विजय मंत्री, एमडी और सीईओ, प्रैमेरिका म्यूचुअल फंड :
आरबीआई ने इस बार अपनी ब्याज दरों में कटौती नहीं की,
पर हमारा मानना है कि अगले दो-तीन सालों में ब्याज दरों में काफी कमी आयेगी। आरबीआई ने जो वक्तव्य दिया है, वह बहुत स्पष्ट है। अगर महँगाई दर नीचे बनी रहेगी तो ब्याज दरों को घटाना ही पड़ेगा। मेरा अनुमान है कि साल 2015 में ब्याज दर 7% के नीचे और 2016 में 6% के नीचे चली जायेगी।
अब तक आरबीआई ने ब्याज दरों को इसलिए कम नहीं किया कि कर्ज की माँग बढऩे की स्थिति नहीं लग रही थी। बैंकिंग व्यवस्था में काफी नकदी है। जमा (डिपॉजिट) में वृद्धि हो रही है, पर कर्ज (क्रेडिट) नहीं बढ़ रहा है। यह गलत धारणा है कि ब्याज दर घटने से माँग बढ़ेगी। वाहन ऋण (ऑटो लोन) या आवास ऋण (हाउसिंग लोग) की माँग का ब्याज दरों से उतना लेना-देना नहीं है। आप घर तब खरीदते हैं, जब भाव ठीक दिखता है।
इस समय निवेशकों को मियादी जमा (एफडी) या एफएमपी के बदले इक्विटी फंडों की ओर ध्यान देना चाहिए। ब्याज दरों में आगे जो कमी होगी, उसके चलते एफडी उतना फायदेमंद नहीं रहेगा। लेकिन इसका फायदा ऋण (डेट) म्यूचुअल फंडों में उठाया जा सकता है। ऋण म्यूचुअल फंडों में लंबी अवधि वाले उत्पादों की योजना में पैसा लगाना चाहिए, जिनमें दो अंकों में लाभ मिल सकता है। अभी मान लें कि आपने एफडी में दो-तीन साल के लिए पैसा लगाया, तो उस पर अभी बैंक की ब्याज दर 8% है। वही पैसा अगर 8% वाले जीसेक में लगाया जाये, तो अगले साल 8% और उसके अगले साल 8% तो मिलना ही है। साथ ही अगर ब्याज दरों में दोनों साल 1-1% कमी हो जाये तो 10 साल के जीसेक की यील्ड में गिरावट आने से अतिरिक्त 6-8% तक लाभ मिल सकता है।
इसका फायदा उठाने के लिए डायनैमिक बांड फंड में पैसा लगाया जा सकता है। इसमें जोखिम केवल उन निवेशकों के लिए होगा, जो गलत समय पर पैसा निकाल लेंगे। अगर किसी ने पिछले साल डायनैमिक फंड में पैसा लगाने के बाद जुलाई 2013 में घबराहट में पैसा निकाला नहीं हो, तो वह आज वार्षिक आधार पर 9% के लाभ पर होगा। अगर आप ऐसे फंड में से पैसा निकालते नहीं हैं तो पूँजी का स्थायी नुकसान नहीं होता।
हमारा अनुमान है कि अगले 1-5 सालों में शेयर बाजार कंपनियों के मुनाफे के आधार पर बढ़ेगा। अगर कंपनियों का मुनाफा बढ़ा तो बाजार भी बढ़ेगा। अगले चार वर्षों में कंपनियों की आय दोगुनी हो जायेगी और इसके साथ ही बाजार भी मौजूदा स्तरों से दोगुना हो जायेगा। सेंसेक्स कंपनियों की प्रति शेयर आय (ईपीएस) चार साल में 3,000 रुपये के ऊपर जायेगी। उस समय ब्याज दरें कम रहने की वजह से 20 पीई के मूल्यांकन को उचित माना जाने लगेगा। इसलिए मेरा आकलन है कि तब सेंसेक्स का 55,000 से 60,000 तक का लक्ष्य बन जायेगा।
इसका फायदा उठाने के लिए विविध (डाइवर्सिफाइड) इक्विटी फंडों को चुना जा सकता है। ये विविध फंड क्षेत्रीय रुझानों को खुद ही पकड़ लेते हैं। जैसे आज भी विविध इक्विटी फंड एफएमसीजी, फार्मा, आईटी वगैरह में निवेश घटा रहे हैं और सीमेंट, इंडस्ट्रियल और कैपिटल गुड्स जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ा रहे हैं क्योंकि आने वाले समय में उनमें ज्यादा बढ़त मिल सकती है। घरेलू अर्थव्यवस्था के अंदर जो बुनियादी ढाँचा आधारित क्षेत्र हैं, उनमें माँग ज्यादा आयेगी।
आने वाले समय में कंपनियों की बिक्री की तुलना में उनका मुनाफा ज्यादा बढ़ेगा। कंपनियों का मुनाफा यहाँ से दोगुना होने के काफी अच्छे आसार हैं। अगर आप इस बाजार की तुलना साल 2003 से करें तो पायेंगे कि साल 2000 से 2004 तक ब्याज दरों में गिरावट आयी और साल 2004 से 2007 तक ब्याज दर वापस बढ़ी। कमोडिटी की कीमतों और रियल एस्टेट के दामों में 2003 से बढ़ोतरी शुरू हुई और 2007 तक जारी रही। इनके बावजूद शेयर बाजार में इस दौरान 4-5 गुणा बढ़ोतरी हुई।
आने वाले कुछ वर्षों में ब्याज दरों में कमी होगी। कमोडिटी के नये समझौते होंगे, वे काफी निचले भावों पर होंगे। इस दौरान रियल एस्टेट की कीमतों में भी कुछ खास बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है। कर्मचारियों की वेतन-वृद्धि का ज्यादा दबाव नहीं है, क्योंकि लोग जहाँ हैं वहीं नौकरी सुरक्षित रखना चाहते हैं।
बिक्री में वृद्धि, एबिटा मार्जिन, क्षमता उपयोग वगैरह 10-20 सालों के निचले स्तरों पर चल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि कंपनियों की आय में वृद्धि का सबसे धीमा दौर बीत गया है। मार्जिन में काफी विस्तार होने वाला है। अभी क्षमता उपयोग, बिक्री, या एबिटा मार्जिन में जरा भी वृद्धि सीधे कंपनियों के मुनाफे को बढ़ायेगी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)