भारत का शेयर बाजार जहाँ नित नये रिकॉर्ड स्तरों को छू रहा है,
वहीं जमीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी अब भी सुस्त नजर आ रही है। दूसरी ओर महँगाई में कमी से राहत जरूर मिली है, मगर रिजर्व बैंक (आरबीआई) अभी और इंतजार करके देखना चाहता है। लिहाजा इसने ब्याज दरें घटाने की माँग के कोरस-गान को फिलहाल अनसुना कर दिया है और अगले साल के शुरुआती महीनों तक इंतजार करने को कहा है। लेकिन बाजार इस बात से खुश है कि चलो, आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती का साफ संकेत तो दे ही दिया है। जब इतना इंतजार कर लिया, तो थोड़ा और सही।
एक तरफ महँगाई दर नियंत्रण में आने और दूसरी तरफ विकास दर में धीमापन जारी रहने के चलते आरबीआई के लिए यह बहुत उचित मौका माना जा सकता था कि वह ब्याज दरों में गिरावट का चक्र शुरू कर दे। लेकिन 2 दिसंबर को मौद्रिक नीति की समीक्षा में आरबीआई ने कहा कि अभी ऐसा करना समय-पूर्व कदम होगा।
इंडिया इन्फोलाइन के चेयरमैन निर्मल जैन की राय में इसमें समझदारी है, क्योंकि इससे महँगाई दर के आँकड़ों पर ज्यादा सजग ढंग से निगरानी करने का समय मिलेगा। आनंद राठी सिक्योरिटीज के वाइस चेयरमैन प्रदीप गुप्ता भी आरबीआई के फैसले को इसी रूप में देखते हैं कि वह जल्दबाजी में ऐसा कोई फैसला नहीं करना चाहता है जिसे बाद में पलटना पड़ जाये। उनके शब्दों में, आरबीआई अभी रुझान को देखना चाहता है कि आगे भी महँगाई नियंत्रण में रहती है या नहीं।
हालाँकि आरबीआई के सामने ऐसे तमाम कारण मौजूद थे, जिनके आधार पर इस समय ब्याज दरों में कटौती शुरू करने के फैसले को उचित ही माना जाता। आरबीआई की सबसे बड़ी चिंता महँगाई दर को लेकर रही है और वह पिछले कई महीनों से लगातार नीचे आती गयी है। कहाँ तो जनवरी 2015 के लिए आरबीआई ने 8% महँगाई दर का आकलन कर रखा था, और अक्टूबर 2014 में ही उपभोक्ता महँगाई दर (सीपीआई) घट कर 5.52% पर आ चुकी है। यह जनवरी 2012 से अब तक का सबसे निचला स्तर है, जब से सीएसओ ने उपभोक्ता महँगाई दर की गणना शुरू की है। साल भर पहले उपभोक्ता महँगाई दर 10% के ऊपर चल रही थी। वहीं थोक महँगाई दर तो 1.77% पर आ चुकी है, जो सितंबर 2009 के बाद से अब तक का सबसे निचला स्तर है। यह साल भर पहले लगभग 7% पर थी।
धीमे विकास की चिंता
एक तरफ महँगाई की चिंता घटी है, तो दूसरी ओर विकास दर अब भी संतोषजनक गति नहीं पकड़ पायी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के बढऩे की रफ्तार इस कारोबारी साल की दूसरी तिमाही में पिछली तिमाही से हल्की पड़ गयी, हालाँकि यह अनुमानों से बेहतर रही। दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.3% रही, जो पहली तिमाही में 5.7% रही थी। साल भर पहले जुलाई-सितंबर 2013 में विकास दर 5.2% थी, लिहाजा साल-दर-साल तुलना करने पर तस्वीर जरा-सी बेहतर नजर आती है। हाल के महीनों में औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े भी स्थिर ढंग से सुधार की गवाही नहीं देते और यह भरोसा नहीं बन पाया है कि गाड़ी अब पटरी पर लौट आयी है।
इस कारोबारी साल की दूसरी तिमाही के बारे में जानकारों का आकलन था कि विकास दर घट कर लगभग 5% पर सिमट सकती है। इंडिया रेटिंग्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा के मुताबिक उनका अनुमान केवल 4.7% विकास दर रहने का था। इस लिहाज से दूसरी तिमाही के वास्तविक आँकड़े को अनुमानों से अच्छा कहा जा सकता है। हालाँकि मूडीज ने अपने ताजा विश्लेषण में जो अनुमान जताया था, वह बिल्कुल सटीक रहा, क्योंकि इसने दूसरी तिमाही में 5.3% विकास दर रहने की संभावना सामने रखी थी।
दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र ने कमजोर मानसून के बावजूद अनुमानों से बेहतर प्रदर्शन किया है। कृषि क्षेत्र में कमजोर उत्पादन की आशंकाओं के बावजूद इसने दूसरी तिमाही में 3.2% की बढ़त दर्ज की है। वहीं मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र इस बार थम सा गया। इसने केवल 0.1% की वृद्धि दर्ज की, जबकि ठीक पिछली तिमाही में इसने 3.5% की बढ़त हासिल की थी।
मौजूदा कारोबारी साल की पहली छमाही में विकास दर 5.5% रही। बीते कारोबारी साल यानी 2013-14 में विकास दर 4.7% थी। मतलब यह है कि विकास दर पहले से जरा सँभली तो जरूर है, मगर अब भी ऐसे मुकाम पर नहीं पहुँची है जिसे संतोषजनक कहा जा सके। लेकिन दूसरी ओर अगर भारतीय शेयर बाजार पर निगाह डालें तो यह कुलांचे भरता हुआ लगातार नयी रिकॉर्ड ऊँचाइयों को छू रहा है।
शिखर पर शेयर बाजार
नवंबर 2014 के अंतिम कारोबारी दिन सेसेक्स ने 28,822 और निफ्टी ने 8,617 के नये ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्तर बनाये। इस दिन सेंसेक्स 255 अंक यानी 0.90% की मजबूती के साथ 28,694 पर बंद हुआ। निफ्टी 94 अंक यानी 1.11% चढ़ कर 8,588 पर बंद हुआ। ये इनके रिकॉर्ड बंद स्तर हैं।
इसके साथ ही भारतीय शेयर बाजार ने एक और ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया है। भारतीय शेयर बाजार की कुल बाजार पूँजी (मार्केट कैपिटलाइजेशन) 100 लाख करोड़ रुपये को पार कर गयी है। कुल बाजार पूँजी का मतलब शेयर बाजार में सूचीबद्ध सभी कंपनियों के सारे शेयरों की मौजूदा कीमत का कुल योग है।
लेकिन अर्थव्यवस्था की सुस्त विकास दर के बीच शेयर बाजार की ये ऊँचाइयाँ क्या किसी नये बुलबुले का संकेत है? क्या बाजार जमीनी हकीकत से बहुत आगे और बहुत ऊपर चला गया है? कम-से-कम बाजार विश्लेषकों ने अब तक खतरे की घंटी नहीं बजायी है। एंजेल ब्रोकिंग के एमडी (इंस्टीट्यूशन) ललित ठक्कर के मुताबिक बाजार की इस तेजी में रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों का योगदान है। साथ ही इसमें कच्चे तेल की कीमतों में आयी तीखी गिरावट का भी योगदान है, जिसके चलते भारत के चालू खाता घाटा (करंट एकाउंट डेफिसिट या सीएडी) और महँगाई दर पर सकारात्मक असर (यानी इनमें कमी) होने की उम्मीद है।
मूल्यांकन अभी महँगा नहीं, बड़े लक्ष्यों पर नजर
ललित ठक्कर का कहना है कि सेंसेक्स की यह तेज चाल कंपनियों की आय में आगे मजबूत वृद्धि के कारण जारी रहेगी। एंजेल ब्रोकिंग का अनुमान है कि सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 2014-15 में 15.8% और 2015-16 में 19.5% की दर से बढ़ेगी। यही नहीं, एंजेल के मुताबिक इस अनुमान में और सकारात्मक सुधार की भी गुंजाइश है।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट (इक्विटी एडवाइजरी ग्रुप) राहुल शाह का कहना है कि बाजार भले ही उच्चतम स्तरों पर हो, लेकिन मूल्यांकन के लिहाज से हम सुविधाजनक स्थिति में हैं। उनका मानना है कि आर्थिक आँकड़ों में निरंतर सुधार के चलते कंपनियों की आय में यहाँ से ले कर 2017-18 तक साल-दर-साल 18-20% की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है। लिहाजा हम बुलबुले जैसी स्थिति के आसपास भी नहीं हैं। वे कहते हैं, निवेश बनाये रखें क्योंकि पार्टी तो अभी शुरू हुई है।
अभी तो सेंसेक्स 28,500 से कुछ ऊपर निकला है। ब्रोकिंग फर्मों ने आगे के बड़े लक्ष्य सामने रखने शुरू कर दिये हैं। एंजेल ब्रोकिंग के ललित ठक्कर बताते हैं कि 2015-16 में सेंसेक्स की अनुमानित ईपीएस पर 18 के पीई अनुपात के आधार पर वे अगले 12 महीनों में सेंसेक्स का लक्ष्य 33,156 ले कर चल रहे हैं। यह लक्ष्य मौजूदा स्तरों से 16% ऊपर है।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज (एमओएसएल) ने भी 2014-15 में सेंसेक्स ईपीएस 14% बढ़ कर 1,529 रुपये रहने, और फिर 2015-16 में 22% बढ़ कर 1,866 रुपये रहने का अनुमान जताया है। हालाँकि 2014-15 की दूसरी तिमाही के कारोबारी नतीजों को देखने के बाद इसने सेंसेक्स ईपीएस के अपने पिछले अनुमानों में थोड़ी कटौती की है और उसके बाद के ये संशोधित अनुमान हैं।
लेकिन 2014-15 के दौरान जहाँ 14% वृद्धि का अनुमान है, वहीं दूसरी तिमाही की हकीकत यह है कि एमओएसएल के मुताबिक सेंसेक्स कंपनियों के मुनाफे में साल-दर-साल 11% बढ़त के अनुमान के बदले केवल 5% बढ़त दर्ज की जा सकी। हालाँकि इससे पहले 2014-15 की पहली तिमाही के नतीजे जरा उत्साह बढ़ाने वाले थे। पहली तिमाही नतीजों पर जारी रिपोर्ट में एमओएसएल ने कहा था कि इस दौरान सेंसेक्स कंपनियों की सकल बिक्री साल-दर-साल 15% बढ़ी है, जबकि अनुमान 14% वृद्धि का था। इससे पहले 2013-14 की चौथी तिमाही में इसमें 12% की वृद्धि हुई थी।
सेंसेक्स कंपनियों का मुनाफा पहली तिमाही में 19% बढ़ा था, जबकि अनुमान 20% बढ़त का था। इससे पिछली तिमाही में सेंसेक्स कंपनियों का मुनाफा 11% बढ़ा था। इस तरह मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही में कंपनियों का प्रदर्शन सुधरने के बाद दूसरी तिमाही में फिर से हल्का पड़ जाना यह बताता है कि अर्थव्यवस्था अब भी झटके खा रही है और सरपट ढंग से आगे बढऩे की स्थिति नहीं बन पायी है। इसलिए यह सवाल तो बनता ही है कि अगर 2014-15 की दूसरी छमाही में कंपनियों की आय बढऩे की रफ्तार अनुमानों के मुताबिक नहीं रही तो क्या सेंसेक्स के नये महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को झटका नहीं लगेगा?
विकास तेज होने की उम्मीदें
जहाँ अर्थव्यवस्था की विकास दर 5% के ऊपर-नीचे ही झूल रही है, वहीं आने वाले समय में कंपनियों की आय में अच्छे-खासे इजाफे की उम्मीदें सामने रखी गयी हैं। मगर अर्थव्यवस्था की गति बढ़े बिना कंपनियों की आय में ऐसी तेजी कैसे दिखेगी? तो क्या बाजार यह मान कर चल रहा है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार अब बस बढऩे ही वाली है और गियर बदलने भर की देरी है?
एमओएसएल ने अपनी रिपोर्ट में आर्थिक परिवेश में सुधार के कई संकेतों की ओर इशारा किया है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) जुलाई में केवल 0.4% और अगस्त में 0.5% की सुस्त वृद्धि के बाद सितंबर में 2.5% की दर से बढ़ा है। अच्छी बात यह है कि सितंबर में यह वृद्धि पिछले साल सितंबर की 2.7% वृद्धि के ऊपर है, यानी तुलनात्मक रूप से ऊँचे आधार (बेस) पर हासिल की गयी है।
सीएमआईई के आँकड़ों के हवाले से इसने बताया है कि परियोजनाओं के दोबारा चालू होने और नयी परियोजनाओं के शुरू होने की गति सुधरी है। आईआईपी-कैपिटल गुड्स के आँकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। एमओएसएल को उम्मीद है कि दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी) और मेक इन इंडिया जैसे प्रयासों से औद्योगिक उत्पादन में सुधार शुरू होने ही वाला है। विभिन्न रेटिंग एजेंसियों के अनुसार ऋण गुणवत्ता (क्रेडिट क्वालिटी) में सुधार दिखने लगा है। आरबीआई के आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक एवं उपभोक्ता विश्वास में भी सुधार आया है।
इन सारे अच्छे संकेतों के बीच एमओएसएल का कहना है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर 2014-15 में 5.6% और अगले वर्ष 6.5% रहने का अनुमान है। साल 2013-14 में हासिल 4.7% विकास दर की तुलना में इसे ठीक-ठाक सुधार कहा जा सकता है। साल 2014-15 की पहली छमाही में हमने 5.5% विकास दर हासिल की है, यानी जीडीपी के अनुमान अब तक के वास्तविक परिणामों से बहुत अलग नहीं हैं।
मगर इसके बावजूद अगर सेंसेक्स कंपनियों की आय में पहली तिमाही में 19% और दूसरी तिमाही में केवल 5% की वृद्धि दर्ज हुई है, तो जाहिर है कि सेंसेक्स ईपीएस की सालाना उम्मीद में यह बात शामिल है कि तीसरी और चौथी तिमाही में आय में तेज वृद्धि होनी चाहिए। हालाँकि तीसरी और चौथी तिमाही के लिए विकास दर के अनुमानों पर जानकारों की राय बँटी हुई है। जहाँ आनंद राठी के प्रदीप गुप्ता ने तीसरी और चौथी तिमाही में विकास दर बेहतर होते जाने की उम्मीद जतायी है, वहीं क्रिसिल के अर्थशास्त्री तीसरी तिमाही को लेकर आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि कमजोर मानसून के आँकड़े इस पर असर डालेंगे।
कुल मिला कर अब तस्वीर यह है कि अर्थव्यवस्था ने करवट बदलने और तेज रफ्तार पकडऩे के संकेत अब तक नहीं दिये हैं, लेकिन लोग महसूस कर रहे हैं कि ऐसा जल्दी ही हो सकता है। यानी उम्मीदें अभी बाकी हैं। इन उम्मीदों की परीक्षा अगले छह महीनों में होगी।
अगर इन छह महीनों में ऐसा लगा कि वाकई भारतीय अर्थव्यवस्था सँभलने की ओर अग्रसर है तो बाजार अगले कई सालों तक बेहतर वृद्धि की संभावनाओं को ले कर आश्वस्त हो सकेगा। लेकिन यदि विकास की इन उम्मीदों को जरा भी झटका लगा तो बाजार भी हिचकोले खाने लगेगा, क्योंकि तब विश्लेषकों को अगले वर्षों के लिए आय के अपने अनुमानित आँकड़ों को भी घटाना पड़ेगा और उन्हें ऊँचे मूल्यांकन की चिंता भी सताने लगेगी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)