राजीव रंजन झा :
सितंबर के अंतिम हफ्ते में बाजार ने नीचे सरकना शुरू कर दिया था,
कुछ खास तकनीकी सहारे टूटते दिख रहे थे, लेकिन तभी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर (एसऐंडपी) की ओर से भारत की सार्वभौम रेटिंग पर अपना नजरिया (आउटलुक) बेहतर करने की खबर ने बाजार की हालत भी सुधार दी। शुक्रवार 26 सितंबर की दोपहर में सेंसेक्स 26,200 तक फिसल चुका था। वहाँ से इसने खुद को सँभाला और एसऐंडपी रेटिंग की खबर के दम पर उसी दिन बाजार बंद होने से कुछ पहले 26,721 तक चढ़ गया, यानी दिन के निचले स्तर से करीब सवा पाँच सौ अंक ऊपर आ गया। अंत में यह 158 अंक की बढ़त के साथ दिन के ऊपरी स्तर के कुछ नीचे ही 26,626 पर बंद हुआ।
तो क्या यह माना जाये कि बाजार पर आसन्न खतरा टल गया है? क्या अब बाजार फिर से ऊपर की चाल पकड़ लेगा? या अभी यह नतीजा निकालना जल्दबाजी होगी?
बाजार के लिए एसऐंडपी रेटिंग के नजरिये में सुधार की खबर अचानक आये आश्चर्य की तरह नहीं थी। ऐसी कुछ अटकलें पहले से चल रही थीं। दूसरी बात यह है कि रेटिंग आउटलुक में सुधार दरअसल उन्हीं बातों की ओर इशारा करता है, जिन्हें बाजार पहले से ही भुना चुका है, बल्कि कुछ आगे जा कर भविष्य की अनिश्चित संभावनाओं को भी भुना चुका है। इसलिए यह खबर अकेले अपने दम पर बाजार को बहुत आगे ले जा सकेगी, इसमें संदेह है।
इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एसऐंडपी की खबर आने के बाद भी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली नहीं थमी है। एक्सचेंज के आँकड़ों के अनुसार शुक्रवार 26 सितंबर को एफआईआई ने 1,134 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की। दरअसल एफआईआई ने मंगलवार 23 सितंबर से ही लगातार बड़ी बिकवाली का सिलसिला बना लिया है, जो बाजार के लिए खतरे का संकेत है। नये हफ्ते में इस बात पर निगाह जमाये रखनी चाहिए कि एफआईआई की बिकवाली थमती है या नहीं। अगर उनकी बिकवाली नहीं थमी, तो बाजार का और निचले स्तरों की ओर फिसलना बड़ा स्वाभाविक होगा।
कोयला ब्लॉकों को रद्द करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद से जहाँ बिजली और धातु क्षेत्र की उन कंपनियों के शेयरों की जम कर पिटाई हुई है जिनके ब्लॉक रद्द किये गये, वहीं बैंकिंग शेयरों पर भी इसकी वजह से दबाव बना। बाजार को अब आशंका सता रही है कि इन ब्लॉकों के रद्द होने के चलते संबंधित परियोजनाओं को कर्ज देने वाले बैंकों को भारी मात्रा में डूबे कर्ज (एनपीए) की समस्या का सामना करना होगा। पहले से ही बैंकिंग शेयरों, खास कर सरकारी बैंकों के एनपीए को लेकर बाजार परेशान रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती होने की संभावना भी कम ही है। इसलिए बैंकों को उस मोर्चे पर भी कोई राहत मिलती नहीं दिख रही। हाल में रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन के एक बयान से ही इस बात के स्पष्ट संकेत मिल गये थे। जानकार अब मानने लगे हैं कि छह महीने बाद नये कारोबारी साल की शुरुआत में ही ब्याज दरें घटने की स्थिति बन सकेगी, बल्कि शायद इससे भी कुछ ज्यादा समय लग जाये।
इस बीच गैस कीमतों पर फैसला टलने के चलते बाजार के दिग्गज रिलायंस पर फिर से दबाव बनता दिखा है। दबाव कुछ हद तक ओएनजीसी पर भी बना, हालाँकि ओएनजीसी के प्रति बाजार अभी जरा उदार चल रहा है। फैसला टलने की खबर वाले दिन ओएनजीसी के शेयर को जितना नुकसान हुआ, लगभग उतना ही यह अगले दिन वापस सँभल गया। इन स्थितियों के बीच बाजार एक तरफ जहाँ तकनीकी कमजोरी के कुछ संकेत देने लगा है, वहीं कुछ खास समर्थन स्तरों का सम्मान करता भी दिख रहा है। शुक्रवार 26 सितंबर को सेंसेक्स अपने 50 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) को थोड़ा काटने के बाद वापस सँभला है। इससे पहले अगस्त में सेंसेक्स केवल एक दिन 50 एसएमए के नीचे रहने के बाद वापस सँभल गया था। इस शुक्रवार को सेंसेक्स 50 एसएमए के स्तर 26,378 से काफी ऊपर 26,626 पर बंद हुआ। अगर आने वाले दिनों में सेंसेक्स दोबारा 50 एसएमए को काटने के लिए नीचे न फिसले, तो यह मानना होगा कि एक बार फिर सेंसेक्स ने इस महत्वपूर्ण सहारे का सम्मान किया।
सेंसेक्स की 8 अगस्त 2014 की तलहटी 25,233 से ले कर 8 सितंबर 2014 को बने उच्चतम स्तर 27,355 तक की उछाल की वापसी के स्तरों को देखें तो 50% वापसी 26,294 पर है। शुक्रवार 26 सितंबर को सेंसेक्स इससे कुछ नीचे तक फिसलने के बाद सँभला और इससे काफी ऊपर लौट कर बंद हुआ। दरअसल इसका बंद स्तर तो 38.2% वापसी के स्तर 26,544 के भी ठीक-ठाक ऊपर रहा। लेकिन दूसरी ओर यह कहा जा सकता है कि 8 सितंबर को 27,355 का उच्चतम स्तर छूने के बाद से इसने निचले शिखर और निचली तलहटी का सिलसिला बनाना शुरू कर दिया है।
इसने 27,355 से निचला शिखर 23 सितंबर को 27,257 पर बनाया है। इसी तरह 16 सितंबर को बनी तलहटी 26,464 के बाद इसने शुक्रवार 26 सितंबर को 26,220 की नयी निचली तलहटी बनायी है। हालाँकि अभी यह निचली तलहटी 26,220 पर ही बन गयी है या और भी नीचे जा कर बनेगी, इसे पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। दैनिक चार्ट पर बीते कुछ दिनों का हाल देखें तो 19 सितंबर के बाद से अब तक यह लगातार निचली तलहटियाँ बनाता गया है। अगर यह शुक्रवार की तलहटी 26,220 से नीचे फिसला तो स्वाभाविक रूप से इसका अगला पड़ाव 25,233-27,355 की 61.8% वापसी के स्तर 26,044 पर होगा।
गौरतलब है कि निवेश मंथन के पिछले अंक में राग बाजारी का शीर्षक था - क्या 27,000 तक जाने के बाद फिर पलटेगा सेंसेक्स? पिछले अंक का राग बाजारी लिखते वक्त 28 अगस्त के बंद भाव के आधार पर सेंसेक्स 26,378 पर था। वहाँ से आगे जा कर ठीक 27,000 तक तो नहीं, लेकिन 27,355 तक जाने के बाद यह जरूर पलट गया।
अभी सेंसेक्स भले ही 50 एसएमए पर सहारा लेते हुए वापस सँभलता दिखा है, लेकिन इसे अब मौजूदा स्तर से थोड़ा ऊपर ही 10 एसएमए और फिर 20 एसएमए पर बाधा मिलेगी। दरअसल 20 अगस्त के बाद से ही 20 एसएमए के ऊपर चल रहा 10 एसएमए बीते हफ्ते इसके नीचे आ गया और इस तरह एक नकारात्मक कटान (क्रॉसओवर) बना है। यह 10 एसएमए अभी 26,796 पर है, और हर दिन करीब 40-50 अंक नीचे आ रहा है, जबकि 20 एसएमए 26,940 पर है। बाजार की चाल फिर से सकारात्मक बनने के लिए सेंसेक्स को इन दोनों एसएमए के ऊपर निकलना होगा। अगर यह इन दोनों की फाँस पर अटक गया तो फिर से नीचे फिसलने की गुंजाइश बन जायेगी। हालाँकि इस समय किसी बड़ी गिरावट की आशंका भी नहीं लगती। ऐसी आशंका तब बनेगी, जब सेंसेक्स इस साल मई, जुलाई और अगस्त की तलहटियों को मिलाती रुझान रेखा (ट्रेंड लाइन) को नीचे की ओर काट दे। अभी यह रुझान रेखा लगभग 26,000 पर है। इसलिए शुक्रवार की तलहटी 26,220 से नीचे जाने पर इसे तुरंत ही एक मजबूत सहारा मिलने की उम्मीद रहेगी।
दरअसल सेंसेक्स 16 मई से अब तक एक ऊपर चढ़ती पट्टी के अंदर ही चलता रहा है, जिसका जिक्र मैं जुलाई से ही करता आ रहा हूँ। इसका संदर्भ मैंने पिछले अंक के राग बाजारी में भी दिया था। इसी पट्टी के आधार पर मैंने पिछले अंक में लिखा था, %सेंसेक्स अभी अपनी इस पट्टी की ऊपरी रेखा से कुछ दूरी पर है, लिहाजा लगभग 27,000 तक चले जाने में इसे कोई खास दिक्कत नहीं होगी। लेकिन 27,000 के पास यह ऊपरी रेखा (पट्टी की ऊपरी रेखा) फिर से बाधा बनेगी। इस ऊपरी रेखा से पलट कर नीचे लौटने पर सेंसेक्स के लिए 25,500 की ओर फिसलने की आशंका पैदा होगी।Ó
हालाँकि सितंबर के दूसरे हफ्ते में यह थोड़े समय के लिए इस पट्टी को भी ऊपर की ओर पार करता दिखा। लेकिन 15 सितंबर को शेयर मंथन वेबसाइट पर अपने राग बाजारी में मैंने इस बात पर ध्यान दिया था कि सेंसेक्स वापस इस पट्टी के अंदर लौट आया। उसमें मैंने लिखा था कि %एक बड़ा सहारा होगा सोमवार 1 सितंबर 2014 को बने ऊपरी अंतराल (गैप) के दायरे पर। यह दायरा सेंसेक्स के लिए 26,674-26,732 का और निफ्टी के लिए 7,968-7,984 का है। जब तक सेंसेक्स-निफ्टी इन स्तरों के नीचे न फिसलें, तब तक बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन इनके भी नीचे चले जाने पर तो यह आशंका मजबूत हो जायेगी कि क्या वे फिर से इस पट्टी की निचली रेखा को छूने की ओर बढ़ रहे हैं?Ó इसी आशंका के मद्देनजर उस दिन मेरे राग बाजारी का शीर्षक था – ‘क्या अब सेंसेक्स लौटेगा 26,000 की ओर?’
शुक्रवार 26 सितंबर के निचले स्तर पर सेंसेक्स 26,000 से बहुत दूर नहीं कहा जा सकता। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि 16 मई से अब तक बाजार की हर गिरावट करीब 1,100-1,300 अंकों की रही है। सेंसेक्स 27,355 के उच्चतम स्तर से 26,220 तक की मौजूदा गिरावट में भी 1,135 अंक फिसल चुका है। इसलिए संभव है कि सेंसेक्स अब इन्हीं स्तरों से सँभल जाये, या थोड़ा फिसले भी तो मई से अब तक की इस पट्टी की निचली रेखा पर 26,000 के पास सहारा ले ले।
मगर ध्यान रहे कि किसी सूरत में 26,000 से नीचे जाने का मतलब होगा एक बड़ा खतरा। यह इस बात का संकेत होगा कि 16 मई के ऐतिहासिक दिन के बाद से अब तक बाजार में जो ऊपरी रुझान रहा है, वह रुझान खतरे में है। उस स्थिति में सेंसेक्स न्यूनतम नुकसान में भी करीब 25,000 तक फिसल सकता है। हालाँकि अगर सेंसेक्स अभी और कमजोरी दिखाने के बदले सँभलता जाये और 8 सितंबर को बने उच्चतम स्तर 27,355 को पार करके आगे बढ़े, तो जरूर ये सारी आशंकाएँ बेमानी हो जायेंगी।
सुना है कि महँगाई घट गयी है
राजन साहब, खाद्य महँगाई न तो बिड़ला घटा सकते हैं, न टाटा, न अंबानी, और न आप। तो क्या दैवीय कृपा से महँगाई घटने का अनंत इंतजार करते रहेंगे?
हाल में हमने सुना था कि महँगाई घट गयी है। आपने भी यह खबर शायद सुनी होगी। यह सुन कर आपको अच्छा लगा होगा कि महँगाई दर घट कर पाँच वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गयी है। लेकिन भरोसा नहीं हुआ होगा, तुरंत आपने खुद को चिकोटी काटी होगी, यह देखने के लिए कि आप जगे हुए हैं या सपना देख रहे हैं। शायद उसी तर्ज पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को भी इन आँकड़ों पर अभी भरोसा नहीं हुआ है। इसीलिए उन्होंने मौद्रिक नीति की द्वैमासिक समीक्षा में आरबीआई की ब्याज दरों को जस-का-तस बनाये रखा है, घटाया नहीं है।
लोग ऐसी उम्मीद भी नहीं कर रहे थे कि ब्याज दरें घटने वाली हैं। दरअसल हाल में मुंबई में एक कार्यक्रम में बोलते हुए रघुराम राजन ऐसी माँग को साफ नकार चुके थे। आखिर महँगाई घटने, लेकिन आम लोगों को राहत नहीं मिलने और आरबीआई की ब्याज दरें नहीं घटने की यह पहेली क्या है?
दरअसल जो महँगाई दर पाँच वर्षों के निचले स्तर पर आयी है, वह थोक महँगाई दर (डब्लूपीआई) है। यह थोक महँगाई दर अगस्त 2014 में घट कर 3.74% पर आ गयी है, जो वाकई करीब पाँच वर्षों का सबसे निचला स्तर है। जुलाई में यह दर 5.19% थी। लेकिन हम-आप जिस महँगाई को खुद भुगतते हैं, वह खुदरा महँगाई दर में दिखती है। वह जुलाई के 7.96% से घट कर अगस्त में 7.8% पर आयी है। उसमें कमी आयी तो है, पर उतनी नहीं, जितनी थोक महँगाई दर में।
यहाँ दो बातें समझने वाली हैं। सबसे पहले तो यह कि महँगाई दर घटने का मतलब चीजों के दाम घटना नहीं होता। इसका मतलब यह होता है कि चीजों के दाम बढऩे की रफ्तार पहले से कम हो गयी है। इसलिए जब आप सुनते हैं कि महँगाई दर नीचे आ गयी है, तो उसका मतलब सीधे शब्दों में यह होता है कि 100 रुपये की जिस चीज का दाम बढ़ कर 110 रुपये हो सकता था, वह बढ़ कर केवल 105 रुपये हुआ है। अब यह उम्मीद तो कोई भूले-भटके भी नहीं करता कि 100 रुपये की चीज के दाम घट कर कभी 95 या 90 रुपये हो जायेंगे! यह केवल कुछ असामान्य स्थितियों में ही होता है, जब टमाटर के भाव 80 रुपये तक जाने के बाद फिर से 40 रुपये पर लौट आते हैं।
थोक और खुदरा महँगाई दर में अंतर से दिखने वाली दूसरी बात यह है कि महँगाई घटाने के सरकारी उपाय खुदरा स्तर पर ज्यादा नाकाम हो रहे हैं। सरकार एक थोक व्यापारी के गोदाम पर तो छापे मार सकती है। लेकिन ठेले पर सब्जियाँ बेचने वाला मंडी से किस भाव पर खरीद कर किस खुदरा भाव पर बेचेगा, इस पर नियंत्रण करने का उपाय सरकार के पास नहीं है। खुदरा व्यापारी इस मानसिकता का फायदा उठाते हैं कि एक बार जो दाम ऊपर चले गये, वे लौट कर नीचे थोड़े ही आते हैं! थोक में पिछले साल अगस्त में प्याज के दाम 273% बढ़े थे। इस साल अगस्त में प्याज के थोक भाव 45% घटे हैं। लेकिन क्या प्याज की कीमतों में ऐसी कोई भारी कमी आपको अपने खुदरा बाजार में दिखी है?
पिछले साल अगस्त में खाद्य वस्तुओं की थोक महँगाई दर 19.17% थी, जो इस साल अगस्त में घट कर 5.15% पर आ गयी। लेकिन खुदरा बाजार में खाद्य महँगाई दर 9.42% पर रही, पिछले महीने यानी जुलाई के 9.36% से बढ़ गयी। थोक महँगाई शांत पड़ी है, लेकिन खुदरा महँगाई नहीं।
इसलिए थोक महँगाई दर पाँच साल के निचले स्तर पर आ जाने से आपको कोई राहत नहीं मिलने वाली। पहले आरबीआई की नजर मुख्य रूप से थोक महँगाई दर पर होती थी और उसी के हिसाब से इसकी नीतियाँ तय होती थीं। लेकिन पिछले कुछ समय से इसने खुदरा महँगाई दर को भी तवज्जो देना शुरू कर दिया है, जो उचित ही है।
इसलिए जब तक खुदरा महँगाई दर में पर्याप्त कमी आती नहीं दिखे, और यह भरोसा नहीं बने कि यह निचले स्तरों पर रुकी रहेगी, तब तक आरबीआई अपनी ब्याज दरों में कमी नहीं करेगा। आरबीआई जब अपनी ब्याज दरों को घटाता है, तभी बैंक हमारे-आपके लिए और छोटी-बड़ी कंपनियों के लिए ब्याज दरें घटाते हैं। ब्याज दरें घटने से निवेश और खपत दोनों में इजाफा होता है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
इसीलिए आर्थिक जानकारों के एक बड़े तबके और उद्योग जगत की अरसे से माँग रही है कि आरबीआई ब्याज दरें घटाने का चक्र शुरू करे। मगर ऊँची महँगाई दर का हवाला दे कर आरबीआई ने इस माँग को लगातार नकारा है। रघुराम राजन कह चुके हैं कि उन्हें खुदरा महँगाई दर जनवरी 2015 तक 8% और उसके अगले 12 महीनों में घट कर 6% पर आने का इंतजार है। अभी बेशक खुदरा महँगाई दर उनके जनवरी 2015 के लक्ष्य के आसपास दिख रही है और थोक महँगाई दर काफी नीचे आ चुकी है, मगर आरबीआई को डर है कि इस समय ब्याज दरों में कटौती करने पर कहीं महँगाई दर फिर से न उछल जाये।
लेकिन नयी सरकार के आने के बाद से जिस तरह लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी हैं और लोग जल्दी से देश की आर्थिक विकास दर में तेजी आने की बाट जोहने लगे हैं, उसके मद्देनजर यह स्वाभाविक है कि अब आरबीआई पर ब्याज दरें घटाने का दबाव बनेगा। ऐसे में सरकार और आरबीआई के बीच फिर से खींचतान होने का अंदेशा रहेगा। सरकार ब्याज दरें घटाने के लिए आरबीआई को इशारे करती रहेगी और आरबीआई कहता रहेगा कि हुजूर पहले महँगाई तो घटाइये।
लेकिन आखिरकार इन्हीं दोनों को मिल कर इस पहेली का हल भी निकालना होगा। सरकार को यह देखना होगा कि थोक महँगाई में आयी कमी कैसे खुदरा बाजार पर भी असर दिखाये। वहीं आरबीआई को भी एक हद तक यह समझना होगा कि भारत में महँगाई दर की उठापटक पर उसकी ब्याज दरें ऊँची रखने से कोई नियंत्रण नहीं हो पाता है। उसने सालों से अपनी ब्याज दरें ऊँची रख कर देख लिया, क्या फर्क पड़ा महँगाई पर?
अब अगर थोक महँगाई दर घटी है तो इसका कारण आरबीआई की ऊँची ब्याज दरें नहीं हैं। इसके घटने के पीछे दो मुख्य कारण हैं - खाद्य महँगाई में कमी और ईंधन की कीमत में कमी। इन दोनों पर आरबीआई की ब्याज दरों का कोई असर नहीं होता। खाद्य महँगाई के पीछे मुख्य समस्या आपूर्ति पक्ष से जुड़ी रही है। यह समझा जा सकता है कि जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए थोक व्यापारियों पर सरकार ने हाल में जो सख्ती की, उसका कुछ असर दिखा है। वहीं ईंधन, खास कर पेट्रोल की कीमत में कमी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घटने की वजह से आयी है।
इसलिए अब आरबीआई को महँगाई दर के मामले में थोड़ा लचीला रवैया दिखाना होगा। बेहतर होगा कि वह खुदरा महँगाई दर में वांछित कमी का इंतजार करते रहने के बदले थोक महँगाई में कमी को ही आधार बनाते हुए ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू करे। लेकिन रघुराम राजन का मानना है कि अभी ब्याज दरों में कटौती करने का कोई तुक नहीं है, क्योंकि इससे फिर महँगाई बढऩे लग जायेगी। वे उल्टे उद्योग जगत से कह रहे हैं कि आप दाम घटा दीजिए तो हम ब्याज दरें घटा देंगे। लेकिन राजन साहब, खाद्य महँगाई न तो बिड़ला साहब घटा सकते हैं, न टाटा साहब. न अंबानी साहब, और न आप। तो क्या दैवीय कृपा से महँगाई घटने का अनंत इंतजार करते रहेंगे?
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)