभी लोग इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कितने विधेयकों को पारित करा पाती है और कितनी नीतियों पर अमल शुरू होता है। ऐसा होने पर उत्साह काफी बढ़ेगा और लोग पूँजी लगाना शुरू करेंगे।
सरकार ने बुनियादी ढाँचे के विस्तार के लिए जो बातें कही हैं, उसके लिए जैसे ही इन योजनाओं पर स्पष्टता आयेगी और निवेश होना शुरू होगा, तो उससे माँग पैदा होगी और विकास दर में तेजी आयेगी। जब दिखने लगेगा कि बुनियादी ढाँचे में सुधार हो रहा है तो निजी निवेश भी शुरू होगा। खनन और बुनियादी ढाँचा, दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें तेजी आने पर पूरी अर्थव्यवस्था में माँग बढऩी शुरू हो जाती है। अगर अगले बजट सत्र में जीएसटी पर कोई निर्णायक कदम उठाया जा सका, जिसकी सबको काफी उम्मीद है, तो उससे भी अर्थव्यवस्था को काफी सहारा मिलेगा।
दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.3% रही है, लेकिन मेरा मानना है कि तीसरी और चौथी तिमाही में विकास दर इससे कहीं बेहतर रहेगी। हम इस कारोबारी साल के लिए 5.7% से 6% के बीच की विकास दर रहने की उम्मीद कर रहे हैं। तीसरी तिमाही में 5.7% और चौथी तिमाही में 6.2% के आसपास की विकास दर रहनी चाहिए।
हालाँकि शेयर बाजार अभी कुछ समय के लिए ठहराव के दौर में जा सकता है। यह 2014-15 के आधार पर 18-19 पीई के मूल्यांकन पर चला गया है। विकास दर से जुड़ी उम्मीदें पहले ही आय के अनुमानों में शामिल हो चुकी हैं। सामान्य रूप से दिसंबर-जनवरी ठहराव के महीने होते ही हैं। एक-दो महीने ठहराव के बाद बाजार फिर से मजबूती दिखा सकता है। जनवरी के मध्य में बजट-पूर्व तेजी शुरू होने से बाजार में फिर सकारात्मक रुझान बन सकता है। बजट के बाद भी बाजार ठीक रहने की उम्मीद लगती है।
पिछले सात सालों में आय में हुई वृद्धि के मुताबिक मूल्यांकन के फासले को कम करते हुए बाजार आगे बढ़ा है। साथ ही कुछ हद तक धारणा में सुधार के चलते बाजार बढ़ा है। इसीलिए पहले जहाँ 14-15 पीई के आसपास मूल्यांकन था और कमजोर धारणा के समय 11-12 पर चला गया था, वह अब 18-19 के पास आया है। अपने बाजार में आम तौर पर 18-20 पीई रहता आया है। अगले पाँच सालों में आय में 18-20% की सालाना दर से वृद्धि होनी चाहिए। उसका असर अब आने लगेगा।
अभी निकट भविष्य में ज्यादा गिरावट की संभावना भी नहीं लग रही है। ज्यादा-से-ज्यादा 5-7% की गिरावट आ सकती है। आने वाले वर्षों में आय में 18-20% की सालाना वृद्धि और संकोची रूप से 18-20 पीई का ही मूल्यांकन रख लें तो सेंसेक्स कारोबारी साल 2015-16 में 40,000 और उसके अगले साल के मध्य तक 45,000 पर पहुँच सकता है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)